जैन धर्म और बौद्ध धर्म

 

जैन धर्म

जैन धर्म का इतिहास :- प्राचीनता की दृष्टि से इसे वैदिक धर्म के बराबर माना जाता है, क्योंकि पहले तीर्थंकर ऋषभदेव का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। जैन धार्मिक विचार धारा के अनुसार जैनियों के 24 तीर्थंकर हैं। जिनमें से दो ऋषभदेव तथा अरिष्टनेमि का उल्लेख ‘‘ ऋग्वेद ’’ में मिलता है।

पार्श्वनाथ (23 वें तीर्थंकर )

प्रतीक चिन्ह : सर्पफण

कुछ विद्वानों के अनुसार आप ही जैन धर्म के प्रवर्तक हैं।

जन्म : 8170पू0

माता : वामदेवी

पिता : अश्सेवन

प्रमुख चार सिद्धांत :

1. अहिंसा

2. सत्य

3. अस्तेय

4. अपरिग्रह

विचारधाराः

·   देववाद तथा यज्ञवाद में अविश्वास

·   वर्ण व्यवस्था का विरोध कर सामाजिक समभाव

·   इनके अनुयायी - र्निग्रंथ कहलाते हैं।

मृत्यु : 7170पू0, सम्मेत शिखर (पार्श्वनाथ पहाड़ी पर)

महावीर स्वामी ( 24 वें तथा अंतिम तीर्थंकर)

प्रतीक चिन्ह : सिंह

जन्म : 5990पू0

जन्म स्थान : वैशाली के निकट कुण्डग्राम में

माता : लिच्छवी राजमुमारी त्रिषला

पिता : नाट सरदार सिद्धार्थनाथ

बचपन का नाम : वर्धमान

पत्नी : यशोदा

पुत्री : प्रियदर्शना

          कल्पसूत्र तथा आचारांग सूत्र के अनुसार महावीर ने ज्ञान प्राप्ति हेतु कठोर तप किया। 12 वर्ष पश्चात ‘ जाम्भियग्राम ’ के समीप ‘ ऋजुपालिका ’ नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे आपको ज्ञान की प्राप्ति हुई। आपको प्राप्त सत्य ज्ञान (कैवल्य) के कारण ‘केवलिन’ कहलाए तथा अपने पराक्रम के कारण ‘महावीर’ नाम से संबोधित किए गए। समस्त इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लेने के कारण महावीर ‘जिन अथवा जैन’ कहलाए अतः महावीर के अनुयायी जैन कहतलाते हैं।

धर्म प्रचार :-

· बिम्बसार तथा उसकी रानियों में जैन धर्म के प्रति आस्था थी।     - उत्तराध्ययन सूत्र

·  अजातशत्रु महावीर का अनुयायी था।                                  - ओबाइय सूत्र

·  बौद्ध धर्म, जैन धर्म का तत्कालीन प्रबल प्रतिद्वंद्वी था।

·  प्रथम जैन प्रचार संघ की स्थापना पावापुरी में की गई।

महावीर के सहयोगी प्रचारक - आनंद, सुरदेव, महासयग, कुण्डकोलिय, नंदिनीपिया तथा कामदेव थे।

मृत्यु : 4270पू0 को पावापुरी में ।

जैन सम्प्रदाय :-

1. दिगम्बर सम्प्रदाय : इस सम्प्रदाय के संस्थापक भद्रबाहु को माना जाता है।

2. श्वेताम्बर सम्प्रदाय : इस सम्प्रदाय के संस्थापक स्थूलभद्र थे।

विभाजन :- जैन संघ संचालन का कार्य 11 गणधरों का था जिनमें महावीर की मृत्यु के बाद मात्र एक गणधर सुधर्माचार्य ही बचा। अंतिम नन्द शासक के समय जैन संघ के दो अध्यक्ष हो गए। 1. सम्भूति विजय  2. भद्रबाहु

          सम्भूति विजय के बाद स्थूलभद्र अध्यक्ष बना, इसी समय मगध में अकाल पड़ने पर भद्रबाहु शिष्यों के साथ दक्षिण भारत चले गए। इस बीच पाटलिपुत्र में प्रथम जैन सभा का आयोजन कर जैन साहित्य ‘ पूर्व तथा आगम ’ संकलित कर श्वेत वस्त्र धारण करने लगे। दक्षिण से भद्रबाहु (नग्न) के लौटने पर दोनों में मतभेद उत्पन्न हो गए। इस प्रकार जैन संघ उक्त दो शाखाओं में विभक्त हो गया।

महावीर की शिक्षाएं :-

          महावीर ने पार्श्वनाथ की चार शिक्षाओं में एक और बात ‘‘ ब्रम्हचर्य ’’ को जोड़ा।

·      सर्वप्रथम वस्त्र त्याग स्वयं महावीर ने किया।

·      जैनों की श्वेताम्बर शाखा अत्यंत लोकप्रिय हुई।

·      तत्कालीन समय में जैन धर्म के प्रमुख केंद्र उज्जैन तथा मथुरा थे।

·      जैन साहित्य को आगम तथा तीर्थंकर को अर्हंत कहा गया है।

·      जैन धर्म हिन्दू सांख्य दर्शन के निकट है।

·      उपदेश काल में नालंदा में मख्खलि गोशाल से प्रथम भेंटवार्ता हुई परंतु 6 वर्ष बाद मतभेद उत्पन्न हो गए।

जैन धर्म के प्रमुख सिंद्धांत :-

·      अनीश्वरवाद

·      आत्मवादिता

·      निवृत्तिमार्ग

·      कर्म प्रधान, पुर्नजन्म में विश्वास

·      निर्वाण : इस हेतु त्रिरत्न बताए गए है।

1.  सम्यक दर्शन

2. सम्यक ज्ञान

3. सम्यक चरित्र

·      कर्म : जैन धर्म में आठ प्रकार के कर्म वर्णित हैं।

·      पाप : पापों की संख्या 18 बताई गई है।

अन्य विविध तथ्य

·      गृहस्थ व्यक्ति निर्वाण प्राप्त नहीं कर सकता।

·      जैन धर्म में जाति तथा दास प्रथा के समूल नष्ट का भाव नहीं है।

·      जैन धर्म में तीन गुण व्रत है।

·      इसमें चार शिक्षा व्रत हैं।

·      जैन संघ के सदस्य चार वर्गों में विभाजित थे।   

                1. भिक्षु 2. भिक्षुणी 3. श्रावक 4. श्राविका

·      जैन सभाएं :-

o  प्रथम जैन सभा चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल में पाटलिपुत्र में आयोजित की गई।

o  विशेष : इस सभा में अंगों का संकलन किया गया।

o  द्वितीय जैन सभा गुजरात के वल्लभी नामक स्थान पर हुई।

o  अध्यक्ष :- देवद्धिगणि क्षमाश्रवण/ स्कंदिलाचार्य

o  समय : 5120पू0

o  विशेष : इस सभा में आगमों का संकलन किया गया।

·      19 वां तीर्थंकर ‘‘ मल्लि ’’ स्त्री थी।

·      जैन धर्म में द्वैतवादी तत्व ज्ञान का समावेश है।

·      महावीर के उपदेशों की भाषा जन सामान्य में प्रचलित भाषा थी।

·      आजीवक सम्प्रदा के प्रवर्तक मख्खलि गोशाल थे।

·      श्रावण बेलागोला में गोमतेश्वर की विशाल प्रतिमा है।

·     वर्तमान में उपलब्ध सम्पूर्ण जैन साहित्य श्वेताम्बर सम्प्रदाय द्वारा रचित है, तथा इसकी भाषा आर्ष या अर्धमागधी है।

·      महावीर की मृत्योपरांत जैन संघ का प्रधान सुधर्मन को बनाया गया।

·      विभिन्न जैन ग्रंथों में वर्णित तथ्य :-

o  आचारांग सूत्र : जैन मुनियों की आचार संहिता

o  भगवती सूत्र : महावीर का जीवन, महावीर-गोशाल वृत्तांत तथा 16 महाजनपदों का विवरण।

o  नाया धम्मकहाओ : महावीर की शिक्षाएं

o  पण्हावागरणाई : जैन के नियम

o  आवश्यक तथा औपपातिक सूत्र : अजातशत्रु के धार्मिक विचार

o  कल्प सूत्र : भद्रबाहु द्वारा रचित

o  परिसादानिय : निग्रंथ

o  कुबलयमाला : हूण नेता तोरमणण पर रचित रचना।

·      श्वेताम्बरों के उप सम्प्रदाय : 1. पुजेरा 2. ढुंढिया 3. तेरापंथी

·      दिगम्बरों के उपसम्प्रदाय : 1. कुमानपंथी 2. तोतापंथी 3. समैया पंथी

·      श्वेताम्बर तथा दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों में समान रूप से सम्मानीय - उमा स्वाति

·      जैन धर्म संबंधी साहित्य : सूत्र, उपांग, प्रर्कीणक, पूर्व, अंग तथा आगम।

·      महावीर के गणधर : 1. इंद्रभूति 2. अग्निभूति 3. वायुभूति 4. मक्त 5. मण्डित 6. मेरिय पुत्र 7. मेटार्य 8. अंकपति 9. अचक्रभद्रा 10. प्रभास 11. सुधर्मन।

·      चौथी सदी ई0पू0 में मथुरा जैन सभा के अध्यक्ष स्कंदिलाचार्य थे।

·      तत्वार्थणिराय सूत्र की रचना उमा स्वाति ने की।

·      उज्जैन में जैन धर्म प्रचारक सुहास्ति था।

·      दक्षिण में जैन धर्म का आगमन भद्रबाहु के द्वारा हुआ।

·      न्यायवाद का सबंध जैन धर्म से है।

·      अजीव का विभाजन 1. पुदगल 2. काल 3. आकाष 4. धर्म 5. अधर्म है , जिसमें काल देश व्यापी अस्तिकण्य द्रव्यों में अपवाद है।

·      अनेकांतवाद या स्यादवाद जैन धर्म के अंर्तगत हैं

·      आगम साहित्य के अंर्तगत :- 12 अंग, 12 उपांग ( वर्तमान में8 उपलब्ध) , 10 प्रकीर्ण, 6 सूत्र, 4 मूल सूत्र, अनुयोग सूत्र तथा नंदी सूत्र / दोनों जैनियों के स्वतंत्र ग्रंथ तथा विश्वकोष माने जाते हैं।/

·      11 गणधरों के उपदेश 14 पर्वों में संकलित हैं।

·      जैन धर्म में स्यादवाद को सप्तभंगी सिद्धांत भी कहा गया हैं

·      जैन धर्म सृष्टि निर्माता के रूप में ईश्वर को नहीं मानता, उसकी मान्यता के अनुसार सृष्टि का निर्माण छः द्रव्यों जीव, पुदगल, धर्म, अधर्म आकाश तथा काल से हुआ है।

·      मथुरा शैली /150 से 3000पू0/ के प्रणेता मुख्य रूप से जैन धर्मावलंबी ही थे।

·      जैन तीर्थंकर नेमिनाथ को श्री कृष्ण का चचेरा भाई माना जाता हैं

·      पार्श्वनाथ की तपोभूमि भीलवाड़ा है।

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बौद्ध धर्म

प्रवर्तक :- गौतम बुद्ध

जन्म : 5630पू0 को बैशाख पूर्णिमा पर

प्रतीक : हाथी

जन्म स्थान : कपिलवस्तु से 14 मील दूर लुम्बिनीवन (नेपाल) में

पिता का नाम : शुद्धोधन

माता का नाम : महामाया( कोसल राजवंशी देवदह की राजकुमारी)

बुद्ध के अन्य नाम : सिद्धार्थ, शाक्यमुनि तथा मारजित

मौसी (पालिका): प्रजापति गौतमी

पत्नी : यशोधरा

बुद्ध के यौवनावस्था का प्रतीक : बैल

पुत्र का नाम :  राहुल

मृत्यु : ई0पू0 486

मृत्यु स्थान : कुशीनारा

29 वर्ष की अवस्था में गृहत्याग

·      गृहत्याग का प्रतीक : घोड़ा  (बुद्ध के घोड़े का नाम ‘ कैथल ‘ था।)

·      गृहत्याग की घटना : महाभिनिष्क्रमण

          ब्राम्हण विद्वान जो ज्ञान की खोज के दौरान प्रथम सांख्योपदेशक के रूप में राजगृह में मिलेः- आलार एवं उद्रक

उरूबेला :- बोधगया  का प्राचीन नाम जहां कौण्डिन्य आदि पांच ब्राम्हण साधक मिले, जिन्हें बुद्ध नें उपदेश दिया। यहीं पर सुजाता ने बुद्ध को खीर खिलाई थी। तथा इसी स्थान पर पीपल वृक्ष  के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ था। यह ज्ञान समाधि लगाने के 49 वें दिन प्राप्त हुआ तब सिद्धार्थ की आयु 35 वर्ष थी। उक्त पीपल का वृक्ष डुंगेश्वरी पर्वत पर अवस्थित था।

सारनाथ : ज्ञानोपार्जन के उपरांत पांच ब्राम्हणों को प्रथम उपदेश प्रदान किया यह घटना ‘‘ धर्म चक्र प्रवर्तन ’’ कहलाती है। सारनाथ का प्राचीन नाम ऋषिपत्तन था।

संबोधि : बैसाख माह की पूर्णिमा को ज्ञान प्राप्ति की घटना को संबोधि कहा जाता है।

पंचवर्गीय : प्रथमोपदेश प्राप्त पांच ब्राम्हण साधकों को पंचवर्गीय कह कर पुकारा गया है।

महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन संबंधी प्राप्त नवीन ज्ञान विचार को प्रचारित करने के लिए मगध को प्रमुख केन्द्र बनाया। राजबलि पाण्डेय के अनुसार यह संसार का पहला प्रचारक संघ है। बड़ी संख्या में शिष्य बने जिनमें ‘मोग्गलान ‘ ‘सारिपुत्र ‘ प्रमुख हैं। राजा बिम्बसार भी आपका प्रशंसक बन गया।

राजगृह के एक व्यापारी ‘अनाथपिण्डक ‘ नें जेतवन खरीद कर वहां पर एक विहार की स्थापना की। यद्यपि संघ की नींव मगध में रखी गई परन्तु इसकी वास्तविक प्रगति कौशल राज्य से हुई। कोशल नरेश प्रसेनजित भी बुद्ध का शिष्य बन गया।

·      बुद्ध ने वैशाली की राजनर्तकी आम्रपाली को भी अपना शिष्यत्व प्रदान किया।

·      अपने प्रमुख शिष्य आनंद के कहने पर मौसी गौतमी को प्रथम महिला के रूप में संघ में प्रवेश दिया। इसके पूर्व संघ में महिलाओं को अनुमति प्राप्त नहीं थी। तथा पृथक रूप से महिलाओं हेतु संघ स्थापित किया। गौतमी, बुद्ध के पिता शुद्धोधन की वैशाली में मृत्योपरांत संघ में सम्मिलित हुईं।

महापरिनिर्वाण :- 80 वर्ष की अवस्था में प्रचार के दौरान ‘ पावा ‘ नामक स्थान में अतिसार रोग हो गया, तब मल्लों की राजधानी कुशीनगर में प्राण त्याग दिए। यह घटना भी बैसाख माह की पूर्णिमा को घटित हुई। तब शिष्यों ने शालवन उपवन कुशीनगर में राम संभार तालाब के तट पर दो स्तूप उनके अवशेषों पर बनवाए। कुशीनगर वर्तमान उ0प्र0 में स्थित है। सम्पूर्ण भारत में बुद्ध के अस्थि अवशेषों पर 8 स्तूप बनवाए गए थे।

बौद्ध धर्म के सिद्धांत : बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के बारे में जानकारी ‘ त्रिपिटकों ’ से प्राप्त होती है। बुद्ध स्वयं नवीन धर्म की स्थापना नहीं अपितु प्राचीन धर्म में व्याप्त कुरीतियों को दूर करना चाहते थे।

चार आर्य सत्य :-

1. दुःख : संसार सदैव दुःख से परिपूर्ण है। सांसारिक सुख वास्तविकता नहीं है।

2. दुःख समुदाय : समुदाय का अर्थ ‘ कारण ’ है, अतः समस्त दुःखों का कारण तृष्णा है। और तृष्णा कारण अज्ञानता है। यही वजह है कि अपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति हेतु ही मनुष्य बार - बार जन्म लेता हैं।

3. दुःख निरोध : दुःखों को तृष्णा पर विजय प्राप्त कर ही दूर किया जा सकता है। दुःख निरोध को ही निर्वाण माना गया है। निर्वाण प्राप्तकर्त्ता को ‘‘ अर्हत ’’ कहा गया है।

4. दुःख निरोध मार्ग : अष्टांगिक मार्ग जिसे मध्य मार्ग भी कहा गया है। जो निम्नानुसार हैं -

1. सम्यक दृष्टि 2. सम्यक संकल्प 3. सम्यक वचन 4. सम्यक कर्म 5. सम्यक आजीव 6. सम्यक व्यायाम 7. सम्यक स्मृति 8. सम्यक समाधि

दसशील तथा आचरण :-

1. अहिंसा 2. सत्य 3. अस्तेय 4. अपरिग्रह 5. ब्रम्हचर्य / गृहस्थों हेतु/ 6. नृत्यगान का त्याग 7. सुगंधित द्रव्य का त्याग 8. समय पर भोजन 9. बिस्तर त्याग 10. धन त्याग  / सभी भिक्षुओं/

अनीश्वरर वाद :- संसार में ईश्वर का अस्तित्व नहीं है। यह संसार कार्य-कारण की श्रृंखला पर आधारित है।

प्रतीत्य समुत्पाद :-  एक वस्तु के विनाश के बाद दूसरी की उत्पत्ति

कर्मवाद :- कर्म के अनुसार ही फल मिलेगा यह अकाट्य हैं

अनात्मवाद और पुर्नजन्म :- मनुष्य का व्यक्तित्व संस्कारों का समूह होता है न कि आत्मा का। कर्मों का फल प्राप्ति हेतु पुर्नजन्म होता हैं।

·      बौद्ध धर्म वेद, कर्मकाण्ड और जात-पात में विश्वास नहीं रखता।

·      बौद्ध धर्म का अंतिम लक्ष्य निर्वाण / मोक्ष / प्राप्ति है।

बौद्ध धर्म के प्रसार के कारण :-

·      जटिलताओं से भरा तथा खर्चीला वैदिक धर्म।

·      बौद्ध धर्म के सरल सिद्धांत।

·      गौतम बुद्ध का व्यक्तित्व।

·      उपदेश की भाषा संस्कृत न हो कर लोक भाषा ‘पालि ‘ थी।

·      प्रतिद्वंद्वी धर्म का प्रबल न होना।

·      मजबूत बौद्ध धर्म संघ एवं संगठन।

·      राज प्रश्रय।

·      नालंदा तथा तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों का सहयोग।

·      बौद्ध धर्म ने समाज की दमित वर्ग को आकर्षित किया।   मुख्य कारण

बौद्ध संगीतियां :-

प्रथम संगीति :- 0पू0 483 को राजगृह, बिहार की सप्तवर्णी गुफा में महाकस्यप की अध्यक्षता में अजातशत्रु के राज्य काल में सम्पन्न हुई। 500 भिक्षुओं की उपस्थिति में दो पिटकों का संकलन हुआ।

1. विनय पिटक : शिष्य उपालि द्वारा पाठ जिसमें दैनिक चर्या का वर्णन है।

2. सुत्तपिटक : शिष्य आनंद द्वारा पठित इस पिटक को पांच निकायों में बांटा गया जिसमें बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का वर्णन है।

द्वितीय संगीति :- समय : ई0पू0 383, स्थान : वैशाली, बिहार के चुल्लबग्ग में।

अध्यक्ष : सर्वकामिनी

शासक : कालाशोक

उद्देश्य : भिक्षुओं के आपसी मतभेद दूर करने हेतु इस संगीति में कुल 700 भिक्षु उपस्थित थे।

इस संगीति का बहिष्कार करते हुए वैशाली के भिक्षओं ने धर्म का विभाजन कर दिया। ‘ महाकच्चायन ’ के नेतृत्व में ‘ थेरवादी ’ तथा महाकस्यप के नेत्त्व में ‘ महासांघिक ’ संप्रदाय प्रकट हुए। बौद्ध धर्म का पहला विभाजन इसी संगीति में हुआ था।

तृतीय संगीति :- समय : ई0पू0 250 , स्थान : पाटलिपुत्र

अध्यक्ष : मागलिपुत्त तिस्य

राजा : अशोक

इस संगीति में 1000 भिक्षुओं ने भाग लिया तथा तीसरे पिटक ‘ अभिधम्म पिटक ’ की रचना हुई। इस संगीति में ‘ थेरवादियों ’ का प्रभुत्व था।

चतुर्थ संगीति :- समय : प्रथम या द्वितीय सदी ईस्वी, स्थान : कुण्डलवन ( कश्मीर)

अध्यक्ष : वसुमित्र

उपाध्यक्ष : अश्वघोष

राजा : कनिष्क

500 भिक्षुओं की उपस्थिति में त्रिपिटिक पर प्रामाणिक भाष्य ‘‘ विभाषा शास्त्र ’’ की रचना हुई। इस सभा में महासांघिकों का वर्चस्व रहा तथा महायान शाख को मान्यता प्राप्त हुई। बुद्ध को अवलोकितेश्वर घोषित किया गया। इस संगीति के दौरान हीनयान संप्रदाय का जन्म हुआ।

पंचम संगीति :- स्थान : कन्नौज

अध्यक्ष : व्हेनसांग

राजा : हर्षवर्धन

बौद्ध संघ :-

प्रवेश नियम :

·      15 वर्ष की पूर्ण आयु के उपरांत दस भिक्षुओं के साक्षात्कार उत्तीर्ण होने पर।

·      संघ की व्यवस्था पूर्णतः गणतांत्रिक थी।

पातिमोक्ख :-

·      इसमें भिक्षुओं के लिए निषिद्ध अपराधों की सूची होती है।

वस्स :-

·      चार माह/वर्षा समय/ सभी भिक्षुक, संघ में रहते तथा शेष आठ माह धर्म का प्रचार करते।

·      संघ में स्वतंत्रता तथा केन्द्रीय सत्ता का अभाव होने से ही विभाजन हुआ।

बौद्ध सम्प्रदाय :-

हीनयान : द्वितीय संगीति के दौरान भिक्षुओं में असंतोष हो गया अतः चतुर्थ बौद्ध संगीति में बुद्ध द्वारा स्थापित मूलधर्म ने हीनयान की संज्ञा प्राप्त की।

महायान : इस सम्प्रदाय के संस्थापक नागार्जुन थे। इसका जन्म प्रथम शताब्दि ई्र0पू0 को आंध्रप्रदेश में हुआ था। जहां पर महासांघिकों का केंद्र था। तथा नागार्जुन, आर्यदेव, आसंग एवं वसुबंधु के नेतृत्व में यह पूर्ण प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ।

बौद्ध धर्म के जन्म के कारण :-

1. विदेशी धर्मों का प्रभाव

2. बुद्ध को अवतार मानना।   मुख्य

3. मूर्ति पूजा का प्रभावषील होना।

हीनयान तथा महायान सम्प्रदाय में अंतर :-

हीनयान                                                            महायान

1.       मूलतः स्थापित बौद्ध धर्म                             संशोधित तथा परिवर्तित रूप

2.       व्यक्ति विशेष को निर्वाण देना                        संपूर्ण विश्व के निर्वाण की कामना

3.       एक दार्शनिक सिद्धांत मात्र                            पूर्णतः धर्म स्वरूप

4.       बुद्ध उपदेश को मान मूर्ति पूजा का विरोध        बोधिसत्व तथा बुद्ध के आदर्श मान कर मूर्ति पूजा को महत्व

5.       पाली भाषा का प्रयोग                                संस्कृत भाषा का प्रयोग

6.       सभी को समान उपदेश                              साधक - शिष्यों को ‘ प्रकट ’’ तथा योग्य को ‘ गुह उपदेश ’

7.       सन्यास तथा ज्ञान प्रधान                             गृहस्थ एवं करूणा प्रधान

8.       बुद्ध को महापुरूष मानना                           बुद्ध को अवतरित देव मानना

9.       हीनयान की अपेक्षा महायान अधिक आशावादी था।

बौद्ध धर्म के पतन के कारणः-

·      शनैः - शनैः महायान धर्म का विस्तार हो जाना जो कि हिन्दू धर्म के समान हो गया।

·      संघों चरित्रहीनता तथा भ्रष्टाचार का फैलना। यह मुख्य कारण था जिसे स्वयं बुद्ध ने स्वीकार किया था।

·      गुप्तकाल से धर्म को राज प्रश्रय प्राप्त होना बंद हो गया।

·      राजपूतों का प्रादुर्भाव से ब्राम्हण धर्म का उत्थान।

·      बौद्धों की तांत्रिक शाखा ‘ वज्रयान ’ का उदय।

·      वैदेशिक आक्रमण में मठों तथा सहयोगी विश्वविद्यालयों जला देना।

बौद्ध धर्म की भारतीय संस्कृति को देनः‘

आठवीं से बारहवीं सदी तक इस धर्म की ज्योति, वर्धन एवं पाल शासकों के संरक्षण में बंगाल एवं बिहार में जलती रही परन्तु विदेशी हमले से वह बुझ गई। 1200 ईस्वी में बौद्ध धर्म के जीवंत स्वरूप का इस देश से लोप हो गया। परन्तु भारतीय संस्कृति के प्रति इसका योगदान एवं प्रभाव निम्नानुसार है :-

साहित्यिक देन :

प्रमुख बौद्ध साहित्य एवं उनमें वर्णित तथ्य :

1. विनय पिटक :

अ. सुत्त विभंग - इसमें 226 अपराधों की सूची दी गई है तथा सुत्तों की व्याख्या की गई है। इसके दो भाग हैं।

1. महाविभंग 2. मिक्खिनी विभंग

ब. खन्धका - भिक्षु दिनचर्या का पूर्णोल्लेख है। इसके भी दो भाग है।।

1. महावग्ग 2. चुल्लवग्ग

स. परिवार - पूर्वोक्त /सुत्त एवं खंदक/ की अनुक्रमणिका तथा सारांष इसमें वर्णित है।

द. पातिमोक्ख/प्रतिमोक्ष/नियम - जिन सुत्तों की व्याख्या की गई है उन्हें प्रतिमोक्ष कहा गया है।

2. सुत्त पिटक :

यह बौद्ध साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। जिसका विभाजन निम्नानुसार है -

अ. दीर्घनिकाय - इसके प्रमुख उपभाग हैं - महापरिनिर्वाण सुत्त, तेवज्जि सुत्त / इसमें ब्राम्हण वषिष्ठ तथा बुद्ध के बीच वाद विवाद का उल्लेख है/ तथा अन्य 32 सुत्त जिनमें विमानवत्थु, पन्थवत्थु, उदान, सुत्तनिपत्ति प्रमुख है। यह सबसे बड़ा निकाय है। जिसमें बौद्ध धर्म सिद्धांतों का वर्णन है।

ब. मज्झिम निकाय - इसमें कुल 152 सुत्त है। जिनमें अष्टांगिक मार्ग की चर्चा की गई है।

स. संयुत्त निकाय -

द. अंगुत्तर निकाय - इसमें सर्वप्रथम सोलह महाजनपदों का उल्लेख मिलता है।

इ. खुंद्दक निकाय - इसके अंतर्गत थेरीगाथा व थेरागाथा में भिक्षु - भिक्षुओं का जीवन वृत्त। जातक, अंग, अवदान, विमान व पेत्वत्थु तथा रतिबुत्तक इसके ही अंर्तगत आते हैं।

3. अभिधम्म पिटक :-

इसके संबंध में रीज डेविड के कथन प्रसिद्ध है।

अन्य प्रमुख बौद्ध ग्रंथ नि0लि0 हैं - दीपवंश, महावंश, दिव्यावदान/संस्कृत में रचित इस ग्रंथ में अंतिम मौर्य शासकों तथा पुष्यमित्र शुंग का वर्णन है।

·      दार्शनिक देन :

·      कला की देन : गांधार एवं मथुरा कला पर प्रभाव स्पष्ट है।

·      संघ व्यवस्था :

·      भारतीय संस्कृति का प्रसार :

·      राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक प्रभावः

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य :-

·      हीनयान को श्रावकयान भी कहा गया है।

·      स्वर्ग को धर्म में सुखावती कहा गया है।

·      तथागत द्वारा धर्म चक्षु प्राप्त पंचवर्गीय में से ज्ञात तीन ब्राम्हण - 1. कौडिण्य 2. भद्रिक 3. अश्वजित

·      बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश परिव्राजक ‘‘ सुभच्छ ’’ को दिया।

·      सारिपुत्र, मोग्गालयन, आनंद, उपालि को सुभच्छ कहा गया है।

·      द्वितीय बौद्ध संगीति ‘‘ यष ’’ नामक भिक्षु द्वारा दस शीलों को धर्म विरोधी कहने के कारण हुई थी।

·      कामवासना पर विजय प्राप्त कर लेने के कारण बुद्ध मारजित कहलाए।

·      अष्टांगिक मार्ग तीन श्रेणी में विभाजित है - 1. प्रज्ञा स्कंध 2. शील स्कंध 3. समाधि स्कंध

·      थेरपंथी सर्वाधिक रूढ़िवादी सम्प्रदाय था , जिसका केंद्र कौशाम्बी में स्थित था।

·      जैन ग्रंथ प्राकृत तथा बौद्ध ग्रंध भाषा में लिखे गए थे।

·      बुद्ध के उपदेष की भाषा ‘ मागधी ’ थी।

·      बुद्ध स्वयं ‘ पायर्वनाथ’ से प्रभावित थे।

·      महायानी बाधिसत्व अवलोकितेश्वर - पद्मपाणि,

·      शाक्यों द्वारा पिपरहवा जिला सिद्धार्थनगर में सर्वप्राचीन ब्राम्हीलिपि में लिखित लेख प्राप्त हुआ है।

·      वज्रसूची के रचनाकार अश्वघोष हैं कुछ लोग भ्रमवष ‘ धर्मकीर्ति ’ को इसका लेखक मानते हैं।

·      बौद्ध उपासना गृहों को ‘‘ चैत्य ’’ कहा जाता है।

·      सुत्त ’ शब्द बौद्ध साहित्य से संबंधित है।

·      प्रथम बौद्ध धर्म प्रचार संघ की स्थापना मगध में की गई।

·      पालि भाषा में रचित ‘ आगम ’ बौद्धों के मध्य वेद तुल्य माना जाता है।

·      पालि  आगमों का सबसे बड़ा टीकाकार ‘ बुद्धघोष ’/ विशुद्धि मग्ग/ हैं।

·      हीनयान ग्रंथ में महावस्तु संस्कृत में रचित है तथा महायान ग्रंथों में वैपुल्य सूत्र एवं ललित विस्तार प्रमुख हैं।

·      महायान शाखा की महत्तवपूर्ण दार्शनिक पुस्तक प्रज्ञा पारमिता है।

प्रमुख बुद्ध शब्दावलि -

o  आयतन - वस्तु का ज्ञान

o  निस्साय - नवीन भिक्षु

o  देवदत्त - अग्र श्रावक उपासक

o  आराम - भिक्षुओं के स्थाई निवास

o  अधिकरण - संघ सदस्यों के बीच मतभेद

o  उपोसथ - भिक्षु सत्संग

o  धम्मपद - इसे बौद्ध धर्म की गीता कहा गया है।

·      हिन्दु धर्म, जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म से किस कारण भिन्न है। - आस्तिकता

·      वर्तमान विश्व बौद्ध धर्म का ऋणी है क्योंकि यह मध्यम मार्गी है।

·      भारत में बौद्ध धर्म के पतन का कारण मठों में भ्रष्टाचार का होना है।

·      भावी बुद्ध संबंधी धार्मिक विश्वास का केन्द्र बिन्दु मंजुश्री द्वारा शिक्षित मैत्रेय हैं।

·      संस्कृत में लिखित ललित विस्तर में हिन्दु तीर्थ चित्रकूट का वर्णन है।

·      कुशीनगर - यहां से 34 मील गोलाई का राम संभार स्तूप प्राप्त हुआ है।

·      पद्य रूप में रचित जातक कथाओं का प्रथम गद्यानुवाद ‘ सिंहली भाषा ’ में हुआ था।

·      निदान कथा, पिटकों के आधार पर बुद्ध के चरित्र पर टीकाएं हैं।

·      अवदान में बौद्ध साहित्य की दंत कथाएं हैं।

·      बुद्ध के विचारों पर उपनिषदों का प्रभाव परिलक्षित होता है।

·      बौद्ध धर्म में लाए गए प्रस्ताव अनुश्रावन कहलाते हैं।

·      बौद्ध स्त्रोतों में वर्ण क्रम में क्षत्रियों को प्रथम स्थान प्राप्त है।

·      बुद्ध के जीवन की समानता रीज डेविड द्वारा ईसा मसीह से की गई है।

·      धर्म प्रचार एवं परिवर्तन की भावना तृतीय बौद्ध संगीति से जागृत हुई।

 


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