वैदिक
सभ्यता
परिचय :- भारतीय संस्कृति की अमूल सम्पदा वेद है। इनकी
प्राचीनता एवं महानता के कारण इन्हें ‘‘ अपौरूषेय ’’ कहा जाता है। वैदिक सभ्यता के
अध्ययन हेतु वेद ही प्रमुख स्त्रोत हैं।वेदों की रचना काल के आधार पर इस सभ्यता को
दो भागों में बांटा गया है -
1. ऋग्वेद कालीन सभ्यता अथवा पूर्व वैदिक
सभ्यता
2. उत्तर वैदिक कालीन सभ्यता
ऋग्वेद संहिता आर्यों की प्रथम साहित्यिक रचना है, जिसकी रचना काल संभवतः 1500 ई0पू0 से 1000 ई0पू0 माना गया है। जबकि सम्पूर्ण वैदिक
साहित्य का सृजन काल संभवतः 1500 ई0पू0 से 2000 ई0पू0 माना गया है। अतः ई0पू0
1500
से ई0पू0
2000
के मध के काल को ही ‘‘ वैदिक युग ’’ कहा जावेगा।
आर्यों की आदि भूमि :-
विभिन्न विद्वानों के अनुसार आर्यों की आदि भूमि के प्रति
विचार निम्नानुसार हैं :-
1. आर्य बाहर से आए :- सन् 1820 में जी0के0रीड्स ने ईरानी धर्म ग्रंथों का अध्ययन
कर आर्यों का आगमान मध्य - एशिया बताया है क्योंकि ईरानी धर्म ग्रंथ ‘‘जिंद अवेस्ता
’’ की भाषा वेदों की भाषा के समतुल्य है। मैक्समूलर /जर्मनी/ ने ईरानियों तथा आर्यों
की आदि भूमि मध्य एशिया बताया है।
2. आर्यों की आदि भूमि यूरोप :- इस मत के प्रणेता विलियम जोंस
हैं। तथा गाइल्स के अनुसार एशिया माइनर के बोगाजकुई से प्राप्त लेख की आर्यों से नाम
अनुसार समानता थी।
3. उत्तरी ध्रुव प्रदेश :- लोक मान्य तिलक ने अपने पाण्डित्य
पूर्ण तर्कों के द्वारा आर्यों को उत्तरी ध्रुव प्रदेश का निवासी बताया है।
4. भारत ही आर्यों की आदि भूमि :- दयानंद सरस्वती ने तिब्बत को
आर्यों की आदि भूमि बताया है। प्रायः समस्त विद्वानों इस निष्कर्ष पर अपना मत एक रूपेण
दिया है।
वैदिक कालीन सामाजिक ढांचा :-
पारिवारिक जीवन :- समाज की आधारभूत इकाई परिवार
थी। ऋगवेद कालीन समाज पितृ सत्तात्मक अर्थात् पुरूष प्रधान था। संयुक्त परिवार अपने
गृहपति के अधान सुरक्षित रहते थे। परिवार का आधार विवाह का पवित्र बंधन था। पत्नी, पति के अधीन होती थी परन्तु बंधन
कठोर नहीं थे।
· पत्नी सभी धार्मिक कृत्यों में भाग
लेती थी।
· पर्दा प्रथा प्रचलित नहीं थी।
· शिक्षा के प्रति भी स्त्री जाति उपेक्षित
नहीं थी।
· विश्ववारा, अपाला, घोषा,
लोपामुद्रा, रोमशा या लोमषा, सर्पराज्ञी, ममता,
उर्वशी/अप्सरा/
आदि ने तो मंत्रों की भी रचना की है।
· मैत्रेयी, गार्गी जैसी प्रतिभाशाली नारी ब्रम्हवादिनी
के रूप में उल्लिखित हैं।
· विश्पला, मुद्गलानी तथा दनु नामक नारियां रण
प्रांगण में अपने योगदान हेतु प्रख्यात हैं।
· वृचया नामक राजकन्या ने वृद्ध कुक्षीवान
ऋषि से विवाह किया था।
· जीवन साथी चुनाव में काफी स्वतंत्रता
थी। साधारणतः ऋतुदर्शन के उपरांत ही स्त्री विवाह होता था।
· बहु पत्नी प्रथा प्रायः कुलीन वर्ग
में ही पाई जाती थी।
मनोरंजन के साधन :-
· संगीत, नृत्य, जुआ,
शिकार एवं धार्मिक
नाटक तथा रथ दौड़ मनोरंजन के प्रमुख साधन थे।
खान-पान :-
· शाकाहारी भोजन में दूध, घी,
पनीर/मुख्य/, सब्जी, फल व अनाज खाते थे। जबकि मांसाहार
में भेड़, बकरी तथा बैल भूनकर खाते थे।
· गाय को अघन्या / न मारने वाला/ मान
कर पूजते थे।
· सोम रस के आदी थे जिसे देवत्व प्रदान
कर दिया गया था।
वस्त्राभूषण :-
साधरणतया आर्य तीन प्रकार के वस्त्र धारण करते
थेः
· नीवी : कटि प्रदेश में पहने जाने
वाला वस्त्र।
· वास : चादर की भांति ओढ़े जाने वाला
वस्त्र।
· अधिवास : ऊपर से ओढ़े जाने वाला वस्त्र।
· उत्तरीय वस्त्र को स्त्री एवं पुरूष
दोनों धारण करते थे।
· वस्त्रों का निर्माण सूत, उन व चमड़े द्वारा होता था। सिले हुए
वस्त्र भी प्रयोग में लाए जाते थे।
· आभूषणों में कर्ण शोभन, कुरीर/सिर पर पहनते थे/, निष्क /गले का आभूषण/, रूक्मा/छाती पर/ पहनते थे।
· पुरूष दाढ़ी मूंछ रखते थे किन्तु कुछ
नहीं भी रखते थे।
औषधीय गुणों का ज्ञान :-
· ऋग्वेद में प्रमुख बीमारी का नाम
‘‘यक्ष्मा’’ बताया गया है।
· ‘‘ सर्जरी’’ किये जाने का भी उल्लेख
प्राप्त होता है।
वर्ण व्यवस्था :-
· ऋग्वेद के दसवें मण्डल में वर्णित
पुरूष सूक्त के आधार पर कहा जाता है कि चार वर्ण अस्तित्व में थे।
1. ब्राह्म्ण 2. क्षत्रिय 3. वैश्य 4. शूद्र ,
अंतिम दो वर्ण काल के अंतिम चरण में
अस्तित्व में आए।
शिक्षा :-
· शिक्षा की गुरूकुल पद्धति प्रचलित
थी।
· स्त्री उपनयन संस्कार होता था।
· बाल विवाहएवं सती प्रथा का रिवाज
नहीं था।
· पुत्र न होने पर देवर अथवा निकट
सम्बन्धी से संबंध स्थापित कर स्त्री संतान उत्पन्न कर सकती थी। इसे नियोग प्रथा कहा
जाता है।
· विधवा विवाह का प्रचलन था।
· स्त्री, पिता की सम्पत्ति की अधिकारी होती
थी।
वैदिक कालीन आर्थिक ढांचा :-
पशु पालन :-
· पशुधन को प्रमुख व्यवसाय माना जाता
है। पहचान हेतु पशुओं के कानों पर अंकित निशान होते थे। जीवन में पशुओं का अति महत्वपूर्ण
स्थान था।
· वास्तव में पशु एक प्रकार के सिक्के
थे तथा उनके द्वारा ही वस्तुओं का मूल्यांकन होता था।
कृषि :-
· कृषि उन्नत थी, अतः प्रमुखतया यव/जौ/ तथा धान की
खेती की जाती थी। एक वर्ष में दो फसलें उगाई जाती थीं। कृषि मुख्य रूप से वर्षा पर
ही आधारित थी।
शिकार :-
शिकार हेतु धनुष एवं बाण का प्रयोग किया जाता था। जाल के
फन्दे का उपयोग करने वाले निधापति/चिड़ीमार/ का भी उल्लेख मिलता है। दासों व सेवकों
को मछली पकड़ना या शिकार खेलना निषिद्ध था।
लघु उद्योग :-
· बढ़ईगिरी एक सम्मानित कार्य था।
· धातु के लिए ऋग्वेद में अयस शब्द
का उल्लेख मिलता है।
· सुनार तथा चर्मकार भी होते थे। तथा
स्त्रियां सिलाई , बुनाई का कार्य करती थीं।
· किसी भी व्यवसाय को भी व्यक्ति निःसंकोच
अपना सकता था।
व्यापार एवं वाणिज्य :-
· व्यापार करने वाले को ‘‘ पाणि ’’
कहा जाता था।
· व्यापार में वस्तु विनिमय की प्रणाली
प्रचलित थी।
· मुद्रा के रूप में ‘‘ निष्क’’ ‘‘
कृष्णल ’’ तथा ‘‘ शतमान ’’ का भी प्रयोग होता था।
· गाय को मूल्य की इकाई माना जाता था।
· जल मार्ग द्वारा विदेशी व्यापार समुन्नत
था।
· राज्य , कर आय का 16 वां भाग होता था, जिसे ‘‘ भागदुध ’’ नामक अधिकारी एकत्रित
करता था।
· ‘‘ अक्षवाय ’’ नामक अधिकारी, आय-व्यय का लेखा जोखा भी देखता था।
वैदिक कालीन राजनैतिक विन्यास
कुटुम्ब /परिवार/:-
सबसे छोटी इकाई परिवार या कुल या कुटुम्ब था। जिसके मुखिया
को ‘‘ कुलप ’’ या ‘‘ गृहपति ’’ कहा जाता था।
ग्राम :-
ग्राम प्रधान को ‘‘ ग्रामणि ’’ कहा जाता था, किन्तु इसके चुनाव का तरीका अज्ञात
है।
विश :-
अनेक ग्रामों का समुदाय ‘‘ विश ’’ होता था। वर्तमान जनपद
के समान इसका प्रमुख ‘‘ विश पति ’’ कहलाता था।
जन :-
अनेक विश मिल कर ‘‘ जन ’’ कहलाते थे। जिसका प्रषासक ‘‘गोप’’
कहलाता था। गोप प्रायः राजा ही हुआ करता था। जिसे ‘‘ रक्षक ’’ भी कहा गया है।
राष्ट्र :-
जन या देश या राज्य ही राष्ट होता था, जिससे संघात्मक सरकार का आभास होता
है।
वैदिक कालीन शासन व्यवस्था
मुख्यतया राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्था थी जिसका अध्यक्ष
राजा ही होता था।
राजा :-
· यह पद वंशानुगत होता था तथा यह प्रजा
पालक होता था।
· जनता द्वारा राजा को प्रदत्त भेंट, ‘‘ बलि ’’ या ‘‘ बलिहित ’’ कहलाती थी।
· राजा का भूमि पर कोई स्वत्व नहीं
था।
पुरोहित :-
यह राज्य का आवश्यक अंग होते थे। ये एक शिक्षक, दार्शक एवं मित्र के रूप में राजा
का प्रमुख साथी होते थे। यह न्याय हेतु भी अपने विचार रखता था।
सेनानी :-
· यह ‘‘ सेनापति ’’ होता था, जो सीमा पर राष्ट्र की रक्षा करते
थे।
· दूत एव जासूस /स्पश/ का भी उल्लेख
पाया गया है।
सभा एवं समिति :-
राजाओं के अधिकारों पर अंकुश रखने हेतु दो संस्थाएं होती
थीं। वेदों में सभा एवं समिति को प्रजापति की दो कन्या कहा गया है। इनके संबंध में
विभिन्न विद्वानों के मत निम्नानुसार हैं :-
· सभा न्यायिक कार्य करती थी, जो समिति नहीं कर सकती थी। -
चैडविक
· सभा तथा समिति में कोई अंतर नहीं
था। - आर0 एस0 शर्मा एवं हिलब्राण्ट
· सभा एक सम्मिलन स्थल था। - ब्लूमफील्ड
· सभा एक स्थानीय संस्था थी जबकि समिति
एक केन्द्रीय संस्था थी। - आर0सी0मजूमदार
· समिति जन साधारण की एक बड़ी संस्था
थी तथा सभा होमर कालीन गुरजन सभा के समान कम सदस्यों वाली छोटी संस्था थी। - लुडविग का यह तथ्य
सर्वमाल्य है.
वैदिक कालीन न्याय व्यवस्था
· कानून हेतु ‘‘ धर्मन ’’ शब्द का उल्लेख
मिलता है।
· प्रमुख न्यायाधीश राजा होता था।
· ग्राम्यवादिन - ग्राम के न्यायाधीश
को कहा गया है।
· चोरी,
सेंधमारी, डकैती तथा पशुहारण मुख्य अपराध थे।
· वैरदेय / बदला चुकाना/ की प्रथा प्रचलित
थी। व शतदेय अर्थात् जीवन मूल्य 100 गायों के बराबर माना गया था।
· बीच-बचाव करने वाले को ‘‘ मध्यमशी
’’ कहा जाता था।
· राजद्रोही तथा ब्राम्हणहंता को प्राण
दण्ड का प्रावधान था।
· निर्दोष सिद्धि हेतु अग्नि तथा जल
परीक्षा का प्रचलन था।
वैदिक कालीन धार्मिक स्थिति
आराधना एवं यज्ञ :-
यज्ञों में राजा तथा प्रजा दोनों ही भाग लेते थे। यज्ञों
में विभिन्न श्रेणी के पुरोहित होते थे।
· होता : मंत्रोच्चारक
· अध्वर्यु : पूजा से संबंधित हाथ के काम
· उद्गाता : सामवेद का उद्गान कर्त्ता
यज्ञों में पशु बलि प्रचलित़ थी। कुछ विद्वानों ने तत्कालीन
धर्म को अभिजात वर्गीय कहा है।
देवताओं का वर्गीकरण :-
1. स्वर्ग के देवता :-
· द्यौस : आकाश का देवता / सर्व प्राचीन/
· वरूण : जल देवता
· सूर्य : सर्व पापहारी देवता
· सावित्री : बुरी आत्मा निरोधक देवी
· अदिति : बंधन मुक्ति दायिका देवी
· उषा : प्रकाश, उत्साह एवं चेतना की देवी
2. वायुमण्डलीय देवता :-
· इन्द्र : सर्वमान्य तथा शक्तिशाली
देवता
· रूद्र : संहारकर्त्ता देव
· मरूत : इन्द्र का सहायक
· पवन देव
3. पार्थिव देवता :-
· अग्नि : इन्द्र के पश्चात् पूज्य
देव
· सोम रस
· पृथ्वी
ऋग्वेद में पशुपूजा का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है।
धार्मिक दर्शन :-
· लोक पर लोक की भावना जागृत थी।
· देवताओं को मित्रवत मानते थे।
· सर्वेश्वरवादी होते हुए भी एकेश्वरवाद
पर विश्वास रखते थे।
अन्य विविध तथ्य
· बाल्य खिल्य सूक्त ऋगवेद में है।
· सूक्तों के पुरूष सचयिता : गृत्समद, विष्वामित्र, वामदेव, अत्रि, वषिष्ठ तथा भारद्वाज।
· सूक्तों की स्त्री सचयिता : लोपामुद्रा, घोषा,
शची, पौलोमी, काक्षावृत्ति, शाश्वति, निवावरी, सिक्ता एवं इद्राणी।
· वाजसनेयी संहिता : शुक्ल यजुर्वेद
· गद्य एवं पद्य दोनों मे लिखित वेद
: यजुर्वेद
वेद |
संबंधित
ब्राम्हण |
प्रमुख
देवता |
ऋग्वेद |
ऐतरेय एवं कौशितकी ( शंखायन ) |
इन्द्र |
यजुर्वेद |
शतपथ या वाजसनेय /याज्ञवल्क्य
कृत/ |
प्रजापति |
सामवेद |
कृष्ण तैतरेय , पंचविश/जैमिनी , महाताण्डव/षडविश/ अद्भुत |
|
अथर्ववेद |
गोपथ |
|
· ऋग्वेदिक आर्यों को लोहे का ज्ञान
नहीं था।
· सिंचाई का प्रमुख स्त्रोत कुए थे।
· डॉ0 आर0एस0शर्मा के अनुसार आयों ने समुद्री
यात्राएं नहीं की।
· आर्य समुद्री यात्रा कर बेबीलोन तथा
प0 एशिया से व्यापार करते थे। मजूमदार
एवं वाप्टे
· छांदोग्य उपनिषद सर्वाधिक प्राचीन
उपनिषद है, जो घोर नामक ऋषि की रचना है। जिनसे
प्राप्त ज्ञान के आधार पर कृष्ण भगवत गीता का पाठ पढ़ाया।
· सवर्था नवीन उपनिषद ‘‘ मुण्डक उपनिषद
’’ है।
· वृहदारण्यक उपनिषद में पहली बार पुर्नजन्म
की चर्चा की गई है।
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