जाति , धर्म और लैंगिक मसले Class 10

  जाति , धर्म और लैंगिक मसले

इस अध्याय की मुख्य बातेंः

    ·       लैंगिक मसले ओर राजनीति

    ·       निजी और सार्वजनिक का विभाजन

    ·       महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व

    ·       धर्मसाम्प्रदायिकता और राजनीति

o   धर्म

o   साम्प्रदायिकता

    ·       धर्मनिरपेक्ष शासन

    ·       जाति और राजनीति

o   जातिगत असमानताएं

    ·       भारत की सामाजिक और धार्मिक विविधता

    ·       राजनीति में जाति

    ·       जातिगत समानता

    ·       जाति के अंदर राजनीति।


सारांश

परिचय :

    सामाजिक विविधता लोकतंत्र के लिए कोई खतरा नहीं होती। कइ्र बार तो यह अभिव्यक्ति लोकतंत्र के लिए     लाभकर भी होती है। भारत में लोकतंत्र के कामकाज को परखने के लिए तीन बिंदुओं पर चर्चा हम इस अध्याय में करेंगे वो हैं - लिंगधर्म ओर जाति आधारित सामाजिक विषमताएं।

श्रम का लैंगिक विभाजनः

काम के बँटवारे का यह तरीका जिसमें घर के अंदर के सारे काम परिवार की औरतें करती हैं या अपनी देखरेख में घरेलू नौकरों और नौकरानियों से करवाती हैं। पुरूषों द्वारा बाहर के कामकाज किए जाते हैं। एक ओर जहाँ सार्वजनिक जीवन में पुरूषों का वर्चस्व रहता है वहीं दूसरी ओर महिलाओं को घर की चहारदीवारी में समेट दिया जाता है।

लैंगिक असमानता का आधार :-

    लैंगिक असमानता का आधार स्त्री और पुरूष की जैविक बनावट नहीं बल्कि इन दोनों के बारे में प्रचलित रूढ़ छवियाँ और तयशुदा सामाजिक भूमिकाएँ हैं।

    ·      वैसे तो भारतीय समाज में स्त्री ओर पुरूषों के कार्यों का विभाजन है किन्तु वे कार्य जो सामान्य तौर पर घर के अंदर जो कार्य महिलाओं के हिस्से में आते हैं यदि उस कार्य के पैसे मिलते हैं तो पुरूष भी ऐसे कार्य कर लेता है। और स्त्रियां भी पुरूषोचित कार्य करती हैं।

नारीवादी आंदोलन :-

    ·       महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के उद्देश्य से होने वाले आंदोलनों को नारीवादी आंदोलन कहते हैं।

    ·       आबादी में तो औरतों का हिस्सा आधा है किन्तु राजनीति और समाज में उनकी भूमिका न के बराबर है।

सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की बदलती भूमिका :-

    ·       आज सार्वजनिक जीवन में औरतों की भूमिका बदल रही है। वे एक डॉक्टरवैज्ञानिकइंजीनियरमैनेजर राजनेता आदि प्रमुख भूमिकाओं में अहम स्थान पर आ रही हैं।

    ·       सार्वजनिक जीवन में स्वीडननार्वे और फिनलैंड जैसे देशों में महिलाओं की भागीदारी का स्तर काफी ऊँचा है।

पितृप्रधान :-

    ·       इसका शाब्दिक अर्थ तो है पिता का शासन पर इस अर्म का प्रयोग महिलाओं की तुलना में पुरूषों को ज्यादा महत्वज्यादा शक्ति देने वाली व्यवस्था के लिए भी किया जाता है।

विभिन्न तरीकों से महिलाओं का दमन :-

    ·       साक्षरता दर - पुरूष साक्षरता दर ............. तथा महिला साक्षरता दर उससे कम ................. है।

    ·       नौकरियाँ - उच्च पदों ओर वेतन पर कार्य करने वालों में महिलाओं की संख्या बहुत कम है।

    ·     कार्य का समय और भुगतान - भारत में एक महिलाएक पुरूष की तुलना में प्रतिदिन एक घण्टा ज्यादा कार्य करती है फिर भी उसे कम भुगतान होता है। महिला के कार्य को मूल्यवान नहीं माना जाता।

    ·       समान कार्य का समान नियम लागू होने के बावजूद स्त्री-पुरूष के कार्यो को समान नहीं माना जाता और स्त्री को मजदूरी कम भुगतान की जाती है।

    ·       लिंगानुपात - प्रति हजार पुरूषों पर महिलाओं की संख्या 943 है। क्योंकि पुत्र की चाहत में पुत्रियों को भ्रूण में ही खत्म कर दिया जाता है।

    ·       भारतीय संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 11.8 प्रतिशत है जो कि विश्व के औसत लगभग 24 प्रतिशत से बहुत कम है।

बाल स्त्री-पुरूष अनुपात -

    ·       सर्वाधिक बाल स्त्री-पुरूष अनुपात वाले राज्य है - केरलपश्चिम बंगालछत्तीसगढ़सिक्किमअसम                    अरूणाचलप्रदेशमेघालयमिजोरमत्रिपुरा।

    ·       न्यूनतम बाल स्त्री-पुरूष अनुपात वाले राज्य - पंजाबहरियाणा।

महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व :-

    ·  महिलाओं की सत्ता में साझेदारी के अनुपात को बढ़ाकर उनकी भलाई तथा समान व्यवहार को स्थापित किया जा सकता है।

    ·  लोकसभा में 2019 में महिला सांसदों की संख्या पहली बार 14.36 प्रतिशत रही।

    ·  राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिशत 5 से भी कम है।

    ·  स्थानीय निकायों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने एक तिहाई पदों पर आरक्षण दिया गया है।

    ·  लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी एक तिहाई करने का प्रस्ताव लंबित पड़ा हुआ है।

    ·   भारत में स्थानीय निकायों में निर्वाचित महिलाओं की संख्या 10 लाख से ज्यादा है।

धार्मिक अंतरों पर आधारित विभाजन :-

    ·       लैंगिक विभाजन के विपरीत धार्मिक विभाजन राजनीति के मैदान में ज्यादा मुखर दिखाई देता है। आयरलैंड श्रीलंका आदि देशों की तरह भारत में भी अलग - अलग धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं।

    ·       ‘‘धर्म को कभी राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता है।’’ - महात्मा गाँधी। यहाँ पर गांधी जी का मतलब धर्म द्वारा स्थापित मूल्यों से राजनीति के संचालन से था।

    ·       संप्रदायिक दंगों में ज्यादातर अल्पसंख्यक ही मारे जाते हैं।

    ·       महिला आंदोलन वाले कहते हैं कि धर्म कोई सा भी हो महिलाओं को पुरूषों की तुलना में दोयम दर्जे के व्यहार  का सामना करना पड़ता है।

पारिवारिक कानून :-

    ·       विवाहतलाकगोद लेना और उत्तराधिकार जैसे परिवार से जुड़े मसलों से संबंधित कानून को पारिवारिक कानून कहते हैं।

साम्प्रदायिकता :-

    ·       अपने धर्म या सम्प्रदाय को दूसरे धर्म या सम्प्रदाय से श्रेष्ठ मानते हुए अपनी विचारधारा को दूसरों पर थोपना तथा दूसरे सम्प्रदाय का निरादर और दुष्प्रचार करते हुए दूसरे समह के विरूद्ध खड़ा हो जाना सम्प्रदायवाद है।

    ·       लैंगिक विभाजन के विपरीत धार्मिक विभाजन अक्सर राजनीति के मैदान में अभिव्यक्त होता है।

    ·       लोगों को एक धार्मिक समुदाय के तौर पर अपनी जरूरतेंहितों और माँगों को राजनीति में उठाने का अधिकार होना चाहिए।

    ·       जो लोग राजनीति सत्ता में हों उन्हें धर्म के कामकाज पर नजर रखनी चाहिए।

    ·       अगर वह किसी के साथ भेदभाव करता है या किसी के दमन में सहयोगी की भूमिका निभाता है तो इसे रोकना चाहिए।

    ·       अगर शासन सभी धर्मों के साथ समान बरताव करता है तो उसके ऐसे कामों में कोई बुराई नहीं है।

    ·       समस्या तब शुरू होती है जब धर्म को राष्ट्र का आधार मान लिया जाता है।

    ·       किसी एक धर्म को विशिष्ट मान कर दूसरे धर्मों के खिलाफ मोर्चा खोलने लगते हैं।

    ·       जब राज्य अपनी सत्ता का इस्तेमाल किसी एक धर्म के पक्ष में करने लगता है तो स्थिति और भी विकट होने लगती है।

    ·       राजनीति से धर्म को इस तरह जोड़ना ही सांप्रदायिकता है।

    ·       हर मनुष्य के सोचने और समझने की शक्ति और पहचान अलग-अलग होती है।

    ·       सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है।

    ·       इसलिए एक धर्म से जुड़े सभी लोगों को किसी गैर-धार्मिक संदर्भ में एक करके देखना उस समुदाय की विभिन्न आवाजों को दबाना है।

सांप्रदायिकता राजनीति में अनेक रूप धारण कर सकती हैः

    ·       इनमें धार्मिक पूर्वाग्रहरूढ़िवादी धारणाएँ एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की मान्यताएँ शामिल है।

    ·       सांप्रदायिक सोच अक्सर अपने धार्मिक समुदाय का राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने के फिराक में रहती है।

    ·       इसमें धर्म के पवित्र प्रतिकोंधर्मगुरुओंभावनात्मक अपील और अपने हीं लोगों के मन में डर बैठाने जैसे तरीकों  का उपयोग बहुत आम है।

    ·       इसका सबसे गंदा रूप संप्रदाय के आधार पर हिंसादंगा और नरसंहार कराती है।

धर्मनिरपेक्ष शासन -

    ·       सभी को अपने धार्मिक विश्वासों और मान्यताओं को पूरी आजादी से मानने की छूट तथा किसी धर्म का विरोध  नहीं करना धर्मनिरपेक्षता है।

    ·       भारत में राज्य का कोई भी राजकीय धर्म नहीं है। श्रीलंका में बौद्ध धर्मपाकिस्तान में इस्लाम और इंग्लैंड में ईसाई धर्म को राजकीय धर्म माना जाता है।

    ·       भारतीय संविधान सभी नागरिकों अपनी धार्मिक मान्यताओं और विष्वासों को चुनने तथा मानने की आजादी देता है।

    ·       संविधान धर्म के आधार पर किए जाने वाले किसी भी तरह के भेदभाव को अवैधानिक मानता है।

    ·       संविधान द्वारा धार्मिक समुदायों में समानता सुनिष्चित करने के लिए राज्य को धार्मिक मामलों में दखल देने का अधिकार देता है।

जातिगत असमानताएं -

    ·       लिंग और धर्म पर आधारित विभाजन तो दुनिया भर में हैं पर जाति पर आधारित विभाजन सिर्फ भारतीय समाज में हीं देखने को मिलता है।

    ·       हमारे समाजों में तो पेशा परिवार की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है।

    ·       लेकिन जाति व्यवस्था इसका एक अतिवादी और स्थायी रूप है।

    ·       जातिगत के आधार पर राजनीति भी होती है। हालाँकि ये न्यायसंगत बिलकुल भी नहीं है।

    ·       अभी भी एक जाति के लोग दूसरे जाति में शादी करना पसंद नहीं करते।

    ·       वे एक साथ एक पात में बैठकर खाना भी नहीं खाते।

    ·       देश के महान नेताओं और समाज सुधारकों ने जातिगत भेदभाव से मुक्त समाज व्यवस्था बनाने की बात की और उसके लिए काम किया। इनके चलते आज शहरों और गाँवों में बहुत हीं बदलाव देखने को मिल रहा है। लोगों की मानसिकता में बदलाव देखने को मिल रहा है।

    ·       आज हरेक क्षेत्र में सभी जाति के लोग आगे बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।

    ·       जाति और आर्थिक हैसियत में काफी निकट का संबंध है।

    ·       वर्ण - व्यवस्था - जाति समूहों का पदानुक्रम जिसमें एक जाति के लोग हर हाल में सामाजिक पायदान में सबसे ऊपर रहेंगे तो किसी अन्य जाति समूह के लोग क्रमागत के रूप से उनके नीचे।

    ·       शहरीकरण - ग्रामीण इलाकों से निकलकर लोगों का शहरों में बसना।

राजनीति में जाति -

    ·       चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक पार्टियाँ भी उन्हीं जाति से संबन्धित कैंडिडैट को चुनती है जिनकी अधिकता ज्यादा हो। ताकि उनके जाति के लिए फायदेमंद हो।

    ·       हालाँकि किसी भी क्षेत्र में चुनाव जीतने के लिए लोगों का भरोसा जीतना पड़ता है। क्योंकि उस क्षेत्र में सभी प्रकार के जाति के लोग रहते हैं।

    ·       लोगों की राय और नेताओं के लोकप्रियता का चुनावों पर अक्सर निर्णायक असर होता है।

जाति के अंदर राजनीति -

    ·       जाति केवल राजनीति को प्रभावित करती हो ऐसा नहीं है अपितु राजनीति भी जातिगत समीकरणों को प्रभावित करती है।

    ·       हर जाति खुद को बड़ा बनाना चहती है। तो इसके लिए अपने ही समूह की जिन उपजातियों से वह खुद को श्रेष्ठ समझती थी अब राजनीतिक प्रभुसत्ता पाने सभी उपजातियों को अपने साथ जोड़कर बड़ा जातीय समूह का रूप लेने लगे हैं।

    ·       केवल जाति के भरोसे सत्ता की साझेदारी संभव नहीं है अतः सभी जातियों का समर्थन लेने की कोशिशें की जाती हैं।

    ·       राजनीति में नए किस्म की जातिगत गोलबंदी भी हुयी हैंजैसे ‘अगड़ा’ और ‘पिछड़ा’।

    ·       इस प्रकार जाति राजनीति में कई तरह की भूमिकाएँ निभाती है और एक तरह से यहीं चीजें दुनिया भर की राजनीति में चलती हैं।

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अध्याय के अंत में दिए गए प्रश्नों के उत्तर

1. जीवन के उन विभिन्न पहलुओं का जिक्र करें जिनमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है या वे कमजोर स्थिति में होती हैं।

उत्तर - जीवन के वे विभिन्न पहलु निम्नलिखित हैं जहाँ भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है या वे कमजोर स्थिति में होती हैं -

अ. पितृप्रधान समाज -हमारा समाज अभी भी पितृ प्रधान अर्थात पुरूष प्रधान है और इस समाज में स्त्रियों को दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है।

ब. साक्षरता - महिलाओं की साक्षरता दर पुरूषों की तुलना में कम है 2011 की जनगणना के आँकड़े के अनुसार 76 प्रतिशत साक्षर पुरूषों की तुलना में केवल 54 प्रतिशत महिलाएं ही साक्षर हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारतीय समाज में संसाधनों पर पहला अधिकार लड़कियों की अपेक्षा लड़कों का माना जाता है।

स. उच्च पदों पर नियुक्ति - साक्षरता दर कम होने से स्त्रियां उच्च पदों पर आसीन नहीं हो पाती है और आसीन हो भी जाएं तो भी उनके काम को मूल्यवान नहीं समझा जाता है।

द. समान मजदूरी - यद्यपि भारतीय संविधान में वेतन भुगतान के विषय में स्त्री-पुरूष का भेद नहीं करने का उल्लेख है फिर भी चाहे बॉलीवुड हो या खेलकूद पुरूषों की तुलना में महिलाओं को कम वेतन का भुगतान किया जाता है।

इ. लिंगानुपात - प्रति 1000 पुरूषों पर स्त्रियों की संख्या 940 है जो कि भारत के माँ - बाप में सिर्फ लड़का होने की चाह को दर्शाता है।

फ. राजनीतिक भागीदारी - भारत की विधायिका जिस पर सम्पूर्ण भारत के नागरिकों के लिए नियम कानून बनाने का दायित्व है उसी संस्था में देश की आधी आबादी अर्थात महिलाओं की भागीदारी आधी तो क्या एक चौथाई भी नहीं है।

      उपरोक्त पहलु जीवन में महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव को दर्शाते हैं।

2. विभिन्न तरह की साम्प्रदायिक राजनीति का ब्यौरा दें और सबके साथ एक - एक उदाहरण भी दें।

उत्तर - साम्प्रदायिकता की समस्या तब शुरू होती है जब धर्म को राष्ट्र का आधार मान लिया जाता है। विभिन्न तरह की सांप्रदायिक राजनीति का ब्यौरा  निम्न प्रकार से है : 

(क) स्वयं के धर्म को श्रेष्ठ समझना - सांप्रदायिकता की सबसे आम अभिव्यक्ति हमारे दैनिक जीवन में ही दिखाई देती है। इनमें धार्मिक पूर्वाग्रहअन्य धर्मों के प्रति प्रति मन में बनी बनाई छवि और अपने धर्म को अन्य धर्म से श्रेष्ठ समझना। यह विश्वास इतने आम है कि हमें इन्हें पहचान ही नहीं सकते क्योंकि हम इनका प्रयोग अपने रोज़ाना जीवन में करते हैं।

(ख) बहुसंख्यकवाद - सांप्रदायिक विचारधारा अपने धर्म की राजनीतिक सर्वोच्चता स्थापित करना चाहती है। अगर इस सोच के लोग देश की बहुसंख्या से संबंधित है तो यह बहुसंख्यावाद प्रभुत्व का रूप ले लेगा। इसके साथ ही देश के अल्पसंख्यकों में भी एक अलग राजनीतिक दल बनाने की इच्छा व्याप्त हो जाएगी।

(ग) साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक घेराबंदी - सांप्रदायिकता का एक और साधारण रूप है धार्मिक स्तर पर राजनीतिक रूप से गतिमान होना। इसके लिए धार्मिक नेता भाषणभावुक अपीलपवित्र चीजों का सहारा लेकर एक धर्म के अनुयायियों को राजनीतिक क्षेत्र में इकट्ठा करते हैं। चुनाव के समय हम देखते हैं कि जब धार्मिक नेता अपने अनुयायियों को एक राजनीतिक दल के पक्ष में मतदान करने का आदेश देते हैं।

(घ) साम्प्रदायिक दंगे - सांप्रदायिकता का सबसे घृणात्मक रूप है अलग-अलग धर्मों के दंगे तथा सांप्रदायिक हिंसा । बंटवारे के समय भारत तथा पाकिस्तान ने इस प्रकार की सांप्रदायिकता के कारण बहुत कुछ सहा था। यहां तक कि स्वतंत्रता के बाद भी देश के कई हिस्सों में धर्म के आधार पर भी दंगे हुए थे।

3. बताइए भारत में किस तरह अभी भी जातिगत असमानताएं जारी हैं।

उत्तर - भारत में अभी भी जातिगत असमानताएं जारी हैं जिसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है -

अ. जाति के आधार पर कार्य विभाजन - आज भी भारत में अनेक पेश ऐसे हैं जिनपर जाति विशेष के द्वारा ही किए जाने की बात सामने आती है। जिससे पेशों का यह वंशानुगत विभाजन रीति - रिवाज की मान्यता पा जाता है और समस्या बनी रहती है।

ब. सजातीय विवाह - भारत में समान जातियों में ही विवाह होते हैं। अंर्तजातीय विवाह को आज भी भारतीय समाज में स्वीकार नहीं किया जाता है। यह स्थिति लगभग सभी जातियों में विद्यमान है।

स. छुआछूत की भावना - संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद आज भी विभिन्न जातियों में साथ मिलबैठ कर भोजन आदि करने की परंपरा नहीं है।

द. सामाजिक स्तरीकरण - जाति के आधार पर समाज में परिवारों का स्तर तय करने से आज भी पिछड़ी और दलित जातियां पीड़ित हैं।

4. दो कारण बताएं कि क्यों सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते।

उत्तर - सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं -

i. देश के किसी भी भाग में किसी एक जाति के लोगों का बहुमत नहीं है। चुनावी क्षेत्र में सभी जातियों का प्रतिनिधित्व है।

ii. कोई भी पार्टी किसी एक जाति विशेष के सभी वोट हासिल नहीं कर सकती क्योंकि क्षेत्र विशेष में जातियों की अपनी - अपनी प्राथमिकताएं होती हैं।

iii. यदि किसी चुनावी क्षेत्र में किसी जाति विशेष के वोटों से परिणाम तय होता है तब उसी जाति के अनेक उम्मीदवार चुनाव लड़ने लगते हैं जिससे उनकी वोट विभाजित हो जाती हैं। और उस जाति के मतों का फिर बहुत ज्यादा महत्व नहीं रह जाता है।

iv. हमारे देश में हर चुनाव में सांसदों और विधायकों अक्सर हार का भी सामना करना पड़ता है भले ही वह किसी जाति विशेष की बहुलता वाले क्षेत्र से उसी जाति का उम्मीदवार रहा हो।

अतः स्पष्ट है कि दो कारण बताएं कि सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते।

5. भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है?

उत्तर - भारत की विधायिकाओं में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम है। 2019 की लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 14.36 फीसदी थी जबकि राज्य विधायिकाओं में तो यह संख्या 5 फीसदी से भी कम है। इस प्रकार भारत विधायिकाओं में महिला प्रतिनिधित्व के मामले में अफ्रीका और लातिन अमेरीकी देशों से भी पीछे 11.8 प्रतिशत है जबकि विश्व और 24 से 25 प्रतिशत के लगभग है।

6. किन्हीं दो प्रावधानों का जिक्र करें जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाते हैं।

उत्तर - भारत देश में धर्मनिरपेक्ष शासन का मॉडल अपनाया गया है जिसे निम्नलिखित प्रावधानों के माध्यम से समझा जा सकता हैं -

अ. भारतीय राज्य किसी भी धर्म को राजधर्म के रूप में अंगीकार नहीं करता है।

ब. संविधान सभी नागरिकों और समुदायों को किसी भी धर्म का पालन करने और प्रचार करने की आजादी देता है।

स. संविधान धर्म के आधार पर किए जाने वाले किसी भी तरह के भेदभाव को अवैधानिक घोषित करता है।

द. संविधान धार्मिक समुदायों में समानता सुनिश्चित करने के लिए शासन को धार्मिक मामलों में दखल देने की आज्ञा देता है ताकि कुरीतियों को दूर किया जा सके।

7. जब हम लैंगिक विभाजन की बात करते है तो हमारा अभिप्राय होता है :

(क) स्त्री और पुरूष के बीच जैविक अंतर

(ख) समाज द्वारा स्त्री और पुरूषों को दी गई असमान भूमिकाएं

(ग) बालक और बालिकाओं की संख्या अनुपात

(घ) लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में महिलाओं को मतदान का अधिकार न मिलना।

उत्तर - (ख) समाज द्वारा स्त्री और पुरूषों को दी गई असमान भूमिकाएं

8. भारत में यहाँ औरतों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है :

(क) लोकसभा

(ख) विधानसभा

(ग) मंत्रिमंडल

(घ) पंचायतीराज की संस्थाएं

उत्तर - (घ) पंचायतीराज की संस्थाएं

9. साम्प्रदायिक राजनीति के अर्थ संबंधी कथनों पर गौर करें। सांप्रदायिक राजनीति इस धारणा पर आधारित है कि :

(अ) एक धर्म दूसरों से श्रेष्ठ है।

(ब) विभिन्न धर्मों के लोग समान नागरिक के रूप में खुशी - खुशी साथ रह सकते हैं।

(स) एक धर्म के अनुयायी एक समुदाय बनाते हैं।

(द) एक धार्मिक समूह का प्रभुत्व बाकी सभी धर्मों पर कायम करने में शासन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता।

इनमें से कौन - कौन सा कथन सही है।

(क) अ,,स और द     (ख) अ,ब और द          (ग) अ और स              (घ) ब और द

उत्तर - (ग) अ और स

10. भारतीय संविधान के बारे में इनमें से कौन सा कथन गलत है ?

(क) यह धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है।

(ख) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बताता है।

(ग) सभी लोगों को कोई भी धर्म मानने की आजादी देता है।

(घ) किसी धार्मिक समुदाय में सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है।

उत्तर - (ख) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बताता है।

11.   ........................................ पर आधारित सामाजिक विभाजन सिर्फ भारत में ही है।

उत्तर - जाति

12.   सूची i और सूची ii का मेल कराएं और नीचे दिए गए कोड के आधार पर सही जवाब खोजें।

 

सूची - i

सूची  ii

1.

अधिकारों और अवसरों के मामले में स्त्री और पुरूष की बराबरी मानने वाला व्यक्ति

(क) सांप्रदायिक

2.

धर्म को समुदाय का मुख्य आधार मानने वाला व्यक्ति

(ख) नारीवादी

3.

जाति को समुदाय का मुख्य आधार मानने वाला व्यक्ति

(ग) धर्मनिरपेक्ष

4.

व्यक्तियों के बीच धार्मिक आस्था के आधार पर भेदभाव न करने वाला व्यक्ति  

(घ) जातिवादी

 

1

2

3

4

(सा)

(रे)

(ग)

(मा)

 

           

                                                                       

             

उत्तर - (रे)    ख    क    घ     ग

01 अंक की तैयारी हेतु महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

सही विकल्प चुनिए -

1. लैंगिक असमानता का मुख्य आधार है -

अ. जैविक बनावट                       ब. प्रचलित रूढ़ छवियां    

स. पुरूष का ताकतवर होना        द. इनमें से कोई नहीं

2. देश के छः राज्यों में ‘समय का उपयोग’ संबंधी सर्वेक्षण के अनुसार एक औरत रोजाना कितने घंटे काम करती है?

अ. साढ़े पाँच घंटे से ज्यादा                                 ब. साढ़े छः घंटे से ज्यादा

स. साढ़े सात घंटे से ज्यादा                                  द. साढ़े आठ घंटे से ज्यादा

3. नारीवादी आंदोलन से क्या तात्पर्य है?

अ. पुरूषों को स्त्रियों के समान अधिकार दिलाना        ब. स्त्रियों को पुरूषों के समान अधिकार दिलाना

स. स्त्रियों को कोई अधिकार नहीं दिलाना                  द. उपरोक्त में से कोई नहीं

4. निम्न में से किस देश में महिलाओं का सार्वजनिक जीवन में भागीदारी का स्तर कमजोर है?

अ. स्वीडन          ब. नार्वे                     स. फिनलैंड               द. भारत

5. किन मामलों में स्त्री और पुरूष समान रूप से समय का उपयोग करते हैं?

अ. आमदनी वाले काम में               ब. घर के काम में

स. बिना काम के गप्पबाजी में           द. राजनीतिक जीवन में

6. 2001 के अनुसार पुरूष साक्षरता दर 76 प्रतिशत थी। 2011 के अनुसार कितनी है?

अ. 82.14          ब. 54             स. 65.46                द. 48

7. लैंगिक विभाजन से क्या अभिप्राय है?

अ. अमीर और गरीब के बीच विभाजन                 

ब. स्त्री और पुरूष के बीच विभाजन

स. साक्षर और निरक्षर स्त्री पुरूषों के बीच विभाजन                

द. कामकाजी महिलाओं की संख्या

8. सर्वाधिक बाल लिंग अनुपात वाला राज्य है -

अ. छत्तीसगढ़        ब. मध्यप्रदेश       स. हिमाचल प्रदेश          द. राजस्थान

9. न्यूनतम बाल लिंगानुपात वाला राज्य है -

अ. हरियाणा        ब. केरल           स. सिक्किम              द. बिहार

10. 2019 में महिला सांसदों की संख्या कितने प्रतिशत थी?

अ. 18.9                 ब. 22.5           स. 12.56                द. 14.36

11. राष्ट्रीय संसदों में सर्वाधिक महिलाओं की संख्या इन देशों में है-

अ. नार्डिक देश      ब. अरब देश        स. एशियाई देश      द. अफ्रीकी देश

12. भारत में महिलाओं को आरक्षण किस क्षेत्र में दिया गया है? 

अ. संसद में                          ब. राज्य विधानसभाओं में        

स. स्थानीय स्वशासन में          द. उपरोक्त सभी में

13. लोकसभा में महिलाओं के लिए कितने आरक्षण की मांग की जा रही है?

अ. एक तिहाई       ब. दो तिहाई        स. आधा           द. बिल्कुल नहीं

14वैश्विक राजनीति में महिलाओं की भागीदारी का औसत है -

अ. 40             ब. 32             स. 24             द. 12

15. धर्म और राजनीति को अलग नहीं किया जा सकता किसका कथन है?

अ. महात्मा गांधी    ब. जवाहरलाल नेहरू  स. सरदार पटेल     द. डॉ अम्बेडकर

16. विवाहतलाकगोद लेना और उत्तराधिकार जैसे परिवार से जुड़े मसलों पर आधारित कानून कहलाता है।

अ. विवाह संबंधी कानून           ब. उत्तराधिकार कानून

स. पारिवारिक कानून             द. विवाह विच्छेद कानून

17. निम्न में से कौन सी जोड़ सही नहीं है?

अ. श्रीलंका - बौद्ध              ब. पाकिस्तान - इस्लाम

स. इंग्लैंड - इसाई                द. भारत - हिंदू

18. भारत में मुसलमानों की सामाजिकआर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का आकलन करने सच्चर कमेटी का गठन किस प्रधानमंत्री ने किया था?

अ. अटल बिहारी बाजपेयी                        ब. डॉ मनमनोहन सिंह

स. नरसिम्हाराव                                        द. नरेन्द्र मोदी

19. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 2004-05 के अनुसार देश में अन्य पिछड़ी जातियों का प्रतिशत है।

अ. लगभग 50%                 ब. लगभग 41%

स. लगभग 32%                 द. लगभग 14%

20. 2011 के अनुसार देश में अनुसूचित जातियों का हिस्सा है -

अ. 16.6           ब. 8.6            स. 33.8           द. 41

21. जब हम लैंगिक विभाजन की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय होता है -

अ. स्त्री और पुरूष के बीच जैविक अंतर

ब. समाज द्वारा स्त्री और पुरूष को दी गई असमान भूमिकाएं

स. बालक और बालिकाओं की संख्या का अनुपात

द. लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में महिलाओं को मतदान का अधिकार न मिलना

22. अधिकारों और अवसरों के मामले में स्त्री और पुरूष की बराबरी मानने वाला व्यक्ति -

अ. सांप्रदायिक            ब. नारीवादी         स. धर्मनिरपेक्ष      द. जातिवादी

23. धर्म को समुदाय का मुख्य आधार मानने वाला व्यक्ति -

अ. सांप्रदायिक            ब. नारीवादी         स. धर्मनिरपेक्ष      द. जातिवादी

24. जाति को समुदाय का मुख्य आधार मानने वाला व्यक्ति -

अ. सांप्रदायिक            ब. नारीवादी         स. धर्मनिरपेक्ष      द. जातिवादी

25. व्यक्तियों के बीच धार्मिक आस्था के आधार पर भेदभाव न करने वाला व्यक्ति -

अ. सांप्रदायिक            ब. नारीवादी         स. धर्मनिरपेक्ष      द. जातिवादी

26. पारिवारिक कानून व्यवहार करते हैं

. शादी और तलाक       . गोद लेना       . विरासत         . उपरोक्त सभी

27. ज्योतिबा फुले एक थे -

समाज सुधारक   

.राजनीतिक नेता         

. शिक्षाविद        

. पर्यावरणविद्

28................. पर आधारित सामाजिक विभाजन भारत के लिए विशिष्ट हैं।

. सम्प्रदाय        . जाति           . लिंग            . भाषा

29. इनमें से कौन सा अधिनियम प्रदान करता है कि पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान काम के लिए समान मजदूरी का भुगतान किया जाना चाहिए?

अ. समान वेतन अधिनियम            ब. समानता मजदूरी अधिनियम

स. मजदूरी समानता अधिनियम    द. समान वेतन अधिनियम

30. उत्पीड़नशोषण और हिंसा से पीड़ित किसे कहा जा सकता है?

अ. पुरुषों           ब. औरत     स. दोनों     द. इनमें से कोई नहीं

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए -

1.    भारत में .......................................... पर आधारित सामाजिक विभाजन है।

2.    पुरूषों द्वारा घर के बाहर के कार्य करना तथा स्त्रियों को घर की चहारदीवारी के कामकाज संभालना ...................... के अंतर्गत आता है।

3.    भारत में पुरूषों की तुलना में स्त्रियाँ ................. ज्यादा काम करती हैं।

4.    वर्ण व्यवस्था में .................. जातियों को छुआछूत का सामना करना पड़ता है।

5.    भारत में महिला साक्षरता 2011 के अनुसार .............................. है।

6.    दक्षिण एशियाई देशों में ................................ महिलाएं घरेलू हिंसा और प्रताड़ता का शिकार होकर घर छोड़ देती हैं।

7.    भारत की संसद में महिलाओं की संख्या का प्रतिशत ....................... है।

8.    2001 की जनगणना के अनुसार भारत में महिला साक्षरता दर .......................... है।

9.    2019 में लोकसभा में महिला सांसदों का प्रतिशत ........................... है।

10.   भारत के ग्रामीण और नगरीय निकायों में निर्वाचित महिलाओं की संख्या .......................... है।

11.   किसी भी धर्म का अनुयायी होने पर भी किसी परिवार में ........................... असमानताएं पाई जाने की संभावना सर्वाधिक होती है।

12.   हमारे देश में शहरी मध्य वर्गों में ............ जाति की अनुपातहीन रूप से बड़ी उपस्थिति है।

13.   राजनीति में जातिगत मतभेदों की अभिव्यक्ति कई ............... समुदायों को सत्ता की मांग करने के लिए जगह देती है।

14.   राज्य सत्ता द्वारा राजनीति में धर्म का प्रयोग ................. राजनीति है।

15.   जाति ................. असमानता का एक महत्वपूर्ण स्रोत है क्योंकि यह विभिन्न प्रकार के संसाधनों तक पहुंच को नियंत्रित करती है।

16.   राजनीतिक क्षेत्र में नए प्रकार के जाति समूह सामने आए हैं जैसे ............ और ............. जाति समूह।

17.   जब कोई जाति एक पार्टी की ......... होती हैतो इसका आमतौर पर मतलब होता है कि उस जाति के मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा उस पार्टी को वोट देगा।

18.   संविधान धार्मिक समुदायों के भीतर समानता सुनिश्चित करने के लिए ......... को धर्म के मामलों में हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है।

सत्य/असत्य लिखिए -

1.    समान मजदूरी से संबंधित अधिनियम में समान काम के लिए समान मजदूरी की व्यवस्था है।

2.    महिला प्रतिनिधित्व के मामले में भारत अफ्रीका और लातिन अमेरीकी देशों से आगे है।

3.    लोकसभा ओर राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई महिला आरक्षण दिए जाने का प्रस्ताव लंबित है।

4.    राजनीति में धर्म से गांधीजी का मतलब हिन्दू या इस्लाम से नहीं अपितु नैतिक मूल्यों से है।

5.    समस्या तब शुरू होती है जब धर्म को राष्ट्र का आधार मान लिया जाता है।

6.    सभी धर्मों में वर्णित पारिवारिक कानून महिलाओं से भेदभाव नहींकरते हैं।

7.    जनगणना में प्रत्येक दस साल में होती है जिसमें धार्मिक आधार पर भी गिनती होती है।

एक वाक्य/शब्द में उत्तर दीजिए -

1.    धर्म के आधार पर भेदभाव न करने वाले व्यक्ति को क्या कहते हैं?

2.    लैंगिक विभाजन किस आधार पर होता है?

3.  जाति रहित सामाजिक व्यवस्था के लिए कार्य करने वाले समाज सुधारकों के नाम लिखिए।

4.    2011 की जनगणना के अनुसार लिंगानुपात कितना है?

5.    2011 की जनगणना के अनुसार भारत में हिंदू आबादी कितनी है?

उत्तरमाला

बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर       

1

(ब)

11

(अ)

21

(ब)

2

(स)

12

(स)

22

(ब)

3

(ब)

13

(अ)

23

(अ)

4

(द)

14

(द)

24

(द)

5

(स)

15

(अ)

25

(स)

6

(अ)

16

(स)

26

(द)

7

(ब)

17

(द)

27

(अ)

8

(अ)

18

(ब)

28

(ब)

9

(अ)

19

(ब)

29

(द)

10

(द)

20

(अ)

30

(ब)

सत्य/असत्य                         

1 सत्य ,     2 – असत्य, 3 -सत्य 4 – सत्य,  5 – सत्य,  6 - असत्य 7 - सत्य    

एक वाक्य/शब्द में उत्तर

1धर्मनिरपेक्ष,  2सामाजिक अपेक्षाओं,  3ज्योति बा फुलेडॉ0 अम्बेडकरमहात्मा गांधीपेरियार रामास्वामी नायकर

4943,  579.8 प्रतिशत

रिक्त स्थानों की पूर्ति            

1जातिवाद,                 2श्रम के लैंगिक विभाजन          3 - एक घंटा          4 – अंत्यज,                   

5 -  65.46 प्रतिशत        650 मिलियन                           7 - 11.8 प्रतिशत       8 - 54 प्रतिशत,     

9 - 14.36                      10 - 10 लाख                             11 - लैंगिक                  12ऊपरी

13वंचित                  14सांप्रदायिक                          15आर्थिक                16पीछे और आगे

17वोट बैंक                   18राज्य                                                      

 ===000===

अतिलघुत्तरीय प्रश्नोत्तर ( 02 अंक )

1. श्रम के लैंगिक विभाजन से आप क्या समझते हैंइस अवधारणा का क्या परिणाम निकलता है?

उत्तर - जब ऐसा माना जाता है कि कुछ कार्य महिलाओं के लिये और कुछ पुरुषों के लिये ही बने हैं तो ऐसी स्थिति को श्रम का लैंगिक विभाजन कहते हैं। जैसे - खाना बनानाकपड़े धोना आदि कार्य महिलाओं के काम ही माने जाते हैं।

इस अवधारणा के निम्नलिखित परिणाम निकलते हैं -

अ. इससे महिलाओं को भेदभाव और हानि का सामना करना पड़ता है।

ब. अनेक लड़कियों को स्कूल पढ़ने नहीं भेजा जाता है।

स. महिलाएं पुरूषों की तूलना में समान कार्य करने पर भी कम वेतन पाती हैं।

2. नारीवादी आंदोलन का क्या मतलब है?

उत्तर - महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के उद्देश्य से होने वाले आंदोलन को नारीवादी आंदोलन कहते हैं।

3. आधुनिक भारत में नौकरियों में महिलाओं की क्या स्थिति है?

उत्तर - आधुनिक भारत में नौकरियों में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है। ऊँचे पदों पर महिलाओं की संख्या काफी कम है। कई मामलों में ये भी देखा गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कम वेतन मिलता है। जबकि पुरुषों की तुलना में महिलाएँ प्रतिदिन अधिक घंटे काम करती हैं।

4. भारत की राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कैसा है?

उत्तर - भारत की राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत खराब है। महिला मंत्रियों की संख्या भी बहुत कम है।

5. सांप्रदायिकता से आप क्या समझते हैं?

उत्तर - जब राजनैतिक वर्ग द्वारा एक धर्म को दूसरे धर्म से लड़वाया जाता है तो इसे सांप्रदायिकता या सांप्रदायिक राजनीति कहते हैं।

6. सांप्रदायिकता की सबसे आम अभिव्यक्ति क्या है?

उत्तर - सांप्रदायिकता की सबसे आम अभिव्यक्ति रोजमर्रा की मान्यताओं में है। इनमें नियमित रूप से धार्मिक पूर्वाग्रहधार्मिक समुदायों की रूढ़िवादिता और अन्य धर्मों पर किसी के धर्म की श्रेष्ठता में विश्वास शामिल है।

7. धर्मनिरपेक्ष शासन का क्या मतलब है?

उत्तर - जिस शासन व्यवस्था में सभी धर्म को समान दर्जा दिया जाता है उसे धर्मनिरपेक्ष शासन कहते हैं।

8. भारत सरकार किस स्थिति में धार्मिक मुद्दों में हस्तक्षेप करती है?

उत्तर - भारत का संविधान सरकार को धार्मिक मुद्दों में तब हस्तक्षेप करने की इजाजत देता है जब विभिन्न समुदायों में समानता बनाये रखने के लिये यह जरूरी हो जाये।

9. जातिगत विभाजन किन कारणों से कम होते जा रहे हैं?

उत्तर - कई सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के कारण जातिगत विभाजन धूमिल पड़ते जा रहे हैं। आर्थिक विकासतेजी से होता शहरीकरणसाक्षरतापेशा चुनने की आजादी और गाँवों में जमींदारों की कमजोर स्थिति के कारण जातिगत विभाजन कम होते जा रहे हैं।

10. भारत की राजनीति में जाति का क्या महत्व है?

उत्तर - भारत की राजनीति में जाति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है। किसी भी चुनाव क्षेत्र में उम्मीदवार का चयन उस क्षेत्र की जातीय समीकरण के आधार पर होता है।

11. जाति के आधार पर आर्थिक विषमता पर टिप्पणी करें।

उत्तर - जाति के आधार पर आर्थिक विषमता अभी भी देखने को मिलती है। उँची जाति के लोग सामन्यतया संपन्न होते है। पिछड़ी जाति के लोग बीच में आते हैंऔर दलित तथा आदिवासी सबसे नीचे आते हैं। सबसे निम्न जातियों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है।

12. श्रम विभाजन का एक परिणाम बताइए।

उत्तर - श्रम विभाजन का परिणाम यह है कि यद्यपि महिलाएं मानवता का आधा हिस्सा हैंसार्वजनिक जीवन में उनकी भूमिकाविशेष रूप से राजनीतिअधिकांश समाजों में न्यूनतम है।

13. पितृ प्रधान सत्ता क्या है?

उत्तर - वस्तुतःपिता द्वारा शासनइस अवधारणा का उपयोग एक ऐसी प्रणाली को संदर्भित करने के लिए किया जाता है जो पुरुषों को अधिक महत्व देती है और उन्हें महिलाओं पर अधिकार देती है।

14. समान वेतन अधिनियम क्या है?

उत्तर - समान वेतन अधिनियम में प्रावधान है कि समान काम के लिए समान मजदूरी दी जाएगी अर्थात पुरुषों और महिलाओं को समान काम के लिए समान मजदूरी का भुगतान किया जाना चाहिए।

15. महिलाओं के प्रतिनिधित्वउत्पीड़न और शोषण की समस्याओं को कैसे हल किया जा सकता हैमहिला आंदोलनों द्वारा सुझाए गए एक तरीके का उल्लेख करें।

उत्तर - महिलाओं की समस्याओं को हल करने का एक तरीका यह सुनिश्चित करना है कि निर्वाचित प्रतिनिधियों के रूप में अधिक महिलाएं हों।

16. धर्म और राजनीति के संबंध के बारे में गांधीजी ने क्या कहा?

उत्तर - गांधी जी ने कहा था कि धर्म को राजनीति से कभी अलग नहीं किया जा सकता। उनके लिए धर्म का मतलब हिंदू धर्म या इस्लाम जैसा कोई विशेष धर्म नहीं था बल्कि नैतिक मूल्य थे जो सभी धर्मों को सूचित करते थे। उनका मानना था कि राजनीति को धर्म से ली गई नैतिकता द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए।

17. पारिवारिक कानून क्या हैं?

उत्तर - पारिवारिक कानून वे कानून हैं जो परिवार से संबंधित मामलों जैसे शादीतलाकगोद लेनेविरासत आदि से संबंधित हैं। हमारे देश मेंविभिन्न धर्मों के अनुयायियों पर अलग-अलग परिवार कानून लागू होते हैं।

18. एक उदाहरण दीजिए जो धर्म और राजनीति के बीच संबंध को दर्शाता है।

उत्तर - महिला आंदोलन ने तर्क दिया है कि सभी धर्मों के पारिवारिक कानून महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं। इसलिए उन्होंने मांग की है कि सरकार को इन कानूनों को और अधिक न्यायसंगत बनाने के लिए बदलना चाहिए।

19. साम्प्रदायिकता की कोई एक विशेषता बताइए।

उत्तर - एक विशेष धर्म के अनुयायियों को एक समुदाय से संबंधित होना चाहिए। उनके मौलिक हित समान हैं। उनके बीच कोई भी अंतर सामुदायिक जीवन के लिए अप्रासंगिक या तुच्छ है। यह इस प्रकार भी है कि जो लोग विभिन्न धर्मों का पालन करते हैं वे एक ही सामाजिक समुदाय से संबंधित नहीं हो सकते हैं।

20. चुनावी राजनीति में सांप्रदायिकता का प्रयोग किस प्रकार किया जाता है ?

उत्तर - चुनावी राजनीति मेंसांप्रदायिकता में एक धर्म के मतदाताओं के हितों या भावनाओं के लिए विशेष अपील शामिल होती हैजबकि दूसरे धर्म के मतदाताओं को वरीयता दी जाती है।

21. भारत में जाति व्यवस्था की एक विशेष विशेषता क्या हैयह विश्व के अन्य समाजों से किस प्रकार भिन्न है ?

उत्तर - अधिकांश समाजों में व्यवसायों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाता है। जाति व्यवस्था इसका चरम रूप है। भारत में वंशानुगत व्यावसायिक विभाजन को अनुष्ठानों द्वारा स्वीकृत किया गया था।

22. कुछ ऐसे राजनीतिक नेताओं और समाज सुधारकों के नाम बताइए जिन्होंने असमानताओं वाले समाज की स्थापना की वकालत की और काम किया।

उत्तर  ज्योतिबा फुलेगांधीजीबी आर अंबेडकर और पेरियार रामास्वामी।

23. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए ’अनुसूचित’ शब्द का प्रयोग क्यों किया जाता है ?

उत्तर - इन समूहों में सैकड़ों जातियां या जनजातियां शामिल हैं जिनके नाम आधिकारिक अनुसूची में सूचीबद्ध हैं। इसलिए उनके लिए उपसर्ग ’अनुसूचित’ का प्रयोग किया जाता है।

24. अनुसूचित जाति किसे कहते हैं और उन्हें ऐसा क्यों कहा जाता है ?

उत्तर - अनुसूचित जातियोंजिन्हें आमतौर पर दलितों के रूप में जाना जाता हैमें वे लोग शामिल हैं जिन्हें पहले हिंदू सामाजिक व्यवस्था में ’बाहरी जाति’ के रूप में माना जाता था।

वे बहिष्कार और अस्पृश्यता के अधीन थे।

25. ’अनुसूचित जनजाति’ कौन हैं?

उत्तर - ’अनुसूचित जनजातियों’ को अक्सर ’आदिवासियों’ के रूप में संदर्भित किया जाता हैजिसमें वे समुदाय शामिल होते हैं जो आमतौर पर पहाड़ियों और जंगलों में एकांत जीवन व्यतीत करते हैं और बाकी समाज के साथ ज्यादा बातचीत नहीं करते हैं।

26. शहरीकरण क्या है?

उत्तर - शहरीकरण ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या का स्थानांतरण है।

27. वर्ण व्यवस्था क्या है?

उत्तर - जाति समूहों का पदानुक्रम जिसमें एक जाति के लोग हर हाल में सामाजिक पायदान में सबसे ऊपर रहेंगे तो किसी अन्य जाति समूह के लोग क्रमागत के रूप में उनके नीचे।

28. लिंग विभाजन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर - समाज द्वारा पुरुषों और महिलाओं को सौंपी गई असमान भूमिका।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (03 अंक)

1. नारीवादी आंदोलन क्या हैंवे महिलाओं की स्थिति में किस प्रकार सुधार लाए हैं ?

उत्तर- एक महिला या पुरुष जो महिलाओं और पुरुषों के समान अधिकारों और अवसरों में विश्वास करता हैएक नारीवादी है। इस प्रकार इन नारीवादी आंदोलनों का उद्देश्य व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में समानता लाना था।

इन नारीवादी आंदोलनों के परिणामस्वरूपमहिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है जैसा कि नीचे उल्लेख किया गया हैः

अ. सार्वजनिक जीवन में उनकी भूमिका में सुधार हुआ।

ब. वे वैज्ञानिकडॉक्टरइंजीनियरवकीलप्रबंधककॉलेज और विश्वविद्यालय के शिक्षकों के रूप में काम कर रहे हैं जिन्हें पहले महिलाओं के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता था।

स. स्वीडननॉर्वे और फिनलैंड जैसे स्कैंडिनेवियाई देशों में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी बहुत अधिक है।

2. पुरुषों द्वारा किया गया कार्य क्यों दिखाई देता है लेकिन महिलाओं द्वारा किया गया कार्य दिखाई नहीं देता है |

उत्तर - भारत में छह राज्यों में किए गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि एक औसत महिला प्रतिदिन साढ़े सात घंटे से थोड़ा अधिक काम करती है जबकि एक औसत पुरुष साढ़े छह घंटे काम करता है। फिर भी पुरुषों द्वारा किया गया कार्य अधिक दिखाई देता है क्योंकि उनके अधिकांश कार्य आय के सृजन की ओर ले जाते हैं। महिलाएं प्रत्यक्ष आय अर्जित करने वाले बहुत से काम भी करती हैंलेकिन उनका अधिकांश काम घर से जुड़ा होता है। यह काम अवैतनिक और अदृश्य रहता है।

3. मान लीजिए कोई राजनेता धार्मिक आधार पर आपका वोट मांगता है। उनके कृत्य को लोकतंत्र के मानदंडों के खिलाफ क्यों माना जाता हैसमझाना।

उत्तर - यदि कोई राजनेता धार्मिक आधार पर वोट मांगता हैतो वह लोकतंत्र के मानदंडों के विरुद्ध कार्य कर रहा है क्योंकि-

अ. उनका यह कृत्य संविधान के खिलाफ है। वह सामाजिक मतभेदों का शोषण कर रहा है जो सामाजिक अलगाव पैदा कर सकता है और सामाजिक विभाजन को जन्म दे सकता है।

ब. धर्म एक समस्या बन जाता है जब इसे राजनीति में व्यक्त किया जाता है और जब एक धर्म और उसके अनुयायियों को दूसरे के खिलाफ खड़ा किया जाता है।

स. जब एक धर्म के विश्वासों को दूसरे धर्मों की तुलना में श्रेष्ठ के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और एक धार्मिक समूह की मांग दूसरे के विरोध में बनाई जाती है और राज्य शक्ति का उपयोग एक धार्मिक समूह के बाकी हिस्सों पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए किया जाता हैतो यह सांप्रदायिक राजनीति की ओर जाता है .

4. भारत में जातिगत असमानताओं की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

                                या

भारत में जाति व्यवस्था अन्य समाजों से भिन्न क्यों है?

उत्तर - भारत में जाति व्यवस्था की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैंः

1.    जाति विभाजन भारत के लिए विशेष है। यह अन्य समाजों से भिन्न है क्योंकि यहाँ वंशानुगत व्यावसायिक विभाजन को रीति रिवाजों का हिस्सा मानते हुए स्वीकार किया गया था।

2.    एक ही जाति समूह के सदस्य एक सामाजिक समुदाय बनाते थे जो उसी अनुरूप पेषा भी अपनाते थे।

3.    एक समुदाय के सदस्य जाति समूह के भीतर विवाह करते थे और अन्य जाति समूहों के सदस्यों के साथ भोजन नहीं करते थे।

4.    निचली जाति के लोगों के साथ अमानवीय और भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता था। कभी-कभी किसी व्यक्ति की जाति उसकी गलती के बिना जीवन के लिए अभिशाप बन जाती है। इस प्रकारजाति व्यवस्था ’बहिष्कृत समूहों’ के बहिष्कार और भेदभाव पर आधारित थी। उन्हें अछूत कहा जाता था। इसीलिए जोतिबा फुलेगांधीजीबी.आर. अम्बेडकर और पेरियार रामास्वामी नायकर ने एक ऐसे समाज की स्थापना की वकालत की और काम किया जिसमें जातिगत असमानताएँ अनुपस्थित हों।

5. जाति भेद की राजनीतिक अभिव्यक्ति के फायदे और नुकसान का वर्णन करें।

उत्तर - 

(1) जाति भेद की राजनीतिक अभिव्यक्ति के लाभ इस प्रकार हैंः

·       भारत में जाति-राजनीति ने दलितों और ओबीसी को निर्णय लेने में बेहतर पहुंच हासिल करने में मदद की है।

·       कई राजनीतिक और गैर-राजनीतिक संगठन विशेष जातियों के समर्थन में आगे आए हैं। उन्होंने अपने साथ हो रहे भेदभाव को खत्म करने की मांग की है। उनकी मांगों में उनके लिए अधिक सम्मानभूमि तक अधिक पहुंचसंसाधन और अवसर शामिल हैं।

(2) जाति भेद की राजनीतिक अभिव्यक्ति के नुकसान इस प्रकार हैंः

·       यह गरीबीविकास और भ्रष्टाचार जैसे अन्य दबाव वाले मुद्दों से ध्यान हटा सकता है।

·       कुछ मामलों में जाति विभाजन से तनावसंघर्ष और यहां तक कि हिंसा भी होती है।

6. जाति व्यवस्था पर राजनीति के प्रभाव का आकलन कीजिए।

                                या

जाति का राजनीतिकरण कैसे किया जाता हैकिन्हीं तीन बिन्दुओं को स्पष्ट कीजिए।

                                या

उन तरीकों का वर्णन करें जिनसे राजनीति जाति व्यवस्था और जाति पहचान को प्रभावित करती है।

उत्तर - राजनीति जाति व्यवस्था और जाति पहचान को निम्नलिखित तरीकों से प्रभावित करती हैः

अ. प्रत्येक जाति समूह अपने भीतर पड़ोसी जातियों या उप-जातियों को शामिल करके बड़ा बनने की कोशिश करता है जिन्हें पहले इससे बाहर रखा गया था।

ब. गठबंधन की राजनीति के युग मेंविभिन्न जाति समूह अन्य जातियों या समुदायों के साथ गठबंधन में प्रवेश करते हैं। वे एक संवाद में प्रवेश करते हैं और चुनाव जीतने के लिए बातचीत करते हैं। उदाहरण के लिएमई 2002 मेंयूपी में बसपा ने भाजपा के साथ एक समझौता किया और वहां गठबंधन सरकार बनाई।

स. पिछड़ा’ और ’अगला’ जाति समूहः अब राजनीतिक क्षेत्र में ’पिछड़े’ और ’अगले’ जाति समूहों के रूप में जाने जाने वाले नए जाति समूह उभरे हैं। इस प्रकारजाति राजनीति में विभिन्न भूमिका निभाती है।

7. भारत के विधायी निकायों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति की व्याख्या करें।

उत्तर - यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि महिलाओं से संबंधित समस्याओं पर पर्याप्त ध्यान दिया जाएनिर्वाचित प्रतिनिधियों के रूप में अधिक महिलाएं हों। इसे प्राप्त करने के लिए निर्वाचित निकायों में महिलाओं का उचित अनुपात होना कानूनी रूप से बाध्यकारी है।

भारत में पंचायती राज ने स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित की हैं।

भारत मेंविधायिका में महिलाओं का अनुपात बहुत कम रहा है। लोकसभा में निर्वाचित महिला सदस्यों का प्रतिशत 10 प्रतिशत और राज्य विधानसभाओं में 5 प्रतिशत से कम नहीं है। भारत अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई विकासशील देशों से पीछे है। महिला संगठन महिलाओं के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में कम से कम एक तिहाई सीटों के आरक्षण की मांग कर रहे हैं।

और हाल ही मेंमार्च 2010 मेंसंसद और राज्य विधान निकायों में महिलाओं को 33% आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए राज्य सभा में महिला आरक्षण विधेयक पारित किया गया था।

8. चुनावी राजनीति में जाति के अलावा और कौन से कारक मायने रखते हैं?

उत्तरः चुनावी राजनीती में जाति के अलावा निम्नलिखित कारक भी मायने रखते हैं -

(i) समुदाय के आधार पर मतदानः राजनीतिक नेता मतदाताओं को सांप्रदायिक आधार पर वोट डालने के लिए प्रेरित करते हैं।

(ii) धार्मिक आधार पर राजनीतिक लामबंदीः धार्मिक आधार पर राजनीतिक लामबंदी सांप्रदायिकता का एक और लगातार रूप है। इसमें राजनीतिक क्षेत्र में एक धर्म के अनुयायियों को एक साथ लाने के लिए पवित्र प्रतीकोंधार्मिक नेताओंभावनात्मक अपील और सादे भय का उपयोग शामिल है। चुनावी राजनीति में इसमें अक्सर एक धर्म के मतदाताओं के हितों या भावनाओं के लिए विशेष अपील शामिल होती है।

(iii) सरकार का प्रदर्शनः जाति और समुदाय के साथ-साथ लोग राजनीतिक दल के प्रदर्शन या पार्टी के एजेंडे की भी जांच करते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोंत्तर (04 अंक)

1. ’लिंग विभाजन जैविक आधार पर नहीं बल्कि सामाजिक अपेक्षाओं और रूढ़ियों पर आधारित है।’ इस कथन का समर्थन करें।

अथवा

जेंडर डिवीजन क्या हैइसका अभ्यास कैसे किया जाता हैइसके परिणाम क्या हैं?

उत्तर - लिंग विभाजन : यह पदानुक्रमित सामाजिक विभाजन का एक रूप है। आम तौर परइसे प्राकृतिक और अपरिवर्तनीय माना जाता है। दरअसल यह जीव विज्ञान पर नहीं बल्कि सामाजिक अपेक्षाओं और रूढ़ियों पर आधारित है।

व्यवहार में विभाजनः व्यवहार में यह विभाजन आर्थिक और गैर आर्थिक गतिविधियों के आधार पर दिखाई देता है। जैसे कि आम धारणा है महिलाओं की मुख्य जिम्मेदारी गृहकार्य और बच्चों की परवरिश करना है जिनसे परिवार को कोई आय नहीं होती है। जबकि इन्हीं कामों से आय होने पर पुरूष भी ये कार्य करते दिखाई देते हैं। जैसे पुरुष खाना पकानेसिलाई जैसे काम करते हैं अगर इन नौकरियों के लिए भुगतान किया जाता है। उदाहरण के लिए होटलों में अधिकांश दर्जी या रसोइया पुरुष हैं।

आर्थिक मोर्चों पर महिलाओं की स्थिति - महिलाएं भी अपने घर से बाहर काम करती हैं। गरीब महिलाएं बीच में घरेलू नौकर का काम करती हैं जबकि शहरी क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के साथ कार्यालयों में काम करती हैं। लेकिन उनके काम की कद्र नहीं होती और न ही उन्हें पहचान मिलती है।

परिणाम :हालांकि महिलाओं की आबादी मानवता की आधी हैलेकिन इसमें उनकी भूमिका है। सार्वजनिक जीवन विशेषकर राजनीतिअधिकांश समाजों में न्यूनतम है।

इसने महिलाओं के लिए समान अधिकारों जैसे मतदान के अधिकारमहिलाओं की राजनीतिक और कानूनी स्थिति को बढ़ाने और उनके शैक्षिक और करियर के अवसरों में सुधार के लिए आंदोलन किया है। इन आंदोलनों को ’नारीवादी’ आंदोलन कहा जाता है।

2. धर्म और राजनीति के बीच संबंध का वर्णन कीजिए। तीन उदाहरणों का उल्लेख कीजिए। इसके प्रभावों का भी उल्लेख कीजिए।

उत्तर - (1) धर्म और राजनीति के बीच संबंध दिखाने वाले उदाहरण नीचे दिए गए हैंः

धर्म को राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता - गांधीजी धर्म को राजनीति का अंग मानते थे। उनका मानना था कि धर्म के बिना राजनीति गंदी और शर्मनाक खेल होगी। गांधीजी के लिए धर्म हिंदू धर्म या इस्लाम की तरह विशेष धर्म नहीं था बल्कि नैतिक मूल्य थे जो सभी धर्मों को सूचित करते थे। राजनीति में धर्म नैतिकता लाता है। उनका मानना था कि राजनीति को धर्म से ली गई नैतिकता द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए।

धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करे सरकार - मानवाधिकार समूहों का मानना है कि देश में सांप्रदायिक दंगे धार्मिक अल्पसंख्यकों को प्रभावित करते हैं - जो ऐसी घटनाओं के एकमात्र शिकार होते हैं। उनकी मांग है कि सरकार को धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करनी चाहिए।

पारिवारिक कानून - महिला आंदोलन ने तर्क दिया है कि सभी धर्मों के पारिवारिक कानून महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं। उनकी मांग है कि उनके अधिकारों को बढ़ाने और पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता लाने के लिए सरकार द्वारा कदम उठाए जाने चाहिए।

(2) प्रभाव -

अ. इन सभी उदाहरणों में धर्म और राजनीति के बीच संबंध शामिल हैं। और विचार किसी के लिए खतरा उतपन्न नहीं करते हैं।

ब. विभिन्न धर्मों के विचारआदर्श और मूल्य राजनीति में भूमिका निभा सकते हैं और निभा सकते हैं।

स. लोगों को एक धार्मिक समुदाय के सदस्य के रूप में अपनी आवश्यकताओंरुचियों और मांगों को राजनीति में व्यक्त करने में सक्षम होना चाहिए।

द. सरकार/राज्य को धर्म के आचरण को विनियमित करने में सक्षम होना चाहिए ताकि भेदभाव और उत्पीड़न को रोका जा सके। हर धर्म के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए।

3. एक धर्मनिरपेक्ष राज्य क्या हैउन कारकों की व्याख्या कीजिए जो भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाते हैं।

उत्तर - एक धर्मनिरपेक्ष राज्य धर्मनिरपेक्षता की एक अवधारणा हैजिसके तहत एक राज्य धर्म के मामलों में आधिकारिक तौर पर तटस्थ है या होने का दावा करता हैन तो धर्म की उपस्थिति और न ही धर्म की अनुपस्थिति का समर्थन करता है। यह सभी धर्मों को समान दर्जा प्रदान करता है।

भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है राज्य द्वारा सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार। 1976 में अधिनियमित भारत के संविधान के 42 वें संशोधन के साथसंविधान की प्रस्तावना ने जोर देकर कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है।

भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने वाले कारक नीचे दिए गए हैंः

अ. भारत में कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। हमारा संविधान किसी भी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता जैसा कि श्रीलंका (बौद्ध धर्म)पाकिस्तान (इस्लाम) और इंग्लैंड (ईसाई धर्म) में किया गया है।

ब. संविधान सभी व्यक्तियों और समुदायों को अपने स्वयं के धर्म को माननेप्रचार करने और अभ्यास करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। यह अपने शिक्षण संस्थानों की स्थापना और रखरखाव का अधिकार देता है।

स. संविधान धर्म के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है।

द. संविधान धार्मिक समुदायों के भीतर समानता सुनिश्चित करने के लिए राज्य को धर्म के मामलों में हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है। उदाहरण के लिएयह अस्पृश्यता पर प्रतिबंध लगाता है। राज्य धार्मिक समुदायों को उनके द्वारा संचालित शिक्षण संस्थानों को सहायता देकर भी मदद कर सकता है।

इस प्रकारभारत में धर्मनिरपेक्षता केवल कुछ दलों या व्यक्तियों की विचारधारा नहीं है। यह विचार हमारे देश की नींव में से एक है। हमारे संविधान के निर्माता इस बात से अवगत थे कि सांप्रदायिकता भारत में लोकतंत्र के लिए प्रमुख चुनौतियों में से एक थी और अब भी है। इसलिए उन्होंने एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का मॉडल चुना। सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों और दुष्प्रचार का मुकाबला करने के साथ-साथ हमारे जैसा धर्मनिरपेक्ष संविधान आवश्यक है।

4. भारत में जाति व्यवस्था के पतन के कारणों की व्याख्या कीजिए।

                                            या

समकालीन भारत में प्रचलित परिस्थितियों का आकलन करें जो जाति व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए जिम्मेदार हैं।

                                             या

भारत में जाति बंधन क्यों टूट रहे हैंकोई पाँच कारण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - जाति पदानुक्रम के टूटने के कारण नीचे दिए गए हैंः

शहरीकरण - शहरी क्षेत्रों में लोग इस बात की परवाह नहीं करते कि हमारे बगल में सड़क पर कौन चल रहा है या रेस्तरां में बगल की मेज पर खाना खा रहा है। जनसंख्या का ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरण हो रहा है।

आर्थिक विकास - आर्थिक विकास के फलस्वरूप निम्न जातियों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। वे उन इलाकों में रहते हैं जहां उच्च जाति के लोग शहरों में रह रहे हैं।

व्यावसायिक गतिशीलता - एक व्यवसाय से दूसरे व्यवसाय में बदलाव होता हैआमतौर पर जब एक नई पीढ़ी अपने पूर्वजों द्वारा अभ्यास किए गए व्यवसायों के अलावा अन्य व्यवसायों को अपनाती है। इसने जाति पदानुक्रम को तोड़ने में मदद की है।

प्रावधान - भारत का संविधान भी जाति के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। इसलिए हम विभिन्न जातियों के लोगों को कार्यालयों में एक साथ काम करते हुए पाते हैं। अस्पृश्यता एक कानूनी अपराध है। संविधान ने जाति व्यवस्था के अन्याय को दूर करने के लिए नीतियों की नींव रखी।

जोतिबा फुलेमहात्मा गांधीबी.आर. अम्बेडकर और पेरियार रामास्वामी नायकर इस दिशा में महत्वपूर्ण थे। गांधीजी ने अछूत को ’हरिजन’ कहा। इन नेताओं के प्रयासों ने समाज से जाति-आधारित असमानताओं को दूर करने का प्रयास किया।

5. भारत में जाति राजनीति के तीन रूपों का वर्णन कीजिए।

                              या

भारत में राजनीति में जाति की भूमिका की व्याख्या कीजिए।

                          या

राजनीति में जाति के विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।

उत्तर - जाति सामाजिक समुदाय का एकमात्र आधार है। यह राजनीति में विभिन्न रूप ले सकता है जैसा कि नीचे दिया गया हैः

उम्मीदवारों का चयन - चुनाव के समयराजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों का चयन किसी निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की जाति के आधार पर करते हैं ताकि चुनाव जीतने के लिए उन्हें आवश्यक समर्थन मिल सके।

सरकारों का गठन - सरकार या मंत्रिपरिषद के गठन के समय सभी जातियों और समुदायों के प्रतिनिधियों को शामिल करने का प्रयास किया जाता है।

मतदाताओं से अपील - चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं से अपील की जाती है कि वे अपनी जाति के उम्मीदवार के पक्ष में वोट करें। कुछ राजनीतिक दल कुछ जातियों के पक्ष में जाने जाते हैं और उन्हें उनके प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है।

सार्वभौम वयस्क मताधिकार का प्रभाव - सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार और एक व्यक्ति-एक वोट के सिद्धांत ने राजनीतिक नेताओं को राजनीतिक समर्थन जुटाने और हासिल करने के कार्य के लिए तैयार होने के लिए मजबूर किया। इसने उन जातियों के लोगों में भी नई चेतना लाईजिन्हें अब तक हीन और नीच माना जाता था।

राजनीतिक दलों का गठन - चुनाव में मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए राजनीतिक दलों का गठन जाति के आधार पर भी किया जाता है। यूपी में बसपाडीएमके और एआईडीएमके ऐसे राजनीतिक दलों के उदाहरण हैं।

6. यह कहना कहाँ तक सही है कि जाति से राजनीति नहीं होती बल्कि जाति का राजनीतिकरण होता हैसमझाना।

उत्तर - राजनीति भी जाति व्यवस्था और जाति की पहचान को राजनीतिक क्षेत्र में लाकर प्रभावित करती है। यह कई रूप लेता हैः

अ. प्रत्येक जाति समूह अपने भीतर पड़ोसी जातियों या उपजातियों को शामिल करके बड़ा बनने की कोशिश करता है।

ब. विभिन्न जाति समूह बातचीत के लिए अन्य जातियों के साथ गठबंधन में प्रवेश करते हैं।

स. राजनीतिक क्षेत्र में ’पिछड़े’ और ’आगे’ जैसे नए जाति समूह सामने आए हैं।

द. राजनीति में जातिगत मतभेदों की अभिव्यक्ति कई वंचित समुदायों को अपने हिस्से की शक्ति की मांग करने का मौका देती है और इस तरह निर्णय लेने तक पहुंच प्राप्त करती है।

इ. कई राजनीतिक और गैर-राजनीतिक संगठन अधिक सम्मान और भूमिसंसाधनों और अवसरों तक अधिक पहुंच के लिए विशेष जातियों के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने की मांग और आंदोलन करते रहे हैं।

7. “भारत सरकार अधिकांश धर्मों के त्योहारों के लिए छुट्टियां देती है।“ ऐसा क्यों हैअपना दृष्टिकोण दें।

उत्तर - भारत सरकार सभी धार्मिक अवकाश देती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने के लिए संविधान में कुछ प्रावधानों को अपनाया गया था -

अ. भारतीय राज्य के लिए कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। श्रीलंका में बौद्ध धर्म और पाकिस्तान में इस्लाम के विपरीतहमारा संविधान किसी भी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता है।

ब. संविधान सभी व्यक्तियों और समुदायों को किसी भी धर्म को माननेअभ्यास करने और प्रचार करने या स. किसी का पालन न करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।

द. संविधान धर्म के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है।

इ. संविधान धार्मिक समुदायों के भीतर समानता सुनिश्चित करने के लिए राज्य को धर्म के मामलों में हस्तक्षेप करने की अनुमति देता हैउदाहरण के लिएयह अस्पृश्यता पर प्रतिबंध लगाता है।

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अभ्यास हेतु विश्लेषणात्मक प्रश्न

1.    नारीवादी आंदोलन क्या थाभारत में नारीवादी आंदोलन की राजनीतिक मांगों की व्याख्या कीजिए।

2.    सांप्रदायिकता का मुकाबला करने की तत्काल आवश्यकता है“। समझाइए।

3.    धार्मिक आधार पर राजनीतिक लामबंदी सांप्रदायिकता का एक सामान्य रूप है।’ स्पष्ट करें।

4.    भारतीय संविधान के किन्हीं चार प्रावधानों का उल्लेख कीजिए जो इसे एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाते हैं।

 


आप सफल हों

धन्यवाद

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