औद्योगीकरण का युग
महत्वपूर्ण तथ्य
परिचय :-
·
जिस युग में
हस्तनिर्मित वस्तुएं बनाना कम हुई और फैक्ट्री, मशीन एवं तकनीक का विकास हुआ उसे
औद्योगीकरण का युग कहते हैं ।
·
प्राच्य - यूरोप
के पूर्व की दिशा में स्थित देश।
· डॉन ऑफ द सेंचुरी (1900) - मशीन और तकनीक का महिमामंडन करने वाली संगीत की किताब जिसे संगीत
कम्पनी ई.टी पॉल ने प्रकाशित कराई थी।
औद्योगिक क्रांति से पहले :-
· औद्योगीकरण की शुरूवात को सामान्य तौर पर मशीनीकृत कारखानों की
स्थापना के साथ ही माना जाता है किन्तु ब्रिटेन में इसके पहले भी औद्यौगिक उत्पादन
बिना फैक्ट्रियों के होता था। इस युग को आदि- औद्योगीकरण अथवा प्रोटो औद्योगीकरण
कहते हैं।
·
आदि औद्योगीकरण
के दौर में व्यवसायी अपने उत्पादन के लिए गांवों के कारीगरों से बाजार के लिए
उत्पादन करवाते थे और बदले में उनको पैसा देते थे। इसे वाणिज्यिक लेन देन का
हिस्सा माना जाता था।
·
स्टेपलर - ऐसा व्यक्ति जो रेशों के हिसाब से ऊन को स्टेपल करता है या छाँटता
है।
·
फुलर - ऐसा व्यक्ति जो फुल करता है यानि चुन्नटों के सहारे कपड़ों को
समेटता है।
·
कार्डिंग - वह प्रक्रिया जिसमें कपास या ऊन आदि रेषों को कताई के लिए तैयार
किया जाता है।
·
आदि - औद्योगीकरण के दौर में उत्पादन कारखानों के बजाए घरों में होता था।
· इसमें खेतिहर समाज औद्योगिक समाज में बदल गई ।
कारखानों का उदय :-
· सबसे पहले इंग्लैंड में 1730 के दशक में कारखाने खुले।
·
कपास (कॉटन) नए
का पहला प्रतीक थी।
·
सूती कपड़ा मिल
की रूपरेखा रिचर्ड आर्कराइट ने रखी।
· कारखानों से लाभ - कारखानों की
स्थापना के पूर्व उत्पादन देहातों में फैला हुआ था जिसकी वजह से निगरानी, गुणवत्ता और
अन्य कारकों पर ध्यान देना संभव नहीं था कारखानों की स्थापना के बाद जब उत्पादन की
सारी प्रक्रिया एक ही छत के नीचे आ गई तो ये सारे काम संभव हो गए।
औद्योगिक परिवर्तन की रफ्तार :-
· ब्रिटेन में सूती कपड़ा और धातु उद्योग सबसे गतिशील उद्योग थे।
औद्योगीकरण के पहले दौर में (1840 के दशक तक) सूती कपड़ा उद्योग अग्रणी क्षेत्रक था। रेलवे के प्रसार के
बाद लोहा इस्पात उद्योग में तेजी से वृद्धि हुई।
·
औद्योगीकरण का
रोजगार पर खास असर नहीं पड़ा था। कुल मजदूरों का बीस प्रतिशत से भी कम मजदूर
कारखानों में कार्यरत था। इससे यह पता चलता है कि नये उद्योग पारंपरिक उद्योगों को
विस्थापित नहीं कर पाये थे।
·
सूती कपड़ा और
धातु उद्योग पारंपरिक उद्योगों में बदलाव नहीं ला पाये। लेकिन पारंपरिक उद्योगों
में भी कई परिवर्तन हुए। ये परिवर्तन बड़े ही साधारण से दिखने वाले लेकिन नई खोजों
के कारण हुए। इस तरह के उद्योगों के उदाहरण हैं; खाद्य संसाधन, भवन निर्माण, बर्तन निर्माण, काँच, चमड़ा उद्योग, फर्नीचर, आदि।
·
प्रौद्योगिक
बदलावों की गति धीमी थी। जैसा कि आज भी हम देखते हैं; नई तकनीक को पैर
जमाने में काफी वक्त लगता है और आरंभ में ये मशीनें महंगी भी होती थीं और उनके
मरम्मत में भी काफी खर्च लगता था। इसलिये व्यापारी और उद्योगपति नई मशीनों से दूर
ही रहना पसंद करते थे। आविष्कारकों या निर्माताओं के दावों के विपरीत नई मशीनें
बहुत कुशल भी नहीं थीं।
·
भाप के इंजन का
शुरूआती मॉडल जेम्स वॉट ने न्यूकॉमेन से लिया और उसमें सुधार किया और पेटेंट करा
लिया। भाप इंजन का उत्पादन जेम्स वॉट के दोस्त उद्योगपति मैथ्यू बूल्टन ने किया
किन्तु लंबे समय तक उनको कोई खरीददार नहीं मिला।
· इतिहासकार इस बात को मानते हैं कि उन्नीसवीं सदी के मध्य का एक औसत
मजदूर कोई मशीन चलाने वाला नहीं बल्कि एक पारंपरिक कारीगर या श्रमिक होता था।
हाथ का श्रम और वाष्प शक्ति :-
· उस जमाने में (विक्टोरिया काल) मजदूरों की कोई कमी नहीं होती थी।
इसलिये मजदूरों की किल्लत या ज्यादा वेतन देने की कोई समस्या नहीं थी। तो महंगी
मशीनों में पूँजी लगाने की अपेक्षा श्रमिकों से काम लेना ही बेहतर समझा जाता था।
·
मशीन से बनी
चीजें एक ही जैसी होती थीं। जबकि हाथ से बनी चीजों में विविधता होती थी साथ ही
गुणवत्ता और सुंदरता में उनका मुकाबला मशीनी उत्पाद नहीं कर सकता था। उच्च वर्ग के
लोग हाथ से बनी हुई चीजों को अधिक पसंद करते थे।
· उन्नीसवीं सदी के अमेरिका में स्थिति कुछ अलग थी। वहाँ पर मजदूरों की
कमी होने के कारण मशीनीकरण ही एकमात्र रास्ता बचा था।
मजदूरों की जिंदगी :-
· काम की तलाश में भारी संख्या में लोग गाँवों से शहरों की ओर पलायन कर
रहे थे। नौकरी मिलने की संभावना इस बात पर निर्भर थी कि किसी के कितने अधिक दोस्त
या रिश्तेदार पहले से ही वहाँ काम पर लगे हैं। जान पहचान के बिना नौकरी मिलना बहुत
कठिन होता था।
·
ऐसे लोग जो बिना
जान पहचान के नौकरी की तलाश में चले जाते थे उनको महीनों तक नौकरी पाने का इंतजार
करना होता था। ऐसे लोग बेघर होते थे जिन्हें पुलों या रैन बसेरों में अपनी रातें
बितानी पड़ती थी। कई लोग निजी रैन बसेरां में रूकते थे। गरीबों के लिए बनी सरकार भी
रूकने की व्यवस्था करती थी।
·
कई नौकरियाँ साल
के कुछ गिने चुने महीनों में ही मिलती थीं। जैसे ही वे व्यस्त महीने समाप्त हो
जाते थे तो बेचारे गरीब फिर से सड़क पर आ जाते थे। उनमें से कुछ तो अपने गाँव लौट
जाते थे लेकिन ज्यादातर शहर में ही रुक जाते थे ताकि छोटे मोटे काम पा सकें।
·
उन्नीसवीं सदी
की शुरुआत में पारिश्रमिक में थोड़ा सा इजाफा हुआ था। लेकिन विभिन्न क्षेत्रकों के
आँकड़े प्राप्त करना मुश्किल है क्योंकि उनमें हर साल काफी उतार चढ़ाव होता था। किसी
भी श्रमिक के जीवन स्तर पर नियोजन की अवधि का पूरा असर पड़ता था।
· यदि किसी को साल के बारहों महीने काम मिल जाता था तो उसका जीवन सुखी
रहता था। यदि किसी को साल के दो चार महीने ही काम मिलता था उसकी समस्याएँ जैसी की
तैसी रहती थीं।
स्पिनिंग जेनी :-
· कई बार बेरोजगारी के डर से श्रमिक लोग नई तकनीक का जमकर विरोध करते
थे। उदाहरण के लिए जब स्पिनिंग जेनी को लाया गया तो महिलाओं ने इन नई मशीनों को
तोड़ना शुरु किया। उन महिलाओं को अपना रोजगार छिन जाने का डर था।
उपनिवेशों में
औद्योगीकरण :-
भारत में कपड़े का युग :-
· मशीन कपड़ा उत्पादन के पहले भारत का रेशमी और सूती कपड़ा विश्व विख्यात
था।
·
आर्मीनियन और
फारसी व्यापारी इसका व्यापार करते थे।
·
कपड़ा व्यापार
स्थल मार्ग पर ऊँटों से पश्चिमोत्तर सीमा के दर्रों से तथा समुद्री मार्ग पर सूरत, मछलीपटनम तथा
हुगली बंदरगाहों से होता था।
·
कपड़ा उत्पादन का
तौर तरीका वही था जिसमें बुनकारों को कपड़ा उत्पादन का ठेका दे दिया जाता था और माल
तैयार होने पर सौंप दिया जाता था।
·
1750 के दशक में भारतीय सौदागरों का वर्चस्व कम होने लगा। क्योंकि अब
यूरोपीय कंपनियों की ताकत बढ़ने लगी थी।
·
सूरत और हुगली
की जगह यूरोपीय कंपनियों के नियंत्रण में मुंबई और कलकत्ता बंदरगाह विकसित होने
लगे थे।
· राजाओं से सहूलियतें हासिल कर यूरोपीय प्रभुत्व वाली ब्रिटिश ईस्ट
इंडिया कम्पनी ने अपनी राजनैतिक प्रभुता स्थापित कर ली तो इसने व्यापार पर अपने
एकाधिकार को जताना शुरु कर दिया।
बुनकरों का क्या हुआ?
· प्लासी के युद्ध 1757 के पूर्व ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को दूसरी अन्य यूरोपीय कंपनियों
से मुकाबला करना पड़ रहा था। इससे भारत का
कपड़ा निर्यात प्रभावित नहीं हुआ। किन्तु ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा
राजनीतिक सत्ता स्थापित करने के बाद कपड़ा व्यापार पर एकाधिकार हो गया। और कंपनी ने प्रबंधन और नियंत्रण की नई
व्यवस्था कायम की।
·
कम्पनी ने कपड़ा
व्यवसाय से जुड़े हुए पारंपरिक व्यापारियों और दलालों को उखाड़ना शुरु किया। उसके
बाद कम्पनी ने बुनकरों पर सीधा नियंत्रण बनाने की कोशिश की। इस काम के लिए लोगों
को वेतन पर रखा गया। ऐसे लोगों को गुमाश्ता कहा जाता था। गुमाश्ता का काम था
बुनकरों के काम की निगरानी करना, आने वाले माल का संग्रहण करना और कपड़े की क्वालिटी की जाँच करना।
·
कम्पनी यह कोशिश
भी करती थी कि बुनकर किसी दूसरे ग्राहक के साथ डील न कर लें। इसके लिए बुनकरों को
काम के बदले एडवांस में रकम दी जाने लगी और कच्चे माल की खरीदी के लिए भी गुमाश्ता
के माध्यम से कर्ज दिया जाता। अब बना हुआ कपड़ा बुनकर गुमाश्ता को ही बेचने बाध्य
थे।
·
एडवांस के इस
नये सिस्टम ने बुनकरों के लिए कई समस्याएँ खड़ी कर दी। पहले वे खाली समय में थोड़ी
बहुत खेती कर लेते थे ताकि परिवार का पेट भरने के लिये काम भर का अनाज उगा सकें।
अब उनके पास खाली समय नहीं बचता था। और ज्यादा कमाई के फेर में खेती पर ध्यान देना
कम कर दिया। उन्हें अपनी जमीन काश्तकारों को देनी पड़ती थी।
·
गुमाश्ता एक
बाहरी व्यक्ति था जबकि इसके पहले सौदागर गांव का ही व्यक्ति होता था जो बाहरी
सौदागरों के बीच बिचौलिया की तरह काम करता था। समय पर काम न पूरा होने की स्थिति
में गुमाश्ता पुलिस की मदद लेता और बुनकरों तथा गुमाश्ता में अकसर टकराव होने लगे।
· ऐसे में काफी कर्जदार बुनकर गांव छोड़कर चले गए तथा कई बुनकरों ने
एडवांस लेने से मना कर दिया और अपनी दुकान बंद कर दी और खेती करने लगे।
भारत में मैनचेस्टर का आना :-
· 1772 में हेनरी पतुलो
ने भारतीय कपड़ो के सम्मान में कहा कि ‘‘भारतीय कपड़े की मांग विदेशों में कभी कम
नहीं हो सकती क्योंकि इस गुणवत्ता का कपड़ा विश्व में कहीं और बनता ही नहीं है।’’
फिर भी उन्नीसवीं सदी की शुरूवात में ही कपड़ा निर्यात में गिरावट आने लगी।
·
जब इंग्लैंड में
कपड़ा उद्योग विकसित होने लगा तो भारत से आने वाले कपड़े से वे परेशान होने लगे और
ब्रिटेन के निर्माताओं के दबाव के कारण सरकार ने ब्रिटेन में आयात शुल्क (इंपोर्ट
ड्यूटी) लगा दिया। और ईस्ट इंडिया कंपनी को इंग्लैंड की मशीनों से बनो कपड़ा भारत
में बेचने को कहा गया।
·
भारत में हाथ से
बने सूती कपड़ों की तुलना में मैनचेस्टर की मशीन से बने हुए कपड़े अधिक सस्ते थे।
इसलिये बुनकरों का बाजार सिकुड़ने लगा। और बुनकर बेरोजगार होने लगे।
·
1860 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में गृह युद्ध शुरु हो चुका था।
इसलिए वहाँ से ब्रिटेन को मिलने वाले कपास की सप्लाई बंद हो चुकी थी। इसके
परिणामस्वरूप ब्रिटेन को भारत की ओर मुँह करना पड़ा। अब भारत से कपास ब्रिटेन को
निर्यात होने लगा। इससे भारत के बुनकरों के लिए कच्चे कपास की भारी कमी हो गई।
· उन्नीसवीं सदी के अंत तक भारत में भी सूती कपड़े के कारखाने खुलने लगे।
भारत के पारंपरिक सूती कपड़ा उद्योग के लिए यह किसी आखिरी आघात से कम न था।
फैक्ट्रियों का आना :-
· बम्बई में पहला सूती कपड़ा मिल 1854 में बनी।
·
देश की पहली जूट
मिल 1855 में बंगाल में
खुली।
·
उत्तरी भारत में
एल्गिन मिल 1860 के दशक में कानपुर में खुली।
· 1874 में मद्रास में
पहली कताई और बुनाई मिल खुली।
प्रारंभिक उद्यमी :-
· अंग्रेज भारतीय अफीम चीन को बेचते और बदले में चायपत्ती लेते जिसे
इंग्लैंड भेजते।
·
इस लेन देन में
भारतीय व्यापारियों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और अच्छी पूंजी बना ली। तथा खुद भी
कारखाने डालने का सोचने लगे।
·
ऐसे लोगों में
द्वारकानाथ टैगोर एक अग्रणी व्यक्ति थे जिन्होंने उद्योग लगाने शुरु किये। लेकिन 1840 में व्यापार
संकट के दौर में टैगोर का उद्योग तबाह हो गया।
·
बम्बई में दिनशॉ
पेटिट और जमशेदजी नसेरवनजी टाटा जैसे पारसी लोगों ने बड़े बड़े उद्योग स्थापित किये।
·
कलकत्ता में
पहला जूट मिल 1917 में एक मारवाड़ी उद्यमी सेठ हुकुमचंद द्वारा खोला गया था। इसी तरह से
चीन से सफल व्यापार करने वालों ने बिड़ला ग्रुप को बनाया था।
·
मद्रास के
सौदागरों का व्यापार बर्मा से होता था।
·
भारत के व्यवसाय
पर अंग्रेजों का ऐसा शिकंजा था कि उसमें भारतीय व्यापारियों को आगे बढ़ने के लिए
अवसर ही नहीं थे।
· हीगलर्स एंड कंपनी, एंड्रयू यूल और जार्डीन स्किनर जैसी अंग्रेजी कंपनियों का बोलबाला हो
गया।
मजदूर कहाँ से आए :-
· पहले विश्व युद्ध तक भारतीय उद्योग के अधिकतम हिस्से पर यूरोप की
एजेंसियों की पकड़ हुआ करती थी।
·
ज्यादातर
औद्योगिक क्षेत्रों में आस पास के जिलों से मजदूर आते थे। इनमें से अधिकांश मजदूर
आस पास के गाँवों से पलायन करके आये थे। फसल की कटाई और त्योहारों के समय वे अपने
गाँव भी जाते थे ताकि अपनी जड़ों से भी जुड़े रहें। ऐसा आज भी देखने को मिलता है।
दिल्ली और पंजाब में काम करने वाले मजदूर छुट्टियों में बिहार और उत्तर प्रदेश
वापस जाते हैं।
·
कुछ समय बीतने
के बाद, लोग काम की तलाश
में ज्यादा अधिक दूरी तक भी जाने लगे। उदाहरण के लिए यूनाइटेड प्रोविंस (उत्तर
प्रदेश) के लोग भी बम्बई और कलकत्ता की तरफ पलायन करने लगे।
· जॉबर - उद्योगपति अक्सर लोगों को काम पर रखने के लिए
जॉबर की मदद लेते थे जो किसी प्लेसमेंट कंसल्टेंट की तरह काम करता था। अक्सर कोई
पुराना और भरोसेमंद मजदूर जॉबर बन जाता था। जॉबर अक्सर अपने गाँव के लोगों को
प्रश्रय देता था। वह उन्हें शहर में बसने में मदद करता था और जरूरत के समय कर्ज भी
देता था। इस तरह से जॉबर एक प्रभावशाली व्यक्ति बन गया था। वह लोगों से बदले में
पैसे और उपहार माँगता था और मजदूरों के जीवन में भी दखल देता था।
औद्योगिक विकास का अनूठापन
· यूरोप की व्यापारिक मैनेजमेंट एजेंसियां केवल उन उत्पादों में ही रुचि
दिखाती थी।जिनको भारत से निर्यात किया जा सके। जैसे - चाय और कॉफी के बागानों, खनन, नील और जूट पर
लगाती थीं।
·
भारत के
व्यवसायी अपने बाजार में मैनचेस्टर के कपड़े से प्रतिस्पर्धा नहीं करना चाहते थे।
उदाहरण के लिए वे सूत के मोटे धागे के कपड़े बनाते थे जिनका इस्तेमाल या तो हथकरघा
वाले करते थे या जिनका निर्यात चीन को होता था।
·
बीसवीं सदी के
पहले दशक तक औद्योगीकरण पैटर्न में कई बदलाव आ चुके थे। देश में स्वदेशी आंदोलन
जोर पकड़ रहा था। अपने सामूहिक हितों के लिए औद्योगिक समूहों ने संगठित होना शुरु
कर दिया था। दूसरी तरफ चीनी और जापानी मिलों के उत्पाद जब चीन में आए तो भारतीय
निर्यात गिर गया। तब उन्होंने सरकार पर आयात शुल्क बढ़ाने और अन्य रियायतें देने के
लिए दबाव डाला। अब भारतीय उत्पादकों ने सूती धागे को छोड़कर वस्त्र बनाने पर अधिक
जोर दिया।
·
पहले विश्व
युद्ध तक उद्योग के विकास की दर धीमी थी। युद्ध ने स्थिति बदल दी। ब्रिटेन की कपड़ा
मिलों में सेना की जरूरतों को पूरा करने का दबाव बना तो भारत में आयात (ब्रिटेन से
भारत आने वाले माल में कमी) घट गया। अब भारत की मिलों को लोकल का बड़ा बाजार उपहार
में मिल गया। बल्कि जब युद्ध ज्यादा लंबा खिंचा तो भारत की मिलों को ब्रिटेन की
सेना के लिए सामान बनाने के लिए भी कहा गया। इस तरह से घरेलू और विदेशी बाजारों
में माँग बढ़ गई। इससे उद्योग धंधे में तेजी आ गई।
· युद्ध खत्म होने के बाद आधुनिकीकरण न कर पाने के कारण ब्रिटेन पिछड़ने
लगा और अमेरिका तथा जर्मनी व जापान आगे निकल गए। और ब्रिटेन के कपड़ा उद्योग के
कमजोर होने का लाभ भारतीय व्यापारियों को मिलने लगा।
लघु उद्योगों का वर्चस्व :-
· उद्योग में वृद्धि के बावजूद अर्थव्यवस्था में बड़े उद्योगों की
हिस्सेदारी बहुत कम थी।
· लगभग 67% बड़े उद्योग बंगाल और बम्बई में थे। देश के बाकी हिस्सों में लघु
उद्योग का बोलबाला था। हथकरघा पर बने कपड़े का उत्पादन 1900 से 1940 के बीच तीन
गुना हो गया था।
लघु उद्योगों का वर्चस्व क्यों हुआ?
· हथकरघा उद्योग में लोगों ने नई टेक्नॉलोजी को अपनाया। बुनकरों ने अपने
करघों में फ्लाई शटल का इस्तेमाल शुरु किया। जिससे हथकरघा के क्षेत्र में उत्पादन
क्षमता बढ़ गई थी।
वस्तुओं के लिए बाजार
· विज्ञापन :- विज्ञापन नए उपभोक्ताओं को जोड़ने का सबसे अच्छा तरीका है।
विभिन्न विभिन्न उत्पदों को जरूरी और वांछनीय बना देते हैं। वे लोगों की सोच को
बदल देते हैं।
·
औद्योगीकरण की
शुरूवात ने विज्ञापनों को जगह दी। ’मेड इन मैनचेस्टर’ का लेबल क्वालिटी का प्रतीक
माना जाता था। इन लेबल पर सुंदर चित्र भी होते थे। इन चित्रों में अक्सर भारतीय
देवी देवताओं की तस्वीर होती थी। जिससे स्थानीय लोग जुड़ाव महसूस करते थे।
·
उन्नीसवीं सदी
के उत्तरार्ध तक उत्पादकों ने अपने उत्पादों को मशहूर बनाने के लिए कैलेंडर बाँटने
भी शुरु कर दिये थे। किसी अखबार या पत्रिका की तुलना में एक कैलेंडर की शेल्फ लाइफ
लंबी होती है। यह पूरे साल तक ब्रांड रिमाइंडर का काम करता था।
·
भारत के उत्पादक
अपने विज्ञापनों में अक्सर राष्ट्रवादी संदेशों को प्रमुखता देते थे ताकि अपने
ग्राहकों से सीधे तौर पर जुड़ सकें।
- अध्याय के अंत में दिए गए प्रश्नों के
उत्तर –
1. निम्नलिखित की व्याख्या करें –
(क) ब्रिटेन की महिला
कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले किये।
उत्तर - महिलाएँ हाथ से कपड़े बुनती थीं। उन्हें डर था कि स्पिनिंग जेनी के
आने से उनका रोजगार छिन जायेगा। इसलिये महिलाओं ने स्पिनिंग जेनी का विरोध किया।
(ख) सत्रहवीं शताब्दी में यूरोपीय
शहरों के सौदागर गाँवों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे।
उत्तर - शहरों में ट्रेड और क्राफ्ट गिल्ड बहुत शक्तिशाली होते थे। इस
प्रकार के संगठन प्रतिस्पर्धा और कीमतों पर अपना नियंत्रण रखते थे। वे नये लोगों
को बाजार में काम शुरु करने से भी रोकते थे। इसलिये किसी भी व्यापारी के लिये शहर
में नया व्यवसाय शुरु करना मुश्किल होता था। इसलिये वे गाँवों की ओर चल दिए।
गाँवों में भी बाड़ाबंदी के कारण छोटे छोटे किसानों की आजीविका कठिन हो गई थी और वे
सौदागरों के लिए काम करने को तैयार हो गए।
(ग) सूरत बंदरगाह अठारहवीं
सदी के अंत तक हाशिये पर पहुँच गया।
उत्तर - मशीन उद्योगों के युग से पहले अंतर्राष्ट्रीय कपड़ा बाजार में भारत
में रेशमी और सूती उत्पादों का दबदबा रहता था। गुजरात के तट पर स्थित बंदरगाह के
जरिए भारत खाड़ी और लाल सागर के बंदरगाहों से जुड़ा हुआ था। निर्यात व्यापार के इस
नेटवर्क में बहुत सारे भारत व्यापारी और बैंकर सक्रिय थे। 1750 के दशक तक भारतीय सौदागरों के नियंत्रण वाला यह
नेटवर्क टूटने लगा था। यूरोपीय कंपनियों की ताकत बढ़ती जा रही थी। पहले उन्होंने
स्थानीय दरबारों से कई तरह की रियातें हासिल की और इसके बाद उन्होंने व्यापार पर
एकाधिकार प्राप्त कर लिया। इससे सूरत बंदरगाह से होने वाले निर्यात में नाटकीय कमी
आई और यह बंदरगाह हाशिए पर चला गया।
(घ) ईस्ट इंडिया कम्पनी ने
भारत में बुनकरों पर निगरानी रखने के लिए गुमाश्तों को नियुक्त किया।
उत्तर -
ईस्ट इंडिया कंपनी भारत के वस्त्र व्यापार पर अपना
एकाधिकार स्थापित करना चाहती थी। अतः कंपनी ने वस्त्र व्यापर की प्रतिस्पर्धा को
खत्म करने, लागतों पर अंकुश
रखने और कपास का रेशम से बनी चीजों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए
प्रबंधन व नियंत्रण की एक नई व्यवस्था लागू कर दी।
कंपनी ने कपड़ा व्यापार में क्रियाशील व्यापारियों और
दलालों को समाप्त करने तथा बुनकरों पर अधिक प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने का
प्रयत्न किया। कंपनी ने बुनकरों पर निगरानी रखने,
माल एकत्रित करने और कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी
कर्मचारी तैनात कर दिए जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था।
2. प्रत्येक के आगे सही या गलत लिखें –
(क) उन्नीसवीं सदी आखिर में यूरोप की कुल श्रम शक्ति का 80
प्रतिशत तकनीकी रूप से विकसित औद्योगिक क्षेत्र में काम कर रहा था।
(ख) अठारहवीं सदी तक महीन कपडे के अन्तराष्ट्रीय बाज़ार पर
भारत का दबदबा था।
(ग) अमेरिकी गृहयुद्ध के फलस्वरूप भारत के कपास निर्यात में
कमी आई।
(घ) फ्लाई शटल के आने से हथकरघा कामगारों की उत्पादकता में
सुधार हुआ।
3. पूर्व औद्योगीकरण का मतलब
बताएं।
उत्तरः यूरोप में औद्योगीकरण के पहले के काल को पूर्व
औद्योगीकरण का काल कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यूरोप में सबसे पहले
कारखाने लगने के पहले के काल को पूर्व औद्योगीकरण का काल कहते हैं।
चर्चा करें –
1. उन्नीसवीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों
की बजाए हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता क्यों देते थे।
उत्तर - उन्नीसवीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों
की बजाए हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता देते थे इसके
निम्नलिखित कारण थे:
(i) जब श्रमिकों की बहुतायत होती
है तो वेतन गिर जाते हैं। इसलिए, उद्योगपति को श्रमिकों की
कमी या वेतन के मद में भारी लागत जैसे कोई परेशानी
नहीं थी। उन्हें ऐसी मशीनों में कभी दिलचस्पी नहीं थी जिसके कारण मजदूरों से
छुटकारा मिल जाए वह जिन पर बहुत ज्यादा कर चाहने वाला हो।
(ii) बहुत सारे उद्योगो में श्रमिकों की
माँग मौसमी आधार पर घटती-बढ़ती रहती थी। गैसघरों और शराबखानों में जाड़ों के दौरान
खासा काम रहता था। इस दौरान उन्होंने ज़्यादा मज़दूरों की ज़रूरत होती थी। क्रिसमस के
समय बुक बाइंडराे और प्रिंटरों को भी दिसंबर से पहले अतिरिक्त मज़दूरों की दरकार
रहती थी।
(iii) बंदरगाहों पर जहाज़ों की मरम्मत और
साफ़-सफ़ाई व सजावट का काम भी जाड़ों में ही किया जाता था। जिन उद्योगों में मौसम के
साथ उत्पादन घटता- बढ़ता रहता था वहाँ उद्योगपति मशीनों की बजाए मज़दूरों को ही काम
पर रखना पसंद करते थे।
(iv) बहुत सारे उत्पाद केवल हाथ से ही
तैयार किए जा सकते थे। मशीनों से एक जैसे के उत्पाद ही बड़ी संख्या में बनाए जा
सकते थे। लेकिन बाज़ार में अकसर बारीक डिज़ाइन और खास आकारों वाली चीज़ों की काफी
माँग रहती थी। इन्हें बनाने के लिए यांत्रिक प्रौद्योगिकी की नहीं बल्कि इंसानी
निपुणता की ज़रूरत थी।
(v) विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उच्च
वर्ग के लोग-कुलीन और पूँजीपति वर्ग-हाथों से बनी चीज़ों को तरजीह देते थे। हाथों
से बनी चीज़ों को परिष्कार और सुरुचि का प्रतीक माना जाता था। उनकी फ़िनिश अच्छी
होती थी। उनको एक-एक करके बनाया जाता था और उनका डिज़ाइन अच्छा होता था।
2. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और
रेशमी कपड़ों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया।
उत्तर - ईस्ट इंडिया कंपनी की राजनीतिक सत्ता स्थापित हो जाने
के बाद कंपनी व्यापार पर अपने एकाधिकार का दावा कर सकती थी।
(i) उसने प्रतिस्पर्धा खत्म करने, लागतों पर अंकुश रखने और कपास व रेशम से बनी चीज़ों की नियमित आपूर्ति
सुनिश्चित करने के लिए प्रबंधन और नियंत्रण की एक नयी व्यवस्था लागू कर दी। यह काम
कई चरणों में किया गया।
(ii) कंपनी ने
कपड़ा व्यापार में सक्रिय व्यापारियों और दलालों को खत्म करने तथा बुनकरों पर
ज़्यादा प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की।
(iii) कंपनी ने
बुनकरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने और कपड़ों की
गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी तैनात कर दिए जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता
था।
(iv) कंपनी को
माल बेचने वाले बुनकरों को अन्य खरीदारों के साथ कारोबार करने पर पाबंदी लगा दी
गई। इसके लिए उन्हें पेशगमी रक़म दी जाती थी।
(v) एक बार काम
का ऑर्डर मिलने पर बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए कर्ज़ा दे दिया जाता था। जो
कर्ज़ा लेते थे उन्हें अपना बनाया हुआ कपड़ा गुमाश्ता को ही देना पड़ता था। उसे वे
किसी और व्यापारी को नहीं बेच सकते थे।
3. कल्पना कीजिए कि आपको ब्रिटेन तथा कपास के इतिहास
के बारे में विश्वकोश के लिए लेख लिखने को कहा गया है। इसे अध्याय में दी गई
जानकारियों के आधार पर अपना लेख लिखिए।
उत्तर - औद्योगिक क्रांति की
शुरुआत सबसे पहले इंग्लैंड में 1730 के दशक में हुई। इंग्लैंड में सबसे पहले
स्थापित होने वाले कारखानों में कपास के कारखाने प्रमुख थे।
कपास (कॉटन) नए युग का पहला प्रतीक थी।
उन्नीसवीं सदी के अंत में कपास के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई। 1760 में ब्रिटेन अपने कपास उद्योग की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 25
लाख पौंड कच्चे कपास का आयत करता था। 1787 में
आयात बढ़कर 220 लाख पौंड तक पहुँच गया। यह वृद्धि
उत्पादन की प्रक्रिया में बहुत सारे बदलावों का परिणाम थी।
अठारहवीं सदी में कई ऐसे
आविष्कार हुए जिन्होंने उत्पादन प्रक्रिया के हर चरण की कुशलता बढ़ा दी। प्रति
मजदूर उत्पादन बढ़ गया और पहले से अधिक मजबूत धागों व रेशों का उत्पादन होने लगा।
इसके बाद रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा सामने रखी। अत: इंग्लैंड
में सूती कपड़े के नए कारखानें की स्थापना हुई।
4. पहले विश्व युद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन
क्यों बढ़ा?
उत्तर - पहले विश्व युद्ध ने एक बिल्कुल नयी स्थिति उत्पन्न कर
दी थी:
(i) ब्रिटिश
कारखाने सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए युद्ध संबंधी उत्पादन में व्यस्त थे
इसलिए भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया। भारतीय बाज़ारों को रातोंरात
एक विशाल देशी बाज़ार मिल गया।
(ii) युद्ध लंबा
खींचा तो भारतीय कारखानों में भी फ़ौज के लिए जूट की बोरियाँ, फौजियों के लिए वर्दी के कपड़े, टेंट और चमड़े के
जूते, घोड़े व खज्जर की जीन तथा बहुत सारे अन्य समान बनने
लगे।
(iii) नए कारखाने लगाए गए। पुराने कारखाने कई
पालियों में चलने लगे। बहुत सारे नए मज़दूरों को काम पर रखा गया और हरेक को पहले से
भी ज़्यादा समय तक काम करना पड़ता था। युद्ध के दौरान औद्योगिक उत्पादन तेजी से
बढ़ा।
01 अंक के लिए प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
1. डॉन ऑफ द सेंचुरी नामक किताब का विषय था -
(अ) संगीत (ब) व्यापार (स) खेल (द) वैश्वीकरण
2. प्राच्य
इलाके
(अ) भू मध्य सागर के पश्चिम में स्थित देश
(ब) भू मध्य सागर के पूर्व में स्थित देश
(स) भू मध्य सागर के उत्तर में स्थित देश
(द) भू मध्य सागर के दक्षिण में स्थित देश
3. दो
जादूगर वाला चित्र में दिखाया गया है -
(अ) बुनकर और व्यापारी को (ब) मजदूर और जॉबर को
(स) किसान और बुनकार को (द) अलादीन और मैकेनिक को
4. दुनिया
का पहला औद्योगिक राष्ट्र है -
(अ) भारत (ब)
अमेरिका (स) ब्रिटेन (द) रूस
5. गिल्ड्स
होते थे -
(अ) उत्पादकों के संगठन (ब)
मजदूरों के संगठन
(स) राजनीतिक दल (द)
जमींदारों का संगठन
6. कॉटेजर
कौन थे?
(अ) जमींदार (ब)
मजदूर (स) छोटे किसान (द) व्यापारी
7. ऐसा
व्यक्ति जो रेशों के हिसाब से ऊन को छांटता करता है -
(अ) फुलर (ब)
जॉबर (स)
कॉर्डिंग (द) स्टेपलर
8. ऐसा
व्यक्ति जो चुन्नटों के सहारे कपड़ों को समेटता है -
(अ) फुलर (ब)
जॉबर (स)
कॉर्डिंग (द) स्टेपलर
9. वह
प्रक्रिया जिसमें कपास या ऊन को आदि रेशों को कताई के लिए तैयार की जाती है -
(अ) फुलर (ब)
जॉबर (स)
कॉर्डिंग (द) स्टेपलर
10. कपड़ों
का फिनिशिंग सेंटर कहा जाता था -
(अ) पेरिस (ब)
बॉम्बे (स) लंदन (द)
शंघाई
11. स्टेपलर, फुलर
और कार्डिंग का संबंध है -
(अ) वस्त्र उत्पादन से (ब) आदि - औद्योगीकरण से
(स) आरंभिक अंतर्राष्ट्रीय उत्पादन से (द) उपरोक्त सभी से
12. नए
युग का पहला प्रतीक था -
(अ) कपास (ब)
रेशम (स) जूट (द) ऊन
13. फैक्टरी
प्रणाली के जनक थे -
(अ) रिचर्ड आर्कराइड (ब)
हैनरी पलूतो (स) न्यूकॉमेन (द) जेम्सवॉट
14. कारखाना
प्रणाली का पहला प्रतीक था -
(अ) ऊन (ब)
लोहा (स) रेशम (द) कपास
15. इंग्लैंड
में सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा किसने सामने रखी -
(अ) जेम्सवॉट (ब)
मैथ्यू बोल्टन (स) न्यू कॉमेन (द) रिचर्ड
आर्कराइट
16. कपास
उद्योग को किस उद्योग से पिछड़ना पड़ा था -
(अ) लोहा और स्टील (ब) ऊनी वस्त्र उद्योग (स) रेशम
उद्योग (द) चीनी उद्योग
17. सामान्य
भाप के इंजन को किसने बनाया?
(अ) जेम्सवॉट (ब)
मैथ्यू बोल्टन (स) न्यू कॉमेन (द) रिचर्ड
आर्कराइट
18. भाप
के इंजन का आविष्कारक किसे माना जाता है?
(अ) जेम्सवॉट (ब)
मैथ्यू बोल्टन (स) न्यू कॉमेन (द) रिचर्ड
आर्कराइट
19. भाप
के इंजन का औद्योगिक उत्पादन किसने किया?
(अ) जेम्सवॉट (ब)
मैथ्यू बोल्टन (स) न्यू कॉमेन (द) रिचर्ड
आर्कराइट
20. विल
थोर्न कौन था ?
(अ) मजदूर (ब)
व्यापारी (स) किसान (द) जमींदार
21. यूरोप
में मजदूरों की आवश्यकता किस मौसम में सर्वाधिक होती थी?
(अ) ठंड (ब)
गर्मी (स) वर्षा (द) सभी मौसम में
22. मजदूरों
की कमी के कारण मशीनों से उत्पादन करने वाला देश -
(अ) ब्रिटेन (ब)
रूस (स) अमेरिका (द) फ्रांस
23. इंग्लैंड
में सबसे पहले कारखाने कब खुले ?
(अ) 1720 (ब) 1730 (स) 1735 (द) 1740
24. स्पिनिंग
जेनी मशीन किसने बनाई थी?
(अ) जेम्सवॉट (ब)
मैथ्यू बोल्टन (स) न्यू कॉमेन (द) जेम्स
हरग्रीव्ज
25. स्पिंनग
जेनी का उपयोग था -
(अ) कताई (ब) बुनाई (स) सिलाई (द) रंगाई
26. आदि
- औद्योगीकरण के युग में अंतर्राष्ट्रीय कपड़ा बाजार में किसका दबदबा था?
(अ) भारत (ब)
अमेरिका (स) ब्रिटेन (द) रूस
27. भारत
को खाड़ी देशों और लाल सागर से जोड़ने वाला बंदरगाह था-
(अ) मछलीपट्नम (ब)
सूरत (स)
हुगली (द) बम्बई
28. विदेशी
कपड़ा व्यवसाय के लिए कोरोमंडल तट पर स्थित बंदरगाह -
(अ) मछलीपट्नम (ब)
सूरत (स)
हुगली (द) बम्बई
29. दक्षिण-पूर्वी
एशियाई देशों का व्यापार इस बंदरगाह से होता था -
(अ) मछलीपट्नम (ब)
सूरत (स)
हुगली (द) बम्बई
30. भारत
में पुराने व्यापार के केन्द्र कौन से थे?
(अ) सूरत और हुगली (ब) दिल्ली और मुंबई
(स) मुंबई और कलकत्ता (द) मैसूर और चैन्नई
31. भारत
का पहला लौह एवं इस्पात संयंत्र किसने स्थापित किया?
(अ) जे एन टाटा (ब)
आर डी टाटा
(स) डी जे टाटा (द) रतन टाटा
32. पूर्व
औद्योगीकरण काल में व्यापारी कहाँ से सामान खरीदते थे?
(अ) शहर से (ब)
दूसरे देशों से (स) गांवों से (द) स्वयं निर्माण करते थे
33. भारत
में कपड़ा बनाने वालों को कहा जाता था -
(अ) बुनकर (ब) सौदागर (स) जॉबर (द) गुमाश्ता
34. “भारतीय
कपड़ों की माँग कभी कम नहीं हो सकती।“ किसने कहा था?
(अ) रिचर्ड आर्कराइड (ब)
हैनरी पलूतो (स) न्यूकॉमेन (द) जेम्सवॉट
35. मुंबई
में पहली कपड़ा मिल कब स्थापित हुई थी?
(अ) 1816 ई (ब)
1854 ई (स) 1855 ई (द)
1856 ई
36. भारत
का सबसे बड़ा उद्योग कौन सा माना जाता है?
(अ) सूती वस्त्र उद्योग (ब) लोहा एवं
इस्पात उद्योग
(स) सीमेंट उद्योग (द)चीनी उद्योग
37. विश्व
में रेशमी वस्त्र का सबसे बड़ा उत्पादक देश कौन सा है?
(अ) जापान (ब)
भारत (स) चीन (द) अमेरिका
38. भारत
में पहला लौह इस्पात संयंत्र कब और कहां स्थापित हुआ?
(अ) 1965, बोकारो (ब)
1959, दुर्गापुर (स)
1911, जमशेदपुर (द)
1955, भिलाई
39. निम्नलिखित
में से कौन भारत में औद्योगिक उत्पादन पर किस यूरोपीय प्रबंधकीय एजेंसी का
नियंत्रण नहीं था?
(अ) हीगलर्स एंड कम्पनी (ब) एंड्रयू यूल
(स) जार्डीन स्किनर एंड कम्पनी (द) डिनशॉ पेटिट
40. द्वारकानाथ
टैगोर कौन थे?
(अ) समाज सुधारक (ब) संगीतकार (स)
चित्रकार (द) उद्योगपति
41. पहली
भारतीय जूट मिल कहाँ स्थापित की गई?
(अ) बिहार (ब) गुजरात
(स) बंगाल (द) महाराष्ट्र
42. 1917
में कलकत्ता में देश की पहली जूट मिल लगाने वाले मारवाड़ी उद्योगपति कौन थे?
(अ) सेठ हुकुमचंद (ब) द्वारकानाथ टैगोर (स) जमशेद जी (द)
डिनशॉ पेटिट
43. चीन
का संबंध किस उत्पाद से है -
(अ) अफीम (ब)
चाय (स)
रेशम (द)
उपरोक्त सभी
44. फ्लाई
शटल का उपयोग था -
(अ) कताई (ब) बुनाई (स) सिलाई (द) रंगाई
45. 1928
में ग्राइप वाटर के कैलेंडर पर किस भगवान का चित्र अंकित था?
(अ) बाल कृष्ण (ब) माँ सरस्वती (स) भगवान विष्णु (द) माता लक्ष्मी
46. 20वीं
सदी में आयातित कपड़ों के मेनचेस्टर लेबल पर किस प्रकार के चित्र छपे होते थे?
(अ) भारतीय देवी-देवताओं के (ब) महाराजा रणजीत सिंह के
(स) उपरोक्त दोनों के (द) किसी के भी नहीं
47. ईस्ट
इंडिया कम्पनी का वैश्विक मुख्यालय कहां स्थित था?
(अ) दिल्ली (ब)
बंबई (स)
लंदन (द) मेनचेस्टर
48. किस
मशीन से इंग्लैंड में महिलाओं सबसे ज्यादा चिढ़ होती थी?
(अ) प्रिटिंग मशीन (ब) फ्लाई शटल (स) गिलोटिन (द) स्पिनिंग जेनी
49. बालूचरी
साड़ी से संबद्ध है -
(अ)बॉम्बे (ब)
बंगाल (स)
मद्रास (द)
बनारस
50. मैनचेस्टर
-
(अ) वस्त्र उद्योग (ब)
कार उद्योग (स) इस्पात उद्योग (द) कृषि क्षेत्र
सत्य/असत्य लिखिए
(1) 19वीं सदी के आखिर में यूरोप की कुल श्रम शक्ति का 80% तकनीकी रूप से
विकसित औद्योगिक क्षेत्र में काम कर रहा था।
(2) 18 वीं सदी तक महीन कपड़े के अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर भारत का दबदबा था।
(3) अमेरिका गृहयुद्ध के फलस्वरूप भारत के कपास निर्यात में कमी आई।
(4) फ्लाई शटल के आने से हथकरघा कामगारों की उत्पादकता में सुधार हुआ।
(5) बेरोजगारी की आशंका के कारण मजदूर नई प्रौद्योगिकी को पसंद करते थे।
(6) ब्रिटेन में उन्नीसवीं सदी के मध्य 500 तरह के हथौड़े और 45 तरह की
कुल्हाड़ियां बनाई जा रही थीं।
(7) हाथ से बुने कपड़े के महीन डिजाइन की मिलों में नकल नहीं की जा सकती थी।
(8) ई.टी.पॉल एक म्यूजिक कम्पनी थी।
एक वाक्य में उत्तर दीजिए -
1. जलावन की लकड़ी, बेरियां, सब्जियां, भूसा और चारा आदि बीन कर काम चलाने वाने छोटे किसानों को
क्या कहते थे?
2. 19 वीं सदी के आखिर तक इंग्लैंड में भाप के इंजनों की संख्या कितनी थी?
3. अंग्रेज और अमेरिकी कम्पनियों से स्पर्घा के कारण 1850 में किस भारतीय को
अपने सारे जहाज बेचना पड़े थे?
4. किसका विश्वास था कि भारत पश्चिमीकरण और औद्योगीकरण के रास्ते पर चलकर ही
विकास कर सकता है?
5. जे.एन.टाटा ने भारत का पहला स्टील कारखाना कब और कहाँ लगाया?
6. 1911 में बंबई में सूती वस्त्र उद्योग में सबसे ज्यादा मजदूर किस जिले के
थे?
7. 1930-40 के दशक में बम्बई के ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता कौन थे?
8. 1931 में भारत में वृहद उद्योगों वाले क्षेत्र कौन से थे?
9. 1931 में मध्यम उद्योगों वाले क्षेत्र कोन से थे?
10. 1931 में छोटे औद्योगिक क्षेत्र कौन से थे?
11. सनलाइट साबुन के विज्ञापन पर किसका चित्र होता था?
12. सूत कताई के लिए आदर्श शहर कौन सा और क्यों था?
रिक्त स्थानों की पुर्ति कीजिये –
1. पहिया ..................................................................................................
का प्रतीक है।
2. बुनकरों पर नियंत्रण करने ........................................................
को नियुक्त किया गया।
3. जीजीभोये .................................................................................................
के बेटे थे।
4. जॉबर को .......................................................................................
भी कहा जाता था।
5. औरतें कपडा मिलों में मुख्य रूप से .................................................
का कार्य करती थीं।
6. बालुचरी ..................................................................................
की एक किस्म होती है।
7. स्पिनिंग
जेनी को ..............................................................
द्वारा तैयार किया गया था।
8. फ्लाई
शटल का उपयोग ...........................................................
के लिए किया गया था।
9. भारत
में सूती कपड़े का उत्पादन ..............................................
के बीच दोगुना हो गया।
10. ......को प्रोटो-औद्योगिकीकरण के समय कपड़े
के परिष्करण केंद्र के रूप में जाना जाता था।
11. 'ओरिएंट'
शब्द ...........................................................................
को संदर्भित करता है।
12. बॉम्बे
में पहली कपास मिल .....................................................
में स्थापित की गई थी।
13. ........................................... ने
1871 में इंग्लैंड में भाप इंजन का आविष्कार किया था।
14. औद्योगीकरण
के पहले चरण में, ब्रिटेन में सबसे गतिशील उद्योग ............................थे।
15. .........एक ऐसा उत्पाद था जिसका उपयोग वे लोग
भी उपयोग कर रहे थे जो पढ़ नहीं सकते थे।
16. देवताओं
की छवियों के अलावा, आमतौर पर विज्ञापनों में ........... की
आकृतियों का उपयोग किया जाता था।
17. भारत
में तीन पूर्व-औपनिवेशिक बंदरगाह ..............................................................
थे।
उत्तरमाला
बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर |
सत्य/असत्य |
|||||||||||
1 |
अ |
11 |
अ |
21 |
अ |
31 |
अ |
41 |
स |
1 |
असत्य |
|
2 |
ब |
12 |
अ |
22 |
स |
32 |
स |
42 |
अ |
2 |
सत्य |
|
3 |
द |
13 |
अ |
23 |
ब |
33 |
अ |
43 |
अ |
3 |
असत्य |
|
4 |
स |
14 |
द |
24 |
द |
34 |
ब |
44 |
ब |
4 |
सत्य |
|
5 |
अ |
15 |
द |
25 |
अ |
35 |
ब |
45 |
अ |
5 |
असत्य |
|
6 |
स |
16 |
अ |
26 |
अ |
36 |
अ |
46 |
अ |
6 |
सत्य |
|
7 |
द |
17 |
स |
27 |
ब |
37 |
स |
47 |
स |
7 |
सत्य |
|
8 |
अ |
18 |
अ |
28 |
अ |
38 |
स |
48 |
द |
8 |
सत्य |
|
9 |
स |
19 |
ब |
29 |
स |
39 |
द |
49 |
ब |
|||
10 |
स |
20 |
अ |
30 |
स |
40 |
द |
50 |
अ |
|||
एक वाक्य में उत्तर |
||||||||||||
1 |
कॉटेजर |
7 |
भाई भोसले |
|||||||||
2 |
321 |
8 |
बॉम्बे और
बंगाल |
|||||||||
3 |
जमशेद जी
जीजीभोये |
9 |
मद्रास और
संयुक्त प्रान्त |
|||||||||
4 |
द्वारकानाथ
टैगोर |
10 |
पंजाब, बिहार और मध्य प्रान्त |
|||||||||
5 |
1911, जमशेदपुर (साकची) |
11 |
भगवान
विष्णु |
|||||||||
6 |
रत्नागिरी |
12 |
लंकाशायर,नम जलवायु के कारण |
|||||||||
रिक्त स्थानों की पूर्ति |
||||||||||||
1 |
प्रगति |
10 |
लन्दन |
|||||||||
2 |
गुमाश्ता |
11 |
प्राच्य |
|||||||||
3 |
पारसी
बुनकर |
12 |
1854 ई |
|||||||||
4 |
सरदार या
मिस्त्री |
13 |
जेम्स वाट |
|||||||||
5 |
साड़ी |
14 |
वस्त्र और
खाद्यान्न |
|||||||||
6 |
कताई |
15 |
पञ्चांग |
|||||||||
7 |
जेम्स
हरग्रीव्स |
16 |
व्यक्तित्व
, सम्राट और नवाब |
|||||||||
8 |
बुनाई |
17 |
सूरत, मछलीपट्टनम और हुगली |
|||||||||
9 |
1900 से 1912 |
अति
लघु उत्तरीय प्रश्न ( 02 अंक )
1.
आद्य-औद्योगीकरण क्या है?
उत्तर - औद्योगीकरण का प्रारंभिक चरण जिसमें
अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन कारखानों में नहीं बल्कि विकेन्द्रीकृत
इकाइयों में किया जाता था।
2. आद्य-औद्योगीकरण
कारखाना उत्पादन से किस प्रकार भिन्न था?
उत्तर - प्रोटो-औद्योगिकीकरण उत्पादन की एक विकेन्द्रीकृत पद्धति थी
जिसे व्यापारियों द्वारा नियंत्रित किया जाता था और माल का उत्पादन विभिन्न
स्थानों पर स्थित बड़ी संख्या में अलग – अलग उत्पादकों
द्वारा किया जाता था जबकि कारखानों के तहत उत्पादन केंद्रीकृत हो गया था। अधिकांश
प्रक्रियाओं को एक छत और प्रबंधन के तहत एक साथ लाया गया।
3. 17वीं और 18वीं शताब्दी
में नए यूरोपीय व्यापारियों के लिए शहर में व्यवसाय स्थापित करना कठिन क्यों था?
उत्तर - ऐसा इसलिए था क्योंकि शहर में शहरी शिल्प और व्यापार संघ बहुत
शक्तिशाली थे।
4.
श्रेणियाँ क्या थीं?
उत्तर - श्रेणियाँ उत्पादकों के संगठन थे जो प्रशिक्षित कारीगरों को
उत्पादन, विनियमित प्रतिस्पर्धा और कीमतों पर नियंत्रण बनाए रखते थे। और व्यापार
में नए लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। शासकों ने विभिन्न संघों को विशिष्ट
उत्पादों के उत्पादन और व्यापार का एकाधिकार अधिकार प्रदान किया।
5.स्पिनिंग जेनी क्या थी?
उत्तर - यह जेम्स हरग्रीव्स द्वारा तैयार की गई एक मशीन थी जो कताई
प्रक्रिया को तेज करती थी। मशीन कई स्पिंडलों को गति दे सकती है और एक ही समय में
कई धागों को घुमा सकती है।
6.औपनिवेशिक भारत के
किन्हीं दो क्षेत्रों के नाम बताइए जो बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए प्रसिद्ध
थे।
उत्तर - (i) बम्बई (ii) बंगाल
7.19वीं सदी की शुरुआत में
ब्रिटेन के दो सबसे गतिशील उद्योग कौन से थे?
उत्तर - कपास और धातु.
8. "विक्टोरियन
ब्रिटेन में, उच्च वर्ग - अभिजात वर्ग और पूंजीपति - हाथ से बनी चीज़ों को
प्राथमिकता देते थे"। कारण दीजिये।
उत्तर - हस्तनिर्मित उत्पाद परिष्कार और सुरुचि का
प्रतीक बन गए।
9.ब्रिटेन में पेश की गई
स्पिनिंग जेनी नामक मशीन पर महिला मजदूरों ने हमला क्यों किया?
उत्तर - बेरोजगारी के डर ने श्रमिकों को नई तकनीक की शुरूआत के प्रति
शत्रु बना दिया।
10.
भारत के उन सामानों का नाम बताइए जिनका मशीनी उद्योगों के युग से पहले
अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर प्रभुत्व था।
उत्तर - रेशम और कपास.
11. भारत के किन्हीं तीन पूर्व-औपनिवेशिक बंदरगाहों के नाम बताइए।
उत्तर - सूरत, मसूलीपट्टनम और हुगली
12.
1750 के दशक तक पूर्व-औपनिवेशिक बंदरगाहों यानी सूरत और मसूलीपट्टनम का पतन क्यों
हो गया?
उत्तर - क्योंकि यूरोपीय कंपनियों ने धीरे-धीरे सत्ता हासिल की- पहले
स्थानीय राजदरबारों से कई
तरह की रियायतें हासिल कीं, फिर व्यापार का एकाधिकार प्राप्त किया।
13.औपनिवेशिक
काल के दौरान विकसित हुए बंदरगाहों के नाम बताइए।
उत्तर - बम्बई और कलकत्ता
14.1760 के दशक के दौरान
ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से कपड़ा निर्यात बढ़ाने के लिए क्यों उत्सुक थी?
उत्तर - 1760 के दशक के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की शक्ति के सुदृढ़ीकरण
से शुरू में भारत से कपड़ा निर्यात में गिरावट नहीं आई। ब्रिटिश सूती उद्योग का
अभी तक विस्तार नहीं हुआ था और भारतीय बढ़िया वस्त्रों की यूरोप में भारी माँग थी।
इसलिए कंपनी भारत से कपड़ा निर्यात बढ़ाने के लिए उत्सुक थी।
15. “1760 और 1770 के दशक
में बंगाल और कर्नाटक में राजनीतिक सत्ता स्थापित करने से पहले, ईस्ट इंडिया कंपनी
को निर्यात के लिए माल की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करना मुश्किल हो गया था।“ कारण दें।
उत्तर - फ्रांसीसी,डच,
पुर्तगाली और स्थानीय व्यापारियों ने बुने हुए कपड़े को सुरक्षित करने के लिए
बाज़ार में प्रतिस्पर्धा की। इसलिए बुनकर और आपूर्ति व्यापारी मोलभाव कर सकते हैं
और सर्वोत्तम खरीदार को उपज बेचने का प्रयास कर सकते हैं।
16. गुमाश्ता कौन थे?
उत्तर- गुमाश्ता ईस्ट इंडिया कंपनी के वेतनभोगी नौकर थे जो बुनकरों की
निगरानी करते थे, आपूर्ति एकत्र करते थे और कपड़े की गुणवत्ता की जांच करते थे।
17. बुनकरों और गुमाश्तों के
बीच झड़पें क्यों होती थीं?
उत्तर – जॉबर की जगह आये नए गुमाश्ते बाहरी थे, जिनका गाँव से कोई
दीर्घकालिक सामाजिक संबंध नहीं था। इसलिए उन्होंने अहंकारपूर्वक काम किया, शिकायतें मिलने पर गुमाश्ता पुलिस को बुला लेते और गांवों में जाते तथा आपूर्ति में देरी के लिए बुनकरों को दंडित किया। इसलिए
बुनकरों और गुमाश्ताओं के बीच झगड़े की खबरें थीं।
18. '1860 तक भारतीय बुनकरों
को अच्छी गुणवत्ता के कच्चे कपास की पर्याप्त आपूर्ति नहीं मिल सकी।' कारण दीजिये।
उत्तर - जब अमेरिकी गृहयुद्ध छिड़ गया और अमेरिका से कपास
की आपूर्ति बंद हो गई तब ब्रिटेन ने भारत की ओर रुख किया।
जैसे ही भारत से कच्चे कपास का निर्यात बढ़ा, कच्चे कपास की कीमत बढ़ गई। भारत में
बुनकरों को आपूर्ति की कमी हो गई थी।
19. उन यूरोपीय प्रबंध
एजेंसियों का नाम बताइए जिन्होंने भारतीय उद्योगों के बड़े क्षेत्र को नियंत्रित
किया।
उत्तर - (i) बर्ड हेग्लर्स एंड
कंपनी (ii) एंड्रयू यूल (iii) जार्डिन स्किनर एंड कंपनी।
20. औपनिवेशिक काल के दौरान
भारत के सूती वस्त्र के किन्हीं चार प्रमुख केंद्रों के नाम बताइए।
उत्तर - (i) बॉम्बे - 1854 (ii)
कानपुर - 1860 (iii) अहमदाबाद - 1861 (iv) मद्रास - 1874
21.
भारत के किन्हीं चार उद्यमियों के नाम बताइए जिन्होंने औपनिवेशिक काल के दौरान
कारखाने स्थापित किए।
उत्तर - (i) द्वारकानाथ टैगोर (ii) दिनशॉ पेटिट (iii) जमशेद जी
नुसरवानजी टाटा (iv) सेठ हुकुमचंद।
22.
"भारतीय व्यापार पर औपनिवेशिक शिकंजा
कसता गया।' कथन को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर - उन्हें यूरोप के साथ विनिर्मित वस्तुओं का व्यापार करने से रोक
दिया गया था, और उन्हें ज्यादातर कच्चे माल और खाद्यान्न, कच्चे कपास, अफीम, गेहूं
और नील का निर्यात करना पड़ता था - जिसकी अंग्रेजों को आवश्यकता थी। उन्हें
धीरे-धीरे शिपिंग व्यवसाय से भी बाहर कर दिया गया।
23. फ्लाई शटल क्या था?
उत्तर - यह एक यांत्रिक उपकरण है जिसका उपयोग रस्सियों और पुलियों के
माध्यम से की जाने वाली बुनाई के लिए किया जाता है। यह क्षैतिज धागों (जिन्हें
बाना कहा जाता है) को ऊर्ध्वाधर धागों (जिन्हें ताना कहा जाता है) में रखता है।
फ्लाई शटल के आविष्कार ने बुनकरों के लिए बड़े करघे चलाना और कपड़े के चौड़े
टुकड़े बुनना संभव बना दिया।
24. प्रथम विश्व युद्ध का
ब्रिटिश उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर - युद्ध के बाद मैनचेस्टर कभी भी भारतीय
बाज़ार में अपनी पुरानी स्थिति दोबारा हासिल नहीं कर सका। अमेरिका के साथ
आधुनिकीकरण और प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ रहा। युद्ध के
बाद जर्मनी और जापान के मुकाबले ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था
चरमरा गई। कपास का उत्पादन गिर गया और ब्रिटेन से सूती कपड़े का निर्यात नाटकीय
रूप से गिर गया। उपनिवेशों के भीतर, स्थानीय उद्योगपतियों ने धीरे-धीरे अपनी
स्थिति मजबूत कर ली, विदेशी निर्माताओं को प्रतिस्थापित कर दिया और घरेलू बाजार पर
कब्जा कर लिया।
25. जॉबर
कौन था?
उत्तर - जॉबर एक पुराना और भरोसेमंद कर्मचारी था जिसे भारतीय
उद्योगपतियों ने नए श्रमिकों की भर्ती के लिए नियुक्त किया था।
26. प्रथम विश्व युद्ध के
वर्षों के दौरान भारत में औद्योगिक उत्पादन में तेजी आई। कारण दीजिये।
उत्तर - (i) भारत में मैनचेस्टर
के आयात में गिरावट आई क्योंकि ब्रिटिश मिलें युद्ध उत्पादन में व्यस्त
थीं।
(ii) भारतीय उद्योगों को युद्ध
की जरूरतों जैसे जूट बैग, सेना की वर्दी के लिए कपड़े, टेंट और चमड़े के जूते की
आपूर्ति के लिए भी बुलाया गया था।
27. भारत में मैनचेस्टर के
कपड़े के आयात का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर - (i) इसने भारत में कपड़ा उद्योग को बर्बाद कर दिया क्योंकि
मैनचेस्टर का कपड़ा सस्ता, दिखावटी और टिकाऊ दोनों था।
(ii)
बुनकरों को कपड़ा बुनाई के अपने पैतृक पेशे को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा और
उन्हें शहरी क्षेत्रों में मजदूरों के रूप में काम करना पड़ा।
28. उन प्रांतों के नाम
बताइए जहां औपनिवेशिक काल के दौरान अधिकांश बड़े पैमाने के उद्योग स्थित थे।
उत्त -:बंगाल और बम्बई.
29. 20वीं सदी के दौरान किस
तकनीकी परिवर्तन ने भारतीय उद्योग के उत्पादन को बेहतर बनाने में मदद की?
उत्तर - फ्लाई शटल की शुरूआत.
30. भारतीय और ब्रिटिश
निर्माताओं ने अपने बाजार का विस्तार करने का प्रयास किया।
उत्तर - उन्होंने विज्ञापनों के माध्यम से अपने बाज़ार का विस्तार करने
का प्रयास किया।
31. औपनिवेशिक काल में
बाज़ार के विस्तार में विज्ञापनों का क्या महत्व था?
उत्तर - (i) विज्ञापन उत्पादों को वांछनीय और आवश्यक बनाते हैं,
(ii) ये
लोगों के दिमाग को आकार देने और नई ज़रूरतें पैदा करने का प्रयास करते हैं।
32. "जब भारतीय
निर्माताओं ने विज्ञापन दिया, तो राष्ट्रवादी संदेश स्पष्ट और जोरदार था।"
क्या संदेश था
उत्तर - यदि आप राष्ट्र की
परवाह करते हैं, तो उन उत्पादों को खरीदें जो भारतीय उत्पादित करते हैं।
33. विक्टोरियन काल में उच्च
वर्ग के लोग हाथ के उत्पादों का उपयोग करना क्यों पसंद करते थे, उदाहरण सहित
स्पष्ट करें।
अथवा
विक्टोरियन ब्रिटेन में
उच्च वर्ग हाथ से बनी चीज़ों को प्राथमिकता क्यों देते थे, इसके तीन कारण बताइए।
उत्तर: उच्च
वर्ग के लोग विक्टोरियन काल में हाथ के उत्पादों का उपयोग करना पसंद करते थे
क्योंकि:
(i)
वे
परिष्कार और सुरुचि का प्रतीक थे।
(ii)
वे
बेहतर ढंग से तैयार किए गए थे, वे व्यक्तिगत रूप से उत्पादित और सावधानीपूर्वक
डिजाइन किए गए थे।
34. 1906 में चीन को भारतीय धागे
के निर्यात में गिरावट का एक कारण बताएं।
उत्तर - चीनी और जापानी मिलों के उत्पादन ने चीनी
बाजार में बाढ़ ला दी।
35.सत्रहवीं और अठारहवीं
शताब्दी में ब्रिटेन में वस्तुओं की मांग क्यों बढ़ गई?
उत्तर - सत्रहवीं
और अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में वस्तुओं की मांग बढ़ गई
क्योंकि -
·
विश्व व्यापार का विस्तार हुआ।
·
विश्व के विभिन्न भागों में
उपनिवेश स्थापित किये गये।
36.उन दो भारतीय बंदरगाहों के
नाम बताइए जिनके दक्षिण पूर्व एशियाई बंदरगाहों के साथ व्यापार संबंध थे।
उत्तर - दो
भारतीय बंदरगाहों के नाम निम्नलिखित हैं , जिनके दक्षिण
पूर्व एशियाई बंदरगाहों के साथ व्यापार संबंध थे -
·
कोरोमंडल तट पर मसूलीपट्टम।
·
बंगाल में हुगली.
37.किस बंदरगाह ने सूरत और
हुगली के पुराने बंदरगाहों का स्थान ले लिया?
उत्तर -
बॉम्बे और कलकत्ता के बंदरगाहों ने सूरत और हुगली के बंदरगाहों का स्थान ले लिया।
38.उन्नीसवीं सदी की शुरुआत
में भारत में कपास बुनकरों को दो समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन्हें लिखें।
उत्तर:
·
उनका निर्यात बाज़ार ध्वस्त हो
गया।
·
मैनचेस्टर आयात से भर जाने के
कारण स्थानीय बाज़ार सिकुड़ गया।
39.1906 से चीन को भारतीय
धागे का निर्यात क्यों कम हो गया?
उत्तर -
ऐसा इसलिए था क्योंकि चीनी और जापानी मिलों के उत्पादन ने चीनी बाजार में बाढ़ ला
दी थी।
40. भारत में मैनचेस्टर के
आयात में गिरावट क्यों आई?
उत्तर -
सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए ब्रिटिश मिलों के युद्ध उत्पादन में व्यस्त
होने के कारण, भारत में मैनचेस्टर के आयात में गिरावट आई।
41.फ्लाई शटल भारत में
बुनकरों के लिए कैसे वरदान साबित हुआ?
उत्तर -
फ्लाई शटल के आविष्कार ने बुनकरों के लिए बड़े करघे चलाना और कपड़े के चौड़े
टुकड़े बुनना संभव बना दिया।
42. स्पिनिंग जेनी और फ्लाई शटल
में अंतर लिखिए।
उत्तर -
स्पिनिंग जेनी |
फ्लाई शटल |
1. इसे जेम्स हरग्रीब्ज़ ने बनाया था. |
1. इसे जॉन के ने बनाया था. |
2. इससे कताई की जाती थी. |
2. इससे बुनाई की जाती थी. |
3. इसका महिलाओं ने विरोध किया था. |
3. इसका पुरुषों ने स्वागत किया था. |
03 अंकों के लिए प्रश्नोत्तर
प्रश्नः1 पूर्व
औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तरः
यूरोप में औद्योगीकरण के पहले के काल को पूर्व औद्योगीकरण का काल कहते हैं। दूसरे
शब्दों में कहा जाये तो यूरोप में सबसे पहले कारखाने लगने के पहले के काल को पूर्व
औद्योगीकरण का काल कहते हैं।
प्रश्नः2 पूर्व औद्योगीकरण के दौरान व्यापारियों ने
गाँव पर अधिक ध्यान क्यों दिया?
उत्तरः शहरों में ट्रेड और क्राफ्ट गिल्ड बहुत
शक्तिशाली होते थे। इस प्रकार के संगठन प्रतिस्पर्धा और कीमतों पर अपना नियंत्रण
रखते थे। वे नये लोगों को बाजार में काम शुरु करने से भी रोकते थे। इसलिये किसी भी
व्यापारी के लिये शहर में नया व्यवसाय शुरु करना मुश्किल होता था। इसलिये वे
गाँवों की ओर मुँह करना पसंद करते थे।
प्रश्नः3 कारखाने खुलने से क्या लाभ हुए?
उत्तरः कारखानों के खुलने से कई फायदे हुए। श्रमिकों की
कार्यकुशलता बढ़ गई। अब नई मशीनों की सहायता से प्रति श्रमिक आधिक मात्रा में और
बेहतर उत्पाद बनने लगे। औद्योगीकरण की शुरुआत मुख्य रूप से सूती कपड़ा उद्योग में
हुई। कारखानों में श्रमिकों की निगरानी और उनसे काम लेना अधिक आसान हो गया।
प्रश्नः4 औद्योगीकरण के शुरुआती दौर में व्यापारी
मशीनों से दूर ही रहना पसंद करते थे। क्यों?
उत्तरः औद्योगीकरण के शुरुआती दौर में व्यापारी मशीनों से दूर ही
रहना पसंद करते थे। इसके कारण निम्नलिखित हैंः
· मशीनें महंगी होती थीं और उनके मरम्मत में भी काफी खर्च
लगता था।
· आविष्कारकों या निर्माताओं के दावों के विपरीत नई
मशीनें बहुत कुशल भी नहीं थीं।
· उस जमाने में श्रमिकों की किल्लत या अधिक पारिश्रमिक
जैसी कोई समस्या नहीं थी।
·
मशीनों
से बनी चीजें हाथ से बनी चीजों की गुणवत्ता और सुंदरता का मुकाबला नहीं कर पाती
थीं।
प्रश्नः5 औद्योगीकरण के शुरुआती दौर में शहर में आने
वाले श्रमिकों का जीवन कैसा होता था?
उत्तरः शहर में नौकरी मिलना बहुत कठिन होता था। अधिकतर
लोगों को साल के कुछ महीने ही काम मिल पाता था। ऐसे लोगों को अक्सर रैन बसेरों या
फुटपाथ पर रात गुजारनी होती थी।
प्रश्नः6
महिलाओं ने स्पिनिंग जेनी का विरोध क्यों किया?
उत्तरः
महिलाएँ हाथ से कपड़े बुनती थीं। उन्हें डर था कि स्पिनिंग जेनी के आने से उनका
रोजगार छिन जायेगा। इसलिये महिलाओं ने स्पिनिंग जेनी का विरोध किया।
प्रश्नः7 गुमाश्ता कौन थे?
उत्तरः गुमाश्ता ईस्ट इंडिया कम्पनी के एजेंट होते थे।
गुमाश्ता का काम होता था बुनकरों के काम की निगरानी करना, आने वाले माल का संग्रहण करना और कपड़े की क्वालिटी
की जाँच करना। गुमाश्ता किसी भी गाँव के लिये बाहरी आदमी होता था जो सिपाहियों और
चपरासियों के साथ आता था और अपनी अकड़ दिखाता था। गुमाश्ता और बुनकरों के बीच अक्सर
टकराव होते रहते थे।
प्रश्नः8 जॉबर से आप क्या समझते हैं?
उत्तरः उद्योगपति अक्सर लोगों को काम पर रखने के लिए
जॉबर की मदद लेते थे जो किसी प्लेसमेंट कंसल्टेंट की तरह काम करता था। अक्सर कोई
पुराना और भरोसेमंद मजदूर जॉबर बन जाता था। जॉबर अक्सर अपने गाँव के लोगों को
प्रश्रय देता था। वह उन्हें शहर में बसने में मदद करता था और जरूरत के समय कर्ज भी
देता था। इस तरह से जॉबर एक प्रभावशाली व्यक्ति बन गया था। वह लोगों से बदले में
पैसे और उपहार माँगता था और मजदूरों के जीवन में भी दखल देता था।
प्रश्नः9 भारत के व्यवसायी सूत के मोटे कपड़े ही क्यों
बनाते थे?
उत्तरः भारत के व्यवसायी यहाँ के बाजार में मैनचेस्टर
के सामानों से प्रतिस्पर्धा से बचना चाहते थे। इसलिये वे सूत के मोटे कपड़े ही
बनाते थे।
प्रश्नः10 पहले विश्व युद्ध का भारत के व्यवसाय पर क्या असर पड़ा?
उत्तरः पहले विश्व युद्ध ने स्थिति बदल दी। ब्रिटेन की
मिलें सेना की जरूरतें पूरा करने में व्यस्त हो गईं। इससे भारत में आयात घट गया।
भारत की मिलों के सामने एक बड़ा घरेलू बाजार तैयार था। भारत की मिलों को ब्रिटेन की
सेना के लिए सामान बनाने के लिए भी कहा गया। इस तरह से घरेलू और विदेशी बाजारों
में माँग बढ़ गई। इससे उद्योग धंधे में तेजी आ गई।
प्रश्न 11. 1840 के दशक के बाद किन कारणों से रोजगार के
साधन बढ़े?
उत्तर- (क) सड़कों
को चौड़ा करने में।
(ख) नए रेलवे स्टेशनों के निर्माण में।
(ग) रेलवे लाइनों के विकास में।
(घ) गुफाओं की खुदाई
में।
प्रश्न 12. मैनचेस्टर में बने कपड़े के आयात से भारत पर
क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- (क) इस आयात से भारतीय कपड़ा उद्योग को बड़ी हानि हुई क्योंकि
अब भारतीय कपड़े के उपभोक्त्ता बहुत कम रह गए क्योंकि मैनचेस्टर का कपड़ा सस्ता और
चमकदार था।
(ख) इससे बहुत से बुनकर बेकार हो गए जिन्हें आस-पास के
नगरों में जाकर मजदूरों का-सा काम करना पड़ा।
प्रश्न 13. औद्योगिक क्रांति का अर्थ समझाएँ।
उत्तर- औद्योगिक क्रांति हम उस क्रांति को कहते हैं
जिसने अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में उत्पादन की तकनीक और संगठन में अनेक
क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिए। ये परिवर्तन इतनी तेज रफ्तार से आए और इतने
प्रभावशाली सिद्ध हुए कि उन्हें क्रांति’ का नाम दे दिया गया। इस क्रांति ने घरेलू
उद्योग-धन्धों के स्थान पर फैक्ट्री सिस्टम को जन्म दिया, कार्य हाथों के स्थान पर मशीनों से होने लगा और
छोटे कारीगरों का स्थान पूँजीपति श्रेणी ने ले लिया।
04 अंकों के लिए प्रश्नोत्तर
प्रश्न1. ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी
मशीनों पर हमले किए। व्याख्या करें।
अथवा,
बहुत सारे मजदूर स्पिनिंग जेनी के इस्तेमाल का विरोध
क्यों कर रहे थे?
अथवा,
स्पिनिंग जेनी क्या था?
इसका आविष्कार किसने किया था ?
उत्तर-
(क) स्पिनिंग जेनी का आविष्कार जेम्स हरग्रीब्ज ने 1764
ई० में किया। इस मशीन ने कताई की प्रक्रिया तेज कर दी जिसके कारण अब मजदूरों की
मांग घट गई।
(ख) एक ही पहिए को घुमाकर एक मजदूर सारी स्पिडल्स को
घुमा देता था और एक साथ कई धागे बनने लगते थे।
(ग) बेरोजगारी के डर से महिला-कारीगर, जो हाथ से धागा कातकर गुजारा करती थीं, घबरा गई।
(घ) इसलिए उन्होंने इन नई मशीनों को लगाने का विरोध
किया और जहाँ-जहाँ ये मशीनें लगाई गई उन्होंने उनपर आक्रमण करके उनको तोड़-फोड़
दिया। महिलाओं का विरोध तोड़-फोड़ काफी समय तक चलती रही।
प्रश्न 2. सत्रहवीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के
सौदागर गाँवों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे। व्याख्या करें।
उत्तर-सत्रहवीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर
गाँवों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे। उन्होंने ऐसा निम्नांकित
कारणों से किया-
(क) उस समय विश्व-व्यापार के विस्तार और उपनिवेशों की स्थापना के
कारण चीजों की मांग बढ़ने लगी थी, इसलिए उद्योगपति
और व्यापारी अपना उत्पादन बढ़ाना चाहते थे। परन्तु शहरों में रहकर ऐसा नहीं कर सकते
थे क्योंकि वहाँ मजदूर संघों और व्यापारिक गिल्ड्स काफी शक्तिशाली थे जो उनके लिए
अनेक समस्याएँ पैदा कर सकते थे।
(ख) गाँवों में गरीब काश्तकार और दस्तकार सौदागरों के लिए काम करने
लगे। इस समय काम चलाने के लिए छोटे किसान और गरीब किसान आमदनी के लिए नए स्रोत
ढूँढ रहे थे। गाँवों में बहुत से किसानों के पास छोटे-मोटे खेत थे। लेकिन उनसे
परिवार के सभी लोगों का भरण-पोषण नहीं हो सकता था।
(ग) शहरों के यूरोपीय सौदागर जब गाँवों में आए और उन्होंने माल
पैदा करने के लिए पेशगी रकम दी तो किसान और कारीगर काम करने के लिए फौरन तैयार हो
गए। ये लोग गाँव में रहकर अपने खेतों को सँभालते हुए, सौदागरों का काम भी कर लेते थे।
(घ) इस व्यवस्था से शहरों और गांवों के बीच एक घनिष्ठ संबंध विकसित
हुआ। सौदागर शहरों में रहते थे लेकिन उनके लिए काम ज्यादातर देहात में चलता था।
चीजों का उत्पादन कारखानों के बजाय घरों में होता था और उस पर सौदागरों का पूर्ण
नियंत्रण होता था।
प्रश्न 3. सूरत बंदरगाह अठारहवीं सदी के अंत तक हाशिए पर पहुँच गया
था। व्याख्या करें।
उत्तर-(क) औपनिवेशिक काल में सूरत एक महत्त्वपूर्ण
बंदरगाह था। जहाँ से पश्चिमी एशिया के साथ होने वाला व्यापार काफी समृद्ध था। तेजी
से बदलती परिस्थितियों में कलकत्ता और बंबई नए औद्योगिक केन्द्र के रूप में उभरे
जबकि सूरत जैसा विकसित केन्द्र हाशिए पर पहुँच गया।
(ख) इससे सूरत व हुगली,
दोनों पुराने बंदरगाह कमजोर पड़ गए। यहाँ से होने वाले निर्यात में
नाटकीय कमी आई। नए बंदरगाहों के जरिए होने वाला व्यापार यूरोपीय कंपनियों के
नियंत्रण में था।
(ग) अठारहवीं सदी के अंत तक यूरोपीय कंपनियों की ताकत
बढ़ती जा रही थी। पहले उन्होंने स्थानीय दरबारों से कई तरह की रियायतें हासिल की और
उसके बाद उन्होंने व्यापार पर इजारेदारी अधिकार प्राप्त कर लिए।
(घ) बहुत सारे पुराने बंदरगाहों की जगह नए बंदरगाहों
(बंबई व कलकत्ता) का बढ़ता महत्व औपनिवेशिक सत्ता की बढ़ती ताकत का संकेत था।
प्रश्न 4. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में बुनकरों पर
निगरानी रखने के लिए गुमाशतों को नियुक्त किया था। व्याख्या करें।
उत्तर-ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय व्यापारियों और
दलालों की भूमिका समाप्त करने तथा बुनकरों पर अधिक नियंत्रण स्थापित करने के विचार
से वेतनभोगी कर्मचारी तैनात कर दिए जिन्हें गुमाशता कहा जाता था। इन गुमाशतों को
अनेक प्रकार के काम सौपे गए।
(क) वे बुनकरों को कर्ज देते थे ताकि वे किसी और व्यापारी को अपना
माल तैयार करके न दे सके।
(ख) वे ही बुनकरों से तैयार किए हुए माल को इकट्ठा करते थे।
(ग) वे बने हुए सामान विशेषकर बने हुए कपड़ों की गुणवत्ता की जाँच
करते थे।
प्रश्न 5. पूर्व-औद्योगीकरण का मतलब बताएँ।
उत्तर-पूर्व-औद्योगीकरण से हमारा अभिप्राय उन उद्योगों
से है जो फैक्ट्रियाँ लगाने से पहले पनप रहे थे। अभी जब इंग्लैंड और यूरोप में
फैक्ट्रियाँ शुरू नहीं हुई थीं तब भी वहाँ अंतर्राष्ट्रीय माँग को पूरा करने के
लिए बहुत-सा माल बनता था।
यह उत्पादन फैक्ट्रियों में नहीं होता था परन्तु घर-घर
में हाथों से माल तैयार होता था और वह भी काफी मात्रा में। बहुत से इतिहासकार
फैक्ट्रियों की स्थापना से पहले की औद्योगिक गतिविधियों को पूर्व-औद्योगीकरण के
नाम से पुकारते हैं। शहरों में अनेक व्यापारिक गिल्ड्स थीं जो विभिन्न प्रकार की
चीजों का, फैक्ट्रियों की स्थापना से पहले,
उत्पादन करती थीं।
ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से सौदागर यही काम किसानों
और मजदूरों से हाथ द्वारा करवाते थे। यह पूर्व-औद्योगीकरण की व्यवस्था इंग्लैंड और
यूरोप में फैक्ट्रियाँ लगने से पहले के काल में व्यापारिक गतिविधियों का एक
महत्त्वपूर्ण अंग बनी हुई थी।
प्रश्न 6. उन्नीसवीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति
मशीनों की बजाए हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता क्यों देते थे?
उत्तर :- उन्नीसवीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति
मशीनों की बजाए हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता देते थे। इसके
निम्नलिखित कारण थे :-
1.विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में मानव श्रम की कोई कमी नहीं थी।
इसलिए कम वेतन पर मजदूर मिल जाते थे। अतः उद्योगपति मशीनों की बजाए हाथ से काम
करने वाले श्रमिकों को ही रखते थे।
2. जिन उद्योगों में मौसम के साथ साथ उत्पादन घटता-बढ़ता रहता था
वहां उद्योगपति मषीनों के बजाय मजदूरों को ही काम पर रखना पसंद करते थे।
3.बहुत सारे उत्पाद केवल हाथ से ही तैयार किए जा सकते
थे। मशीनों से एक जैसे उत्पाद ही बड़ी संख्या में बनाए जा सकते थे। लेकिन बाजार में
अक्सर बारीक डिजाइन और खास आकारों वाली चीजों की काफी माँग रहती थी । इन्हें बनाने
के लिए यांत्रिक प्रौद्योगिकी की नहीं बल्कि इन्सानी निपुणता की जरूरत थी।
4. विक्टोरियाकालीन ब्रिटेन उच्च वर्ग के कुलीन लोग
हाथों से बनी चीजों को महत्व देते थे। हाथ से बनी चीजों को परिष्कार और सुरूचि का
प्रतीक माना जाता था। उनको एक-एक करके बनाया जाता था और उनका डिजाइन भी अच्छा होता
था।
5.यदि थोड़ी मात्रा में उत्पादन करना हो तो उसे मशीनों की बजाय
श्रमिकों से ही कराया जाता था।
6.क्रिसमस के समय बाइंडरों और प्रिंटरों का कार्य
मशीनों की बजाए मजदूरों की सहायता से अधिक अच्छी तरह से हो सकता था।
प्रश्न 7. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय बुनकरों से सूती
और रेशमी कपड़े की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया ?
उत्तर-ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और
रेशमी की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कार्य किए-
(क) निर्यात व्यापार में बहुत सारे भारतीय व्यापारी और
बैंकर की भूमिका सराहनीय थी।
(ख) कंपनी ने बुनकरों से माल तैयार करवाने, बुनकरों को माल उपलब्ध कराने और कपड़ों की गुणवत्ता
जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी नियुक्त किए जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था।
(ग) कंपनी बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए कर्ज
उपलब्ध कराने लगी।
(घ) कंपनी को माल बेचने वाले बुनकरों को अन्य खरीदारों के साथ
कारोबार करने पर पाबंदी लगा दी। इसके लिए उन्हें पेशगी की रकम दी जाती थी।
(ङ) महीन कपड़े की मांग बढ़ने के साथ बुनकरों को अधिक कर्ज दिया जाने
लगा ज्यादा कमाई की आस में बुनकर पेशगी स्वीकार कर लेते थे।
(च) यूरोप में भारतीय कपड़ों की भारी माँग को देखते हुए बुनकर और
आपूर्ति की सौदागरों पर नियंत्रण करना आवश्यक समझा। कंपनी ने प्रतिस्पर्धा समाप्त
करने, लागतों पर अंकुश रखने और कपास एवं रेशम
से बनी चीजों की नियमित आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए प्रबंधन और नियंत्रण की
एक नई व्यवस्था लागू कर दी।
प्रश्न 8. कल्पना कीजिए कि आपको ब्रिटेन तथा कपास के
इतिहास के बारे में विश्वकोश के लिए लेख लिखने को कहा गया है। इस अध्याय में दी गई
जानकारियों के आधार पर अपना लेख लिखिए।
उत्तर :- ब्रिटेन तथा कपास का इतिहास
1. इंग्लैंड में औद्योगीकरण से पहले भी अंतर्राष्ट्रीय
बाजार के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होने लगा था।
2.यह उत्पादन फैक्ट्रियों में नहीं होता था।
3.इस चरण को आदि औद्योगीकरण कहा जाता है।
4.इंग्लैंड में सबसे पहले 1730 के दशक में कारखाने खुले
लेकिन उनकी संख्या में 18वीं सदी के अंत में तेजी से वृद्धि हुई।
5.कपास नए युग का प्रतीक था। 19वीं सदी के अंत में कपास
के उत्पादन में भारी बढ़ोतरी हुई।
6.1760 में ब्रिटेन अपने कपास उद्योग की जरूरतों को
पूरा करने के लिए 25 लाख पौंड कच्चे कपास का आयात करता था।
7.1787 में यह आयात बढ़कर 220 लाख पौंड तक पहुँच गया।
8.यह वृद्धि उत्पादन की प्रक्रिया में बहुत सारे
बदलावों का परिणाम था।
9.18वीं सदी में कई ऐसे अविष्कार हुए जिन्होंने उत्पादन
प्रक्रिया के हर चरण की कुशलता बढ़ा दी।
10. प्रति मजदूर उत्पादन बढ़ गया और पहले से ज्यादा मजबूत धागों व
रेशों का उत्पादन होने लगा।
11. इसके बाद रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की
रूपरेखा सामने रखी।
12. अभी तक कपड़ा उत्पादन पूरे देहात में फैला हुआ था।
यह काम लोग अपने घर पर ही करते थे लेकिन अब महँगी नयी मशीनें खरीदकर उन्हें
कारखानों में लगाया जा सकता था।
13. कारखानों में सारी प्रक्रियाएँ एक छत के नीचे और एक
मालिक के हाथों में आ गई थीं।
14.सूती उद्योग और कपास उद्योग ब्रिटेन के सबसे
फलते-फूलते उद्योग थे।
15.कपास उद्योग 1840 के दशक तक औद्योगीकरण के पहले चरण
में सबसे बड़ा उद्योग बन चुका था।
16.जब इंग्लैंड में कपास उद्योग विकसित हुआ तो वहाँ के
उद्योगपति दूसरे देशों से आने वाले आयात को लेकर पेरशान दिखाई देने लगे।
17.उन्होंने सरकार पर दबाव डाला कि वह आयातित कपड़े पर
आयात शुल्क वसूल करे जिससे मैनचेस्टर में बने कपड़े बाहरी प्रतिस्पर्धा के बिना
इंग्लैंड में आराम से बिक सके।
18. दूसरी तरफ ’इंडिया कंपनी पर दबाव डाला कि कपड़ों को
भारतीय बाजारों में भी बेचे।
19.1860 के दशक में बुनकरों के सामने नयी समस्या खड़ी हो
गई।
20.उन्हें अच्छी कपास नहीं मिल पा रही थी।
21.जब अमेरिकी गृहयुद्ध शुरू हुआ और अमेरिका से कपास की
आमद बंद हो गई तो ब्रिटेन भारत से कच्चा माल मँगाने लगा।
22.प्रथम विश्व युद्ध के बाद आधुनिकीकरण न कर पाने और
अमेरिका, जर्मनी में जापान के मुकाबले कमजोर पड़
जाने के कारण ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी।
23.कपास का उत्पादन बहुत कम रह गया था और ब्रिटेन से
होने वाले सूती कपड़े के निर्यात में जबरदस्त गिरावट आई।
प्रश्न 9. पहले विश्व युद्ध के समय भारत का औद्योगिक
उत्पादन क्यों बढ़ा?
उत्तर :- प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत का औद्योगिक
उत्पादन बढ़ा। इसके लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे :-
1. ब्रिटिश कारखाने सेना की जरूरतों को पूरा करने के
लिए युद्ध संबंधी उत्पादन में व्यस्त थे। इसलिए भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात
कम हो गया। भारतीय बाजारों को रातों-रात एक विशाल देशी बाजार मिल गया।
2. भारतीय कारखानों में भी फौज के लिए जूट की बोरियाँ, फौजियों के लिए वर्दी के कपड़े, टेंट और चमड़े के जूते, घोड़े व खच्चर की जीन तथा बहुत
सारे अन्य सामान बनने लगे।
3. नए कारखाने लगाए गए। पुराने कारखाने कई पालियों में
चलने लगे। बहुत सारे नये मजदूरों को काम मिलगया। उद्योगपतियों के साथ-साथ मजदूरों
को भी फायदा हुआ, उनके
वेतन में बढ़ोतरी होने से उनकी कायापलट हो गई।
4. प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार को फँसा देखकर
राष्ट्रवादी नेताओं ने भी स्वदेशी चीजों के प्रयोग पर बल देना शुरू कर दिया जिससे
भारतीय उद्योगों को और अधिक बढ़ावा मिला।
इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध के कारण विदेशी उत्पादों
को हटाकर स्थानीय उद्योगपतियों ने घरेलू बाजारों पर कब्जा कर लिया और धीरे-धीरे
अपनी स्थिति मजबूत बना ली।
प्रश्न 10.
गाँव के बुनकरों और गुमाश्तों के बीच झगड़े क्यों हो रहे थे?
उत्तर - जल्दी ही बहुत सारे बुनकर गाँवों में बुनकरों और गुमाश्तों
के बीच टकराव की खबरें आने लगीं। इससे पहले आपूर्ति सौदागर अक्सर बुनकर गाँवों में
ही रहते थे और बुनकरों से उनके नजदीकी तालुक्कात होते थे। वे बुनकरों की जरूरतों
का ख्याल रखते थे और संकट के समय उनकी मदद करते थे। नए गुमाश्ता बाहर के लोग थे।
उनका गाँवों से पुराना सामाजिक सम्बन्ध नहीं था। वे
दंभपूर्ण व्यवहार करते थे, सिपाहियों
व चपरासियों को लेकर आते थे और माल समय पर तैयार न होने की स्थिति में बुनकरों को
सजा देते थे। सजा के तौर पर बुनकरों को अक्सर पीटा जाता था और कोड़े बरसाए जाते थे।
अब बुनकर न तो दाम पर मोलभाव कर सकते थे और न ही किसी और को माल बेच सकते थे।
उन्हें कंपनी से जो कीमत मिलती थी वह बहुत कम थी पर वे कों की वजह से कंपनी से
बंधे हुए थे।
प्रश्न 11. नए उपभोक्ता पैदा करने में विज्ञापन मदद
करता है। कैसे ? कारण बताएँ।
उत्तर - नए उपभोक्ता पैदा करने का एक तरीका विज्ञापनों का है। जब
नयी चीजें बनती हैं, तो
लोगों को उन्हें खरीदने के लिए प्रेरित भी करना पड़ता है। लोगों को लगना चाहिए कि
उन्हें उस उत्पाद की जरूरत है। जैसा कि हम जानते हैं, विज्ञापन
विभिन्न उत्पादों को जरूरी और वांछनीय बना लेते हैं।
वे लोगों की सोच बदल देते हैं और नयी जरूरतें पैदा कर देते हैं। आज
हम एक ऐसी दुनिया में हैं जहाँ चारों तरफ विज्ञापन छाए हुए हैं। अखबारों, पत्रिकाओं, होर्डिग्स.
दीवारों, टेलीविजन के परदे पर, सब जगह
विज्ञापन छाए हुए हैं। लेकिन अगर हम इतिहास में पीछे मुड़कर देखें तो पता चलता है
कि औद्योगीकरण की शुरुआत से ही विज्ञापनों ने विभिन्न उत्पादों के बाजार को फैलाने
में और एक नयी उपभोक्ता संस्कृति रचने में अपनी भूमिका निभाई है।
जब मेनचेस्टर के उद्योगपत्तियों ने भारत में कपड़ा बेचना शुरू किया
तो वे कपड़े के बंडलों पर लेबल लगाते थे। लेबल का फायदा यह होता था कि खरीदारों को
कंपनी का नाम व उत्पादन की जगह पता चल जाती थी। लेबल ही चीजों की गुणवत्ता का
प्रतीक भी था। जब किसी लेबल पर मोटे अक्षरों में ‘मेड इन मेनचेस्टर लिखा दिखाई
देता तो खरीदारों को कपड़ा खरीदने में किसी तरह का डर नहीं रहता था। इस प्रकार
स्पष्ट है कि विज्ञापन नए उपभोक्ता पैदा करने में काफी मदद करता है।
प्रश्न 12. 19वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत के कपड़ा निर्यात में
गिरावट आने लगी क्यों?
उत्तर :- जब इंग्लैंड में कपास उद्योग विकसित हुआ तो
वहां के उद्योगपति दूसरे देशों में आने वाले आयात को लेकर परेशान दिखाई देने लगे।
उन्होंने सरकार पर दबाव डाला कि वह आयतित कपड़े पर आयात शुल्क वसूल करें। जिससे
मैनचेस्टर में बने कपड़े बाहरी प्रतिस्पर्धा के बिना इंग्लैंड में आराम से बिक सके।
दूसरी तरफ उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी पर दबाव डाला कि वह ब्रिटिश कपड़ों को भारतीय
बाजारों में भी बेचे। 19वीं सदी के आरंभ में ब्रिटेन के वस्त्र उत्पादों के
निर्यात में वृद्धि हुई और भारत के कपड़ा निर्यात में गिरावट आने लगी जो लंबे समय
तक जारी रहा।
प्रश्न 13. 18 वीं शताब्दी में इंग्लैंड में सूती कपड़ा
उद्योग में वृद्धि किस कारणों से हुई?
उत्तर :- इंग्लैंड में सबसे पहले 1730 के दशक में
कारखाने खुले, लेकिन उनकी संख्या
में तेजी से वृद्धि 18 वीं शताब्दी के आखिर में हुई। 18वीं शताब्दी के अंत में
कपास के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई। ब्रिटेन 1760 ई॰ में 25 लाख पौंड कच्चे कपास
का आयात करता था। जो 1787 ई॰ में 220 लाख पौंड तक पहुंचा। 18वीं शताब्दी में कई
ऐसे आविष्कार हुए जिन्होंने उत्पादन प्रक्रिया ऐठना व कताई और लपेटने के हर चरण
में कुशलता बढ़ा दी। प्रति मजदूर उत्पादन बढ़ गया। इसके बाद रिचर्ड आर्कराइट ने सूती
कपड़ा मिल की रूपरेखा सामने रखी। अभी तक कपड़ा उत्पादन पूरे ग्रामीण इलाके में फैला
हुआ था। कारखाने लगने से सारी प्रक्रियाएं एक छत के नीचे और एक मालिक के हाथों में
आ गई थी। इसके कारण उत्पादन प्रक्रिया पर निगरानी, गुणवत्ता
का ध्यान रखना और मजदूरों पर नजर रखना संभव हो गया था।
प्रश्न 14. उत्पादों की विक्रय प्रक्रिया में
विज्ञापनों के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर :- विज्ञापन नए उत्पादों के बारे में उपभोक्ताओं
के विचार बदलकर उनकी ओर आकर्षित कर देते हैं। नए उपभोक्ता पैदा करने का तरीका
विज्ञापन है। आज हम एक ऐसी दुनिया में है जहां चारों तरफ विज्ञापन छाए हुए हैं।
औद्योगिकरण की शुरुआत से ही विज्ञापनों ने विभिन्न उत्पादों को बाजार में फैलाने
में और एक नए उपभोक्ता संस्कृति रचने में अहम भूमिका निभाई है।
जब मैनचेस्टर के उद्योगपतियों ने भारत में कपड़ा बेचना शुरू किया तो
वह कपड़े के बंडलों पर लेबल लगाते थे। जिससे खरीदारों को कंपनी का नाम व उत्पादन की
जगह पता चल जाती थी। लेबल ही चीजों की गुणवत्ता का प्रतीक भी था। लेबलों पर सिर्फ
शब्द और अक्षर ही नहीं तस्वीरें भी बनी होती थी। जो सुंदर होती थी ये लोगों को
अपनी ओर आकर्षित करते थे। लेबलों में भारतीय देवी देवताओं की तस्वीरें प्रायः होती
थी। तस्वीरों का लाभ यह होता था कि विदेशों में बनी चीज भी भारतीयों को जानी
पहचानी सी लगती थी।
19वीं शताब्दी के अंत में निर्माता अपने उत्पादों को
बेचने के लिए कैलेंडर छपवाने लगे थे। कैलेंडर उनकी भी समझ में आता था जो पढ़े-लिखे
नहीं होते थे। एक कैलेंडर से वर्षभर उत्पाद का विज्ञापन होता रहता था। देवताओं की
तस्वीरों की तरह महत्वपूर्ण व्यक्तियों,
सम्राटों और नवाबों की तस्वीरें भी विज्ञापन में खूब इस्तेमाल होती
थी। जिनका संदेश होता था अगर आप विज्ञापन में छपी तस्वीरों को सम्मान करते हैं तो
इस उत्पाद का भी सम्मान कीजिए। इस प्रकार उनकी गुणवत्ता के बारे में साधारण
व्यक्ति को किसी तरह का डर नहीं रहता था।
प्रश्न 15. भारत में कारखानों के विकास पर एक संक्षिप्त
टिप्पणी लिखें।
या
भारत में कारखानों की वृद्धि को समझाइये।
उत्तर:
(i)
भारत में सबसे पहले कपास
और जूट मिलें स्थापित की गईं। पहली कपास मिल 1854 में बॉम्बे, मुंबई में स्थापित
की गई।
(ii)
1864 तक यह संख्या बढ़कर
चार हो गई। कपड़ा शून्य के बाद जूट मिल स्थापित हुई जो अस्तित्व में आई। बंगाल में
1855 में अस्तित्व में।
(iii)
1862 में बंगाल में ही एक
और जूट मिल स्थापित की गई।
(iv)
उत्तर भारत में, एल्गिन
मिल 1860 के दशक में कानपुर में शुरू की गई थी। और एक साल बाद, अहमदाबाद की पहली
कपास मिल स्थापित की गई
(v)
1874 तक मद्रास (चेन्नई)
की पहली कताई और बुनाई मिल का उत्पादन शुरू हुआ।
प्रश्न 16.
19वीं शताब्दी में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय व्यापारियों पर लगाए गए किन्हीं पाँच
प्रतिबंधों का उल्लेख करें।
उत्तर:
(i)
भारतीय व्यापारी जिस
अतिरिक्त पूंजी के साथ काम कर सकते थे, वह सीमित हो गई।
(ii)
उन्हें यूरोप के साथ
विनिर्मित वस्तुओं का व्यापार करने से रोक दिया गया।
(iii)
उन्हें ज्यादातर कच्चा
माल और खाद्यान्न, कच्चा कपास, अफीम, गेहूं और नील का निर्यात करना पड़ा।
अंग्रेजों द्वारा आवश्यक।
(iv)
उन्हें धीरे-धीरे शिपिंग
व्यवसाय से बाहर कर दिया गया।
(v)
प्रथम विश्व युद्ध तक,
यूरोपीय प्रबंध एजेंसियों ने भारतीय उद्योगों के एक बड़े क्षेत्र को नियंत्रित
किया।
प्रश्न 17. “बुनकरों का कुछ समूह
मिल उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धा में जीवित रहने के लिए दूसरों की तुलना में बेहतर
स्थिति में था।” व्याख्या कीजिये।
उत्तर:(i) मोटे कपड़े के निर्माता: बुनकरों में से कुछ मोटे
कपड़े का उत्पादन करते थे जबकि अन्य बढ़िया किस्म के कपड़े बुनते थे। मोटा कपड़ा
गरीबों द्वारा खरीदा जाता था और इसकी मांग में तेजी से उतार-चढ़ाव होता था। खराब
फसल और अकाल के समय जब ग्रामीण गरीबों के पास खाने के लिए बहुत कम था। और उनकी नकद
आय गायब हो गई, वे संभवतः कपड़ा नहीं खरीद सके।
(ii)
बेहतर किस्मों के उत्पादक: बेहतर किस्मों के उत्पादक बेहतर स्थिति में थे
क्योंकि अमीरों द्वारा खरीदी गई बेहतर किस्मों की मांग अधिक स्थिर थी। गरीब भूखा
होने पर भी अमीर इन्हें खरीद सकते थे। अकाल का बनारसी या बालूचरी साड़ियों की
बिक्री पर कोई असर नहीं पड़ा। इसके अलावा, जैसा कि आपने देखा, मिलें विशिष्ट
बुनकरों की नकल नहीं कर सकतीं। बुने हुए बॉर्डर वाली साड़ियाँ, या मद्रास की
प्रसिद्ध लुंगी और रूमाल, मिल उत्पादन द्वारा आसानी से विस्थापित नहीं किए जा
सकते।
प्रश्न 18. 'सत्रहवीं और अठारहवीं
शताब्दी में, यूरोप के शहरों से व्यापारी ग्रामीण इलाकों की ओर जाने लगे।' कारण दीजिये।
या
औद्योगिक क्रांति से पहले शहरों में अपने उद्योग स्थापित करने में नए यूरोपीय
व्यापारियों के सामने आने वाली किन्हीं तीन प्रमुख समस्याओं की व्याख्या करें।
या
आद्य-औद्योगिकीकरण से क्या अभिप्राय है, यह 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड के
ग्रामीण इलाकों में क्यों सफल रहा
या
17वीं और 18वीं शताब्दी में यूरोप में आद्य-औद्योगीकरण चरण के दौरान उत्पादन
पर एक उदाहरण सहित प्रकाश डालें।
उत्तर - औद्योगीकरण
का प्रारंभिक चरण जिसमें अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन
कारखानों में नहीं बल्कि विकेन्द्रीकृत इकाइयों में किया जाता था।
(i) भारी मांग -17वीं और 18वीं शताब्दी के दौरान विश्व व्यापार का बहुत तेजी से
विस्तार हुआ। मांग में वृद्धि के लिए उपनिवेशों का अधिग्रहण भी जिम्मेदार था। शहर
के निर्माता आवश्यक मात्रा में उत्पादन करने में विफल रहे।
(ii) शक्तिशाली नगर
उत्पादक - नगर उत्पादक बहुत शक्तिशाली थे, • उत्पादक
उत्पादन का विस्तार नहीं कर सकते थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि कस्बों में शहरी शिल्प
और व्यापार संघ शक्तिशाली थे। ये उत्पादकों के संघ थे जो शिल्पकारों को प्रशिक्षित
करते थे, उत्पादन पर नियंत्रण बनाए रखते थे, प्रतिस्पर्धा और कीमतों को नियंत्रित
करते थे और व्यापार के भीतर नए लोगों के प्रवेश को प्रतिबंधित करते थे।
(iii) एकाधिकार - शासकों ने विभिन्न संघों
को विशिष्ट उत्पादों के उत्पादन और व्यापार का एकाधिकार अधिकार दिया, इसलिए नए
व्यापारियों के लिए शहरों में व्यवसाय स्थापित करना कठिन था। इसलिए उन्होंने
ग्रामीण इलाकों की ओर रुख किया।
(iv) ग्रामीण इलाकों
में नई आर्थिक स्थिति - ग्रामीण इलाकों में खुले मैदान
गायब हो रहे थे और सार्वजनिक क्षेत्रों को घेरा जा रहा था। किसान और गरीब किसान,
जो पहले सामान्य भूमि पर निर्भर थे, बेरोजगार हो गए। इसलिए जब व्यापारी आए और
उत्पादन के लिए अग्रिम राशि की पेशकश की, तो किसान परिवार उत्सुकता से सहमत हो गए।
प्रश्न 19. इंग्लैण्ड में औद्योगिक
क्रांति के कोई पाँच कारण बताइये।
उत्तर:(i) बढ़ता
अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार - सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी
में, यूरोप के शहरों से व्यापारी ग्रामीण इलाकों की ओर जाने लगे, किसानों और
कारीगरों को धन की आपूर्ति करने लगे, और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के लिए
उत्पादन करने के लिए प्रेरित किया।
(ii) मांग में वृद्धि - विश्व व्यापार के
विस्तार और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में उपनिवेशों के अधिग्रहण के साथ, वस्तुओं
की मांग बढ़ने लगी। इस पर व्यापारियों का नियंत्रण था और माल का उत्पादन बड़ी
संख्या में उत्पादकों द्वारा किया जाता था जो कारखानों में नहीं बल्कि अपने
पारिवारिक खेतों में काम करते थे।
(iii) प्रोटो-औद्योगिक
प्रणाली - बाजार और मांग के विस्तार से प्रोटो-औद्योगिक
विकास हुआ जिसने औद्योगिक क्रांति को आधार प्रदान किया।
(iv) नए आविष्कार - अठारहवीं शताब्दी में आविष्कारों की एक श्रृंखला ने उत्पादन
प्रक्रिया के प्रत्येक चरण (कार्डिंग, ट्विस्टिंग और स्पिनिंग, और रोलिंग') की
प्रभावशीलता में वृद्धि की, उन्होंने प्रति श्रमिक उत्पादन बढ़ाया, जिससे प्रत्येक
श्रमिक अधिक उत्पादन करने में सक्षम हो गया, और उन्होंने मजबूत धागों और धागों का
उत्पादन संभव बनाया। फिर रिचर्ड आर्कराइट ने कपास मिल बनाई।
(v) पूंजी की उपलब्धता - इंग्लैंड ने अपने बढ़ते व्यापार के मुनाफे से जो बड़ी मात्रा
में पूंजी जमा की थी, उसने उसे मशीनरी और इमारतों पर बड़े खर्च करने में सक्षम
बनाया। इससे नये तकनीकी विकास हुए।
(vi) कच्चे माल की
उपलब्धता - बड़ी मात्रा में कोयले और लौह अयस्कों की
उपलब्धता ने इंग्लैंड में कई उद्योगों के विकास में काफी मदद की।
प्रश्न 20. अधिकांश उत्पादक नई
तकनीक का उपयोग करने में अनिच्छुक क्यों थे, उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
या
मशीनें आने के बाद उद्योगपति हाथ के श्रम से छुटकारा क्यों नहीं पाना चाहते
थे?
या
"आधुनिक औद्योगीकरण इंग्लैंड में पारंपरिक उद्योगों को हाशिये पर नहीं
डाल सका"। किन्हीं चार उपयुक्त तर्कों से कथन की पुष्टि कीजिए।
या
19 वीं सदी के दौरान यूरोप के उद्योगपतियों ने मशीनों के
बजाय हाथ से काम करने वाले श्रम को प्राथमिकता क्यों दी? कोई पाँच कारण स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर:
(i)
महंगी नई तकनीक: नई तकनीक
और मशीनें महंगी थीं, इसलिए उत्पादक और उद्योगपति उनका उपयोग करने में सतर्क थे।
(ii)
महंगी मरम्मत: मशीनें
अक्सर खराब हो जाती थीं और मरम्मत महंगी होती थी।
(iii)
कम प्रभावी: वे थे उतने
प्रभावी नहीं हैं जितना उनके आविष्कारकों और निर्माताओं ने दावा किया था।
(iv)
सस्ते श्रमिकों की
उपलब्धता: गरीब किसान और प्रवासी बड़ी संख्या में नौकरियों की तलाश में शहरों की
ओर चले गए। इसलिए श्रमिकों की आपूर्ति मांग से अधिक थी। इसलिए, श्रमिक कम वेतन पर
उपलब्ध थे।
(v)
समान मशीन-निर्मित सामान:
उत्पादों की एक श्रृंखला का उत्पादन केवल हाथ के श्रम से किया जा सकता था। मशीनें
बड़े पैमाने पर बाजार के लिए वर्दी, मानकीकृत सामान का उत्पादन करने के लिए उन्मुख
थीं। लेकिन उन्नीसवीं सदी के मध्य में बाजार में मांग अक्सर जटिल डिजाइन और
विशिष्ट आकार वाले सामानों की थी। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन। 500 प्रकार के हथौड़ों
और 15 प्रकार की कुल्हाड़ियों का उत्पादन किया गया। इनमें यांत्रिक प्रौद्योगिकी
की नहीं, मानवीय कौशल की आवश्यकता थी।
प्रश्न
21.'इतिहासकार अब तेजी से यह मानने लगे हैं कि 19वीं शताब्दी
के मध्य में विशिष्ट श्रमिक कोई मशीन ऑपरेटर नहीं था, बल्कि पारंपरिक शिल्पकार और मजदूर
था।' उदाहरण देकर पुष्टि कीजिए।
या
इतिहासकार इस बात से क्यों सहमत हैं कि उन्नीसवीं सदी के
मध्य में विशिष्ट श्रमिक मशीन ऑपरेटर नहीं बल्कि पारंपरिक शिल्पकार और मजदूर थे ।
उत्तर:
(i) नई मशीनों की प्रौद्योगिकी
की धीमी गति: यद्यपि तकनीकी आविष्कार हो रहे थे, लेकिन उनकी गति बहुत धीमी थी,
वे औद्योगिक परिदृश्य में नाटकीय रूप से फैल नहीं पाए।
(ii) महँगे: नई प्रौद्योगिकियाँ
और मशीनें महँगी थीं, इसलिए उत्पादक और उद्योगपति उनका उपयोग करने में सतर्क थे। मशीनें
अक्सर ख़राब हो जाती थीं और मरम्मत महंगी होती थी। वे उतने प्रभावी नहीं थे जितना उनके
आविष्कारकों और निर्माताओं ने दावा किया था।
(iii) मशीनों का सीमित
उपयोग: जेम्स वाट ने न्यूकमेन द्वारा निर्मित सीम इंजन में सुधार किया और 1781
में नए इंजन का पेटेंट कराया। उनके उद्योगपति मित्र मैथ्यू बोल्टन ने नए मॉडल का निर्माण
किया। लेकिन उन्हें पर्याप्त खरीदार नहीं मिल सके। उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में, पूरे
इंग्लैंड में लगभग 321 भाप इंजन थे। इनमें से 9 ऊन उद्योगों में, और बाकी खनन, नहर
कार्यों और लौह कार्यों में। 19वीं सदी के अंत में भी कोई अन्य उद्योग भाप इंजन का
उपयोग नहीं कर रहा था। इसलिए श्रम की उत्पादकता को कई गुना बढ़ाने वाली सबसे शक्तिशाली
नई तकनीक भी उद्योगपतियों द्वारा स्वीकार करने में धीमी थी।
प्रश्न 22.. 'औद्योगीकरण की
प्रक्रिया अपने साथ औद्योगिक श्रमिकों के नए उभरे वर्ग के लिए दुख लेकर आई।'
व्याख्या करना।
या
उन्नीसवीं सदी के दौरान ब्रिटेन में औद्योगिक श्रमिकों की दयनीय स्थिति की
व्याख्या करें।
या
उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान बाजार में श्रम की प्रचुरता ने ब्रिटेन में
श्रमिकों के जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया, उदाहरण सहित समझाइए।
या
उन्नीसवीं सदी के ब्रिटिश श्रमिकों की जीवनशैली का वर्णन करें।
या
बताएं कि बीसवीं सदी की शुरुआत में यूरोप में श्रमिकों की स्थिति में लगातार
गिरावट कैसे आई।
उत्तर:
(i)
मांग से अधिक श्रमिक: बाजार में मांग से अधिक श्रमिकों की बहुतायत थी इसका श्रमिकों के
जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। काम की कमी के कारण, अधिकांश श्रमिक नौकरी पाने में
असफल रहे, इसलिए उन्होंने कम वेतन पर अपनी सेवाएं दीं।
(ii)
काम की मौसमीता: किसी भी उद्योग में काम की मौसमीता का मतलब लंबे समय तक बिना काम के
रहना था। व्यस्त सीज़न ख़त्म होने के बाद, गरीब फिर से सड़कों पर थे। कुछ लोग सर्दियों
के बाद ग्रामीण इलाकों में लौट आए, जब ग्रामीण क्षेत्रों में श्रम की मांग बढ़ गई।
लेकिन ज्यादातर लोग छोटी-मोटी नौकरियों की तलाश में रहते थे, जो उन्नीसवीं सदी के मध्य
तक मिलना मुश्किल था।
(iii)
कम वास्तविक मजदूरी: हालांकि 19वीं सदी की शुरुआत में मजदूरी में कुछ वृद्धि हुई, लेकिन
कीमतों में वृद्धि के कारण यह वृद्धि रद्द हो गई। नेपोलियन के बर्तनों के दौरान,
लाल मजदूरी में काफी गिरावट आई।
(iv)
गरीबी और बेरोजगारी: सबसे अच्छे समय में, उन्नीसवीं सदी के मध्य तक, शहरी आबादी का लगभग
10 प्रतिशत बेहद गरीब था और बेरोजगारी दर भी बहुत अधिक थी।
(v)
आवास की समस्या: फैक्ट्री या वर्कशॉप के मालिक जीवित प्रवासी श्रमिकों को आवास नहीं
देते थे। कई नौकरी चाहने वालों को हफ्तों इंतजार करना पड़ा, पुलों के नीचे रातें
गुजारनी पड़ीं या आश्रय स्थलों में रातें बितानी पड़ीं।
प्रश्न 23. '18वीं शताब्दी के अंत तक
सूरत और हुगली के बंदरगाहों का पतन हो गया।' व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
(i)
अधिकांश यूरोपीय कंपनियों
के पास विशाल संसाधन थे, इसलिए भारतीय व्यापारियों के लिए प्रतिस्पर्धा का सामना
करना बहुत मुश्किल था।
(ii)
यूरोपीय कंपनियां स्थानीय
अदालतों से विभिन्न प्रकार की रियायतें हासिल करके शक्ति प्राप्त कर रही थीं।
(iii)
कुछ कंपनियों को व्यापार का एकाधिकार प्राप्त हो गया। इस सबके परिणामस्वरूप सूरत और
हुगली के पुराने बंदरगाहों का पतन हो गया, जिनके माध्यम से स्थानीय व्यापारियों का
संचालन होता था। इन बंदरगाहों से निर्यात में नाटकीय रूप से गिरावट आई, पहले के व्यापार
को वित्तपोषित करने वाला ऋण सूखने लगा। और स्थानीय बैंकर धीरे-धीरे दिवालिया हो गए।
(iv)
सत्रहवीं शताब्दी के अंतिम
वर्षों में, सूरत बंदरगाह से होने वाले व्यापार का सकल मूल्य
16 मिलियन था। 1740 के दशक तक. समय बीतने के साथ यह गिरकर 30 लाख रुपये पर आ गया।
सूरत और हुगली का पतन हो गया। बम्बई (मुंबई), और कलकत्ता (कोलकाता) का विकास हुआ।
प्रश्न 24. प्रथम विश्व युद्ध का
भारतीय उद्योगों पर प्रभाव स्पष्ट करें।
या
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय औद्योगिक विकास की विशेषताओं का वर्णन
करें।
या
विश्व युद्ध भारतीय उद्योगों के लिए किस प्रकार वरदान साबित हुआ स्पष्ट करें।
उत्तर:
(i)
मैनचेस्टर का पतन - ब्रिटिश मिलें सेना की
जरूरतों को पूरा करने के लिए युद्ध उत्पादन में व्यस्त थीं। भारत में मैनचेस्टर के
आयात में गिरावट आई।
(ii)
मांग में वृद्धि - आयात में अचानक गिरावट
के साथ। भारतीय मिलों के पास आपूर्ति के लिए एक विशाल घरेलू बाज़ार था।
(iii)
सेना से मांग - जैसे-जैसे युद्ध लम्बा
होता गया। भारतीय कारखानों को युद्ध की जरूरतों की आपूर्ति करने के लिए बुलाया गया
था; यानी। जूट के थैले, सेना की वर्दी के लिए सामान, तंबू और चमड़े के जूते, घोड़े
और खच्चर की काठी, और कई अन्य सामान।
(iv)
नए कारखाने - नए कारखाने स्थापित किए
गए। और पुराने वाले कई शिफ्टों में चलते थे। कई नए श्रमिकों को नियोजित किया गया,
और सभी को अधिक समय तक काम करने के लिए मजबूर किया गया। युद्ध के वर्षों में,
औद्योगिक उत्पादन में तेजी आई।
(v)
ब्रिटिश उद्योग का पतन और
घरेलू उद्योग के लिए वरदान - युद्ध के बाद मैनचेस्टर कभी भी भारतीय बाजार में अपनी पुरानी स्थिति
हासिल नहीं कर सका। अमेरिका के साथ आधुनिकीकरण और प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ।
युद्ध के बाद जर्मनी और जापान, ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था चरमरा गई। कपास का उत्पादन
ढह गया और ब्रिटेन से सूती कपड़े का निर्यात नाटकीय रूप से गिर गया। उपनिवेशों के
भीतर, स्थानीय उद्योगपतियों ने धीरे-धीरे अपनी स्थिति मजबूत कर ली, विदेशी
निर्माताओं को प्रतिस्थापित कर दिया और घरेलू बाजार पर कब्जा कर लिया।
प्रश्न
25. कारण
बताएं कि भारत में हथकरघा बुनकर मैनचेस्टर के मशीन निर्मित वस्त्रों के हमले से क्यों
बच गए।
या
औद्योगीकरण के बावजूद भारत में लघु उद्योग कैसे जीवित रहे
।
उत्तर:
(i)
कई लोगों ने बिना लागत
बढ़ाए नई तकनीक अपनानी शुरू कर दी। 20वीं सदी के दूसरे दशक तक अधिकांश बुनकर फ्लाई
शटल वाले करघों का उपयोग कर रहे थे।
(ii)
नई तकनीक ने प्रति श्रमिक
उत्पादकता में वृद्धि की, उत्पादन में तेजी लाई और श्रम की मांग कम कर दी।
(iii)
कुछ बुनकर जो अच्छी
किस्मों की बुनाई करने में कामयाब रहे जीवित रहे क्योंकि मशीन से बने उत्पाद
अमीरों और कुलीनों को आकर्षित करने में विफल रहे। ऐसे कई बुनकर थे जो बंसारी या
बालूचरी साड़ी, लुंगी जैसे विशेष उत्पाद तैयार कर रहे थे। और रूमाल.
(iv)
भारतीय राष्ट्रवादियों
द्वारा शुरू किए गए स्वदेशी आंदोलन ने हथकरघा की मांग को बढ़ावा दिया।
प्रश्न 26. जब मैनचेस्टर के उद्योगपतियों ने भारत में
कपड़ा बेचना शुरू किया, तो उन्होंने कपड़े के बंडलों पर चित्रों वाले लेबल लगा
दिए। उन्होंने ऐसा क्यों किया? व्याख्या कीजिये।
उत्तर.
(i)
वे अपने उत्पादों का
विज्ञापन करने और अपने बाज़ार का विस्तार करने के लिए चित्रों के साथ लेबल लगाते
हैं।
(ii)
भारतीय देवी-देवताओं की
छवियां नियमित रूप से इन लेबलों पर दिखाई देती हैं, जैसे कि देवताओं के साथ जुड़ाव
ने बेची जा रही वस्तुओं को दैवीय स्वीकृति दे दी हो। कृष्ण या सरस्वती की छवि का
उद्देश्य विदेशी भूमि के निर्माता को भारतीय लोगों के लिए कुछ हद तक परिचित दिखाना
था।
(iii) महत्वपूर्ण व्यक्तियों,
सम्राटों और नवाबों की छवियां, सुशोभित विज्ञापन और कैलेंडर। संदेश अक्सर यह संदेश
देते प्रतीत होते हैं कि, यदि आप शाही व्यक्ति का सम्मान करते हैं, तो इस उत्पाद
का भी सम्मान करें; जब उत्पाद राजाओं द्वारा उपयोग किया जा रहा था, या शाही आदेश
के तहत उत्पादित किया जा रहा था, तो इसकी गुणवत्ता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता था।
प्रश्न
27. ब्रिटिश
उत्पादों के लिए नए उपभोक्ता बनाने में कैलेंडर की भूमिका स्पष्ट करें।
उत्तर- ब्रिटिश उत्पादों के लिए नए उपभोक्ता बनाने में कैलेंडर की भूमिका
थी:
· समाचार पत्रों और पत्रिकाओं
के विपरीत, कैलेंडर का उपयोग वे लोग भी कर सकते हैं जो पढ़ नहीं सकते।
· इन्हें चाय की दुकानों और
गरीब लोगों के घरों में भी उतना ही लटकाया जाता था जितना कि कार्यालयों और मध्यवर्गीय
अपार्टमेंटों में।
· जो लोग कैलेंडर टांगते थे
वे उन्हें पूरे साल देखते थे।
· उत्पाद का विज्ञापन करने
के लिए कैलेंडरों में देवी-देवताओं की आकृतियों का भी उपयोग किया गया।
प्रश्न 28.प्रथम
विश्व युद्ध के बाद मैनचेस्टर कभी भी भारतीय बाज़ार में अपना पुराना स्थान पुनः
प्राप्त नहीं कर सका। क्यों?
उत्तर:
· प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था
चरमरा गई। यह अपने उद्योगों का आधुनिकीकरण नहीं कर सका और इसलिए, अमेरिका, जर्मनी
और जापान के साथ प्रतिस्पर्धा करने में विफल रहा।
· कपास का उत्पादन ढह गया और ब्रिटेन से सूती कपड़े का
निर्यात नाटकीय रूप से गिर गया।
· उपनिवेशों के भीतर, स्थानीय उद्योगपतियों ने
धीरे-धीरे अपनी स्थिति मजबूत कर ली। उन्होंने विदेशी निर्माताओं को प्रतिस्थापित
करना शुरू कर दिया और अंततः घरेलू बाज़ार पर कब्ज़ा करने में सफलता प्राप्त की।
धन्यवाद
आप सफल हों
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